रक्षा मंत्री का चायना दौरा और चीनी मीडिया का तंज,खूबसूरत महिला बनना चाहता है भारत
मीडिया
Apr 18, 2016
मल्हार मीडिया डेस्क।
चीन की सरकारी मीडिया ने अमेरिका के साथ साजो सामान विनिमय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के भारत के निर्णय को अधिक महत्व नहीं देते हुए सोमवार को कहा कि दोनों देशों के बीच अविश्वास के कारण प्रस्तावित समझौता रुका हुआ है क्योंकि भारत एक ऐसी सबसे खूबसूरत महिला बनना चाहता है, जिसे सभी खासकर अमेरिका और चीन अपनी ओर लुभाए।
भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने चीनी अधिकारियों के साथ वार्ता के लिए सोमवार को चीन की अपनी पहली यात्रा शुरू की। ऐसे में सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में कहा, उनके पारंपरिक अविश्वास के बावजूद भारत और अमेरिका के गठबंधन की अटकलें लगाना महाशक्तियों बीच झूलने वाले देश की भूमिका निभाने की भारत की महत्वाकांक्षा को स्पष्ट रूप से कम करके आंकना है।
'एलएसए हस्ताक्षर को रोक रहा भारत-अमेरिका का रणनीतिक अविश्वास' शीर्षक से लेख में कहा गया है, मूल बात यह है कि भारत सबसे खूबसूत महिला बने रहना चाहता है, जिसे सभी पुरूष, खासकर दो सबसे मजबूत देश यानी अमेरिका और चीन लुभाएं।
उसने कहा, यह भारत के लिए यह कोई नई भूमिका नहीं है। हम अब भी याद कर सकते हैं कि अपनी कूटनीतिक चतुराई के कारण किस प्रकार उसने शीत युद्ध के दौरान दो प्रतिद्वंद्वी धड़ों के बीच विशेष भूमिका हासिल की थी।
अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने पिछले सप्ताह भारत की तीन दिवसीय यात्रा में घोषणा की थी कि वह और उनके भारतीय समकक्ष ने इस मामले में सैद्धांतिक सहमति जताई है कि लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौते (एलएसए) संबंधी सभी मसलों को सुलझा लिया गया है और दोनों पक्ष आगामी सप्ताह में इसका मूलपाठ तैयार कर लेंगे।
समाचार पत्र ने एलएसए पर हस्ताक्षर करने के भारत के निर्णय को रेखांकित करते हुए कहा कि साजो सामान के विनिमय संबंधी समझौते ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ये अटकलें शुरू कर दी हैं कि दोनों पक्ष चीन को नियंत्रित करने के लिए एक ही नौका में सवार हैं।
उसने कहा कि एलएसए का मकसद ईंधन भरने और मरम्मत करने समेत साजो सामान संबंधी कार्यों के लिए सैन्य अड्डों को साझा करना है।
समाचार पत्र ने कहा, इसलिए यह एक्वीजिशन एंड क्रॉस सर्विसिंग एग्रीमेंट (एसीएसए) से बहुत मिलता जुलता है। अमेरिका ने अपने कई नाटो सहयोगियों के साथ यह समझौता किया है।
उसने कहा, इसलिए ये अटकलें लगाई जा रही है कि दोनों पक्ष एक सैन्य गठबंधन समझौता करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
समाचार पत्र में 'भू राजनीतिक तनाव से भारत अपने हित साधना चाहता है' शीर्षक के तहत छपे एक अन्य लेख में कहा गया है कि एलएसए भारत और अमेरिका को एक अघोषित सैन्य गठबंधन की ओर ले जा रहा है।
समाचार पत्र में छपे लेख में कहा गया है, भारत के कूटनीतिक दांव पेंच से चीन-रूस-भारत त्रिकोण और ब्रिक्स के बीच सहयोग को नुकसान पहुंचने का खतरा है। इसने साथ ही कहा, भू राजनीति में अमेरिका और चीन और रूस के बीच तनाव ने भारत को सराहनीय रणनीतिक अवसर मुहैया कराए हैं।
लेख में कहा गया है कि हालांकि भारतीय अधिकारियों और विद्वानों का दावा है कि भारत की पारंपरिक गुट निरपेक्षता की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता, गुट निरपेक्षता बनाए रखेगा। इसमें दावा किया गया है कि भारत की विदेश नीति गुट-निरपेक्षता 3.0 के दौर में प्रवेश कर गई है, जिसकी तीन विशेषताएं हैं।
लेख में इस पहली विशेषता के बारे में कहा गया- तटस्थ स्थिति बनाए रखने के बावजूद भारत क्षेत्र में संघर्ष एवं टकराव बढ़ने के खतरे पर एशिया प्रशांत सुरक्षा संबंधी द्वीपीय एवं समुद्री विवादों में अमेरिका और जापान जैसे देशों का पक्ष लेता है। इसमें आरोप लगाया गया कि दूसरी विशेषता यह है कि भारत अपनी जिम्मेदारियों से बचता है और पश्चिम के साथ टकराव से बचने के लिए पश्चिम एशिया संघर्षों जैसी कुछ वैश्विक समस्याओं से निपटने में चीन और रूस से स्वयं को दूर रखता है।
लेख में कहा गया है, आखिरी विशेषता यह है कि वह अपने अधिकतम हित साधने के लिए अमेरिका, जापान और चीन, रूस के बीच भू राजनीतिक संघर्षों का लाभ उठाता है। हमारा मानना है कि भारत एक झूलते रहने वाली ताकत के रूप में ज्यादा दूरी नहीं तय कर पाएगा।
समाचार पत्र में कहा गया है, भारत ब्रिक्स में इसलिए शामिल हुआ क्योंकि बहु-ध्रुवीय विश्व के निर्माण और एक नई अंतरराष्ट्रीय नियम निर्माण प्रक्रिया में चीन और रूस के साथ उसके साझा हित हैं लेकिन कुछ भारतीय विद्वान दावा करते हैं कि ब्रिक्स आर्थिक विकास के कम होने के कारण ब्रिक्स भारत को कम अवसर मुहैया कराता है।
समाचार पत्र के अनुसार भू राजनीति भारत की विदेश नीति के लिए बहुत मायने रखती है।
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