लेकिन सरकार को शायद यह अंदाजा था कि पत्रकार इस फरमान को नहीं मानेंगें तो प्रश्नोत्तरी के साथ एक और आदेश पत्रकारों को पकड़ा दिया गया, जिसमें लिखा गया था कि सदन में पत्रकार अपना मोबाइल फोन बंद रखें। अगर कोई पत्रकार आॅडियो—वीडियो बनाता पकड़ा गया तो उसका मोबाइल जब्त कर लिया जायेगा।
यहां तक कि सुबह विधानसभा परिसर में प्रवेश के समय पत्रकारों एवं फोटोग्राफरों के पर्स तक तलाशे गए। हद तो तब हो गयी जब फोटोग्राफरों से पहने हुए मोज़े तक उतरवाए गए और कुछ लोगों के तो बेल्ट ही उतरवा कर रख लिये गये और महिला पत्रकारों को दीर्घा में अपना बैग या पर्स नहीं ले जाने दिया गया। सुरक्षा व्यवस्था का यह आलम था की विपक्षी विधायकों को चुन-चुन कर तलाशी अभियान का हिस्सा बनाया गया। यह सब कवायद किसके इशारे पर की गयी और क्यों की गयी अभी यह कोई जिम्मेदार कहने को तैयार नहीं है? प्रवेश द्वारों पर आलम यह था कि जहां सुरक्षाकर्मियों में एक कहता था मीडिया को सब ले जाना अलाउ है तो दूसरा कहता था नहीं पर्स,मोबाइल,घड़ी तक नहीं ले जा सकते।
हद तो तब हो गई जब विधानसभा के जनसंपर्क अधिकारी द्वारा जारी किये गए प्रवेश-पत्र को मानने से इनकार कर दिया गया। जब फोटोग्राफरों ने पूछा कि कौन सा प्रवेश-पत्र मान्य है तो उन्हें मुख्य सुरक्षा अधिकारी के पास जाने को कह दिया गया।
पत्रकारों का कहना है कि मीडिया के साथ विधानसभा में ऐसा व्यवहार पहले कभी नहीं किया गया। इस बार ऐसा क्यों किया जा रहा है और किसके कहने पर किया जा रहा है यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह संकेत अच्छे नहीं हैं।
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