भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी।
मुझे गुस्सा कब आता है? जी हाँ। यह किसी उपन्यास का नाम नहीं है और न ही इस नाम की कोई फिल्म निर्मित होने वाली है। यह तो मेरे लेख की आरम्भ की एक पंक्ति है। बहरहाल- मुझे गुस्सा भी आता है, शायद हाँ। और जब यह आ जाता है तब मैं लिखने बैठ जाता हूँ। इस समय गुस्सा आ गया है। रात्रि होने को है, फिर भी मैं लिख रहा हूँ यह उसी गुस्सा का ही परिणाम है। गुस्सा यानि क्रोध- यह भला क्यों आ गया। बताता हूँ।
हज्जाम के सैलून पर ‘शेविंग’ करा रहा था- आदतन उसने पूँछा डाक्टर साहेब आप हैप्पी न्यू इयर के पहले दिन मंत्री जी के यहाँ गए थे कि नहीं.........बस इतना सुनना था कि पूरा शरीर कड़ाके की ठण्ड में भी तपने लगा। तमतमाया चेहरा देखकर मुँह लगा हज्जाम सकपका गया और बोला डाक्टर साहेब आप की तबियत तो ठीक है.........इशारे से बताया हाँ भई यदि ऐसा न करता तो वह अगल-बगल के लोगों को बुलाकर यह कहता कि मुझको दौरा पड़ा है। 102 और 108 बुलाकर अस्पताल ले चलो वर्ना 100 नम्बर वाले आ धमकेंगे तो हवालात काटनी पड़ सकती है।
दौरा क्यों पड़ता है- उम्र का तकाजा-बढ़ती उम्र में ऐसा होता है 102/108 क्या है? यह सरकार द्वारा निःशुल्क एम्बुलेन्स सेवा प्राप्ति के लिए सम्पर्क क्रमांक है। और 100 नम्बर पुलिस का है। हज्जाम को 100 नम्बर का इसलिए भय आया यदि मुझे दौरा (अटैक) हो गया हो और खुदा न खास्ता मैं परलोक गमन कर जाऊँ तब बेचारा नाई अकारण पुलिसिया कार्रवाई में फँस सकता है। मेरी मौत पर पुलिसिया कार्रवाई क्यो.........?
वह इसलिए कि 10-15 वर्ष पहले जिसने मुझे देखा रहा होगा उसे यह जरूर याद हो सकता है कि मैं भी पत्रकार हूँ और ऐसा होने पर पुलिस सक्रिय हो सकती है। छोड़ो जी पुलिस किसी ऐसे पत्रकार के मरने पर सक्रिय होगी जिसे महकमा के अधिकारी/कर्मचारी ही नहीं जानते-पहचानते है। इसका प्रमाण नहीं दूँगा- जाइए मेरा नाम लेकर किसी से चर्चा करिए.............अपने आप जान जाएँगे।
बहरहाल- मुझे दौरा नहीं पड़ा लेकिन गुस्सा/क्रोध कुछ इस कदर आया कि थोड़ा नार्मल होने के उपरान्त मैंने हज्जाम से कहा डियर तुम कैसी बातें कर रहे हो ऐसा बेहूदा सवाल? आखिर तुम्हें क्या हो गया है कम से कम तुम तो मुझे 15 साल पहले से जानते हो। उसने अपनी गलती स्वीकार की और माफी माँगते हुए आइन्दा ‘रिपीट’ जैसी बेवकूफी न करने का वायदा किया।
मैंने उसे ‘गुड’ कहा। वह खुश हुआ...............। हज्जाम अक्लमन्द था मेरे ‘क्रास क्यूश्चनिंग’ का भरपूर अर्थ लगाया और सब कुछ जानकर मुझसे माफी मागा था। मैंने उससे क्या क्रास क्यूश्चन्स किए थे, उसका जिक्र कर दूँ ताकि आप को भी मेरे ‘नेचर’ की वाकफियत हो जाए वर्ना आप में से कोई हज्जाम जैसी भूल कर बैठा तो मुझे फिर गुस्सा आ सकता है और तब आप पर आई.पी.सी. की 302, 307 धाराएँ लगने के चान्सेस बढ़ जाएँगे।
मुझसे जब हज्जाम ने पूछा था कि क्या नववर्ष के प्रथम दिन मंत्री जी के पैतृक आवास पर मेधा सम्मान समारोह के अवसर पर आयोजित प्रीति भोज कार्यक्रम में गया था तब मुझे गुस्सा आ गया था। हालाँकि अपने पर हावी क्रोध पर मैंने जल्द ही काबू पा लिया था............. तत्पश्चात् उक्त प्रश्न का जवाब दिया जो कुछ इस तरह है। डियर मिस्टर सलमानी भाई देखो तुम तो मुझे काफी सालों से जानते हो। जब इतनी लम्बी जान पहचान है तब तो तुम मेरी रग-रग से भी वाकिफ होगे। एक बात बताओ- यह कि मैं एक कलमकार/पत्रकार हूँ- रहूँगा लेकिन मंत्री जी जब पद से मुक्त होंगे तब पूर्व/भूतपूर्व कहलाएँगे लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं होगा। मैं था, हूँ और हमेशा रहूँगा। अब बताओ कि मेरी औकात मंत्री जी से बड़ी है या फिर कुछ कमतर...? हज्जाम समझ जाता है और खामोशी से अपना काम करने लगता है।
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