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वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक ने नया इंडिया को बताया अखबारों का अखबार क्यों? पढ़िये!

मीडिया            May 17, 2016


डॉ.वेद प्रताप वैदिक। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद से किसी ने सवाल पूछा कि आप-जैसा कोई दूसरा पंडित भारत में हुआ नहीं। आप-जैसे ग्रंथ किसी अन्य विद्वान ने लिखे नहीं। आप गुजराती हैं लेकिन आप आजकल सिर्फ हिंदी में क्यों लिखते हैं? अंग्रेजी में क्यों नहीं लिखते? यदि ‘सत्यार्थ प्रकाश’-जैसा ग्रंथ अंग्रेजी में लिखा गया होता तो सारी दुनिया में तहलका मच जाता। लगभग डेढ़ सौ साल पहले पूछे गए इस सवाल का जवाब महर्षि दयानंद ने क्या दिया? उन्होंने कहा, हिंदी राष्ट्रभाषा है। भारत की पहचान है। यदि मेरे विचारों और तर्कों में दम होगा तो मेरे ग्रंथों को पढ़ने के लिए लोग अपने आप हिंदी सीखेंगे। यह हुआ भी। देश के लाखों अहिंदीभाषियों और कई विदेशियों ने दयानंद को पढ़ने के लिए हिंदी सीखी। यही बात ‘नया इंडिया’ पर लागू होती है। हिंदी के इस दैनिक अखबार को पढ़ने के लिए हमारे कई प्रमुख अहिंदीभाषी नेतागण और पत्रकार अब अपनी हिंदी सुधार रहे हैं। आजकल मुझे महिने में आठ-दस बार देश के विभिन्न शहरों में व्याख्यान आदि के लिए जाना होता है। लगभग हर शहर में दो-चार लोग ऐसे मिल जाते हैं, जो कहते है कि सुबह उठते से ही हम पहला काम यह करते हैं कि ‘नया इंडिया’ लपक लेते हैं। ‘नया इंडिया’ में छपे लेख जब जी-मेल, व्हाटसाप और वेबसाइट पर जाते हैं तो सैकड़ों लोग रोज़ अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। वे खट्टी-मीठी, दोनों होती है। साथ में ही वे यह भी बताते जाते हैं कि ‘नया इंडिया’ के लेखों को हम इतने-सौ या इतने हजार लोगों को रोज ‘फारवर्ड’ कर देते हैं। कम से कम 20 हजार लोगों को तो मेरे दफ्तर से ही भेजा जाता है। अनुमान है कि इन लेखों की पहुंच अब लाखों लोगों तक हो गई है। मेरे लेखों के फारसी, उर्दू और अंग्रेजी अनुवाद आजकल पड़ौसी देशों में भी लगभग रोज़ छप रहे हैं। naya-india एक बार एक केंद्रीय मंत्री ने मुझे फोन करके कहा कि देवनागरी पढ़ने में मुझे बड़ी दिक्कत होती है। आप क्या अपने लेखों को रोमन लिपि में भिजवा सकते हैं? मैंने अपनी मजबूरी बताई। चार-छह माह बाद वही सज्जन मुझे कहीं मिल गए। बोले, ‘‘अब रोज पढ़ता हूं और मेरी हिंदी ने ‘स्पीड’ पकड़ ली है।’’ भाजपा के एक बड़े और बुजुर्ग नेता ने पिछले साल सुबह-सुबह फोन किया और बोले, ‘आपने मेरा डेढ़-सौ रु. महिने का खर्चा बढ़वा दिया न!’ मैं थोड़ा परेशान हुआ। इतने में ही वे बोले, ‘‘ ‘नया इंडिया’ रोज लेना पड़ता है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘मेरे यहां हिंदी और अंग्रेजी के लगभग 20 अखबार आते हैं लेकिन सबसे पहले मैं ‘नया इंडिया’ खोलता हूं।’’ एक नामी-गिरामी भारतीय पत्रकार बंधु एक प्रसिद्ध विदेशी रेडियो और टेलिविजन कंपनी के लिए बरसों काम करते रहे हैं। वे हिंदी अखबारों को घटिया समझकर पढ़ते ही नहीं थे। उन्होंने ‘नया इंडिया’ के एक वरिष्ठ साथी से कहा कि ‘मुझे पता ही नहीं था कि हिंदी में भी इतने जानदार ढंग से लिखा जा सकता है। मुझे हिंदी की ताकत का पता ‘नया इंडिया’ से चला। हिंदी में इतनी गंभीर और सटीक बातें लिखी जा रही हैं कि ऐसी तो अंग्रेजी अखबारों में भी नहीं लिखी जातीं। देश के सारे अखबार एक तरफ और ‘नया इंडिया’ एक तरफ! महर्षि दयानंद ने अपने ग्रंथों के बारे में जो कहा था, वही बात ‘नया इंडिया’ के बारे में देश के प्रबुद्ध राजनेता और मंजे हुए पत्रकार भी कह रहे हैं। इसीलिए मैं कहता हूं कि ‘नया इंडिया’ अखबारों का अखबार बन गया है। देश के प्रमुख हिंदी और अंग्रेजी अखबारों के प्रबुद्ध पत्रकार ‘नया इंडिया’ को पढ़े बिना नहीं रहते। यह अखबार उन्हें सोचने के लिए मौलिक बिंदु देता है, बहस के लिए नए-नए तर्क देता है और टीवी एंकरों को अपनी बात कहने की अदा बताता है। कई बार हमने देखा है कि जो बात सुबह ‘नया इंडिया’ में छपी है, वही बात कई चैनलों पर दिन भर दनदनाती रहती है। ‘नया इंडिया’ के जुमले राष्ट्रीय जुमले बन जाते हैं। जो जुमलेबाजी अपनी जुबान में होती है, वह अंग्रेजी में कैसे हो सकती है, एक विदेशी भाषा में कैसे हो सकती है?देश में अखबार तो कई हैं लेकिन जो तेवर ‘नया इंडिया’ का है, क्या किसी और अखबार का है? मिर्जा गालिब ने जो बात खुद के बारे में कही है, वही ‘नया इंडिया’ के बारे में भी कही जा सकती है। गालिब का कहना था कि दिल्ली में शायर तो कई हैं लेकिन कौन है, जो कह दे गालिब के जुमले से बेहतर जुमला? क्या बात है, जो ‘नया इंडिया’ को देश के अन्य अखबारों के मुकाबले बेहतर अखबार बनाती है? यह अखबार विशाल संख्या में नहीं छपता है औ


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