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वेबमीडिया के बहाने लक्ष्यसाध्य मुद्दा उठाकर पत्रकारिता को गालियां देने वालों को पत्रकार का जवाब

मीडिया            Dec 30, 2015


मनोज वर्मा मध्यप्रदेश में वेबमीडिया को दिये सरकारी विज्ञापनों पर मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा। सूत्रों की मानें तो यह सब राजधानी के चंद पत्रकारों और कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से किया गया है वेबसाईट्स को विज्ञापन नीति से बाहर करने के लिये। बहरहाल इसमें बाला बच्चन या सरकार की जो भी मंशा रही हो। यह क्यों किया गया यह सामने आना बाकी है लेकिन इस बहाने उन लोगों के असली मुखौटे सामने आ गये जो पत्रकारिता को सिर्फ कमाई का जरिया मान रहे हैं लेकिन उसी पत्रकारिता की खाने वाले उसे गरियाने से भी बाज नहीं आ रहे। यह भी तय है कि इस बहाने अब कई लोगों के असली मुखौटे सामने आ सकते हैं। व्हाट्सएप ग्रुप्स में चंद पत्रकारों द्वारा की गई गाली—गलौज और पत्रकारों को दलाल मां को बेचने वाला टॉमी आदि कहने वाली इस चौकड़ी के खिलाफ आखिर को कुछ पत्रकार सामने आये। और उन्हें दिया खुलकर जवाब। ऐसा ही जवाब है वरिष्ठ पत्रकार मनोज वर्मा का। ये वही मनोज वर्मा हैं जिन पर करीब एक साल पहले हमला किया गया था। मनोज की बात को अक्षरश: इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। कुलमिलाकर इसे प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि पत्रकारिता को गालियां देने का हक किसी को नहीं है। जिसे अक्षरश: इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। कुलमिलाकर इसे प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि पत्रकारिता को गालियां देने का हक किसी को नहीं है। जिन पत्रकारों टामी कहा जा रहा है उनको इस पीढ़ी के बुजुर्ग पत्रकारों ने ही इस तरह के काम करने का रास्ता दिखाया है। बुजुर्ग पत्रकारों ने वर्षों पहले बुलडाॅग बनकर सरकार के तलवे चाटकर शहर की प्राइम लोकेशन में बड़े-बड़े सरकारी मकान आवंटित करवा लिए। इस तरह सरकार से फायदा लेने में उन तथाकथीत पत्रकारों का जमीर कहां तलवे चांट रहा था जो आज ईमानदारी की बाते कर रहे हैं । इतना ही नहीं जनसंपर्क विभाग से ये बुलडाॅग वर्षो से हर साल किताब छापकर लाखों रुपये की कमाई बटोर रहे है। किताबों के ऊपर के कवर बदलकर अंदर पिछले साल का ही मेटर रखकर सरकार को हर साल लाखों रुपए की चपत लगाने का काम ये बुलडाॅग कर रहे हैं। ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले पत्रकार यह समझ ले कि आने वाली पीढ़ी को यह रास्ता इस प्रोफेशन में मौजूद बुजुर्गो ने ही सिखाया है। सरकार से सोसायटी की आड़ में प्लाट लेना तलवें चाटने का ही काम है, लेकिन यह काम करने में उन्हें कोई गुरेज नजर नहीं आया। बाप के साथ बेटे को भी सस्ती दरों पर सरकार से मिले प्लाट दिलवा दिए। इस चापलूसी को भूल गए और वेबसाइट के मुद्दे पर बहुत पीढ़ा हो रही है। कुछ बुजुर्ग पत्रकारों ने तो बुलडाॅग बनकर एक बड़े राजनीतिक दल से विधानसभा के लिए में टिकट लेकर चुनाव भी लड़ लिया । यह टिकट भी उन्हें पत्रकार होने के कारण ही मिला था। खुद गोरखधंधे में लिप्त होने के बावजूद भी दूसरों पर ऊंगली उठाने से नहीं चूक रहे कुछ तथाकथित पत्रकार । दलाल की हैसियत रखने वाले कुछ तथाकथित पत्रकारो ने फिल्म बनाने के नाम पर जनसंपर्क विभाग से पिछले कई सालों से करोड़ो रुपए लेकर हजम कर लिए। जिस दिन इन सभी मामलों के कागज जनसंपर्क से बाहर आ गए तो ईमानदारी का चोला ओढ़े कई पत्रकार बेनकाब हो जाएंगे । लेखक दैनिक जनजनजागरण के संपादक हैं


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