ममता यादव
मुंबई पर हुये 2611 के हमले में शहीद हुये एटीएस चीफ हेमंत करकरे तो सबको याद होंगे। मीडया को भी अच्छे से याद होंगे। लेकिन उन्हीं हेमंत करकरे की पत्नि कविता करकरे की मौत मीडिया में लगभग नदारद रही। मुझे इसका पता फेसबुक मित्र विवेकानंद की पोस्ट से चला। कविता करकरे जाते—जाते भी कई लोगों को जिंदगी दे गईं। मरते हुये को किडनी, तो किसी को आंखें। कविता खामोशी से चली गईं मरते हुये लोगों को जीवनदान देकर। हैरानी है उल—जलूल मुद्दों पर दिन—रात चिल्लाने वाले मीडिया से यह खबर नदारद थी।29 सितंबर 2014 को कविता करकरे की मौत हो गई थी।
पिछले कुछ महीनों की मीडिया में आ रही खबरों पर नजर डाली जाये तो सिवाय राजनीति,साम्प्रदायिक उन्माद की खबरें ही छाई हुई हैं। ऐसा लगता है कि भारत में सिर्फ और सिर्फ अपराध हो रहा है और बिहार में चुनाव। मुंबई से शिवसेना की दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार से मुंहजबानी जंग बस इसके अलावा कुछ नहीं बीच में गीता आ गईं।
टाईम्स आॅफ इंडिया की वेबसाईट पर 29 सितंबर 2014 को प्रकाशित खबर के अनुसार कविता करकरे घर में ही फिसल गईं थीं और कोमा में चली गईं उसके बाद उनकी मौत हो गई।
खबर की लिंक यहां है।टाईम्स आॅफ इंडिया की खबर
उसके बाद उनके परिवार वालों ने उनके अंग दान करने का निर्णय लिया। कविता करकरे कितनों को जीवनदान दे गईं और उनके अंग किस—किस को कहां—कहां दान किये गये ये जानने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें। प्रेरणात्मक मिसाल: जाते-जाते कई लोगों को दे गईं जीवनदान कविता करकरे
इस साल उनको श्रद्धांजली तो दी ही जा सकती थी। सोशल मीडिया ने कम से कम इतना तो किया है कि कुछ असल पत्रकारों को एक—दूसरे से मिला दिया है, जिससे इस तरह की खबरें सामने आ पाती हैं। अगर फेसबुक पर विवेकानंद चौधरी मेरे मित्र नहीं होते तो कविता जी का यह अमूल्य बलिदान सामने ही नहीं आता। कविता करकरे को मल्हार मीडिया की ओर से श्रद्धांजली।
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