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सोशल मीडिया और वेब पत्रकारिता

मीडिया            Feb 07, 2016


ममता यादव लकीर बहुत महीन है इतनी महीन कि दोनों में फर्क करना मुश्किल हो जाये। इस लकीर को परिभाषित भी वही कर सकता है जो दोनो विधाओं पर पकड़ रखता हो। जी हॉं इसे आप विधा मान सकते हैं बात हो रही है सोशल मीडिया और वेब पत्रकारिता की। यूं तो वेब मीडिया शब्द अपने आप में इन ​दोनों को समाहित किए हुये है और यही वो आयाम है जिसने पत्रकारिता को नये फलक, नये आयाम दिये हैं। लेकिन सोशल मीडिया आने के बाद एक असमंजस की स्थिति बन गई है। असमंजस ऐसा कि सोशल मीडिया पर लिखने की आजादी होने के कारण हर दूसरा सोशल मीडिया यूजर लेखक या पत्रकार होने का दावा करने लगा है। दिलचस्प बात यह है कि सक्रिय वेब पत्रकारिता में भी दो वर्ग हो गये हैं एक वह वर्ग जो वेबसाईट संचालन कर रहा है और विशुद्ध समाचारों आदि पर काम कर रहा है और एक ब्लॉग वर्ग जो कि पहले तो अपने नाम से बनाया जाता है फिर उसमें सारी चीजें समाहित होती चली जाती हैं। वेब पत्रकारिता को लेकर लोगों की समझ कितनी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी जब किसी वेबसाईट के समाचार की लिंक फेसबुक पर शेयर की जाती है तो कई लोग सवाल यह करते हैं कि यह पत्रिका है या समाचार पत्र में। या फिर आपने इंट्रो शेयर करने के बाद लिंक डाली तब भी लोगों को यह नहीं समझ आता कि सी मोर यानी बाकी कहां देखें यह तब होता है जबकि बकायदा लिंक शेयर की होती है। तो सीधी बात ये कि अभी भी एक बड़ा वर्ग है जो सिर्फ फेसबुक और व्हाट्सएप के कारण नेट को जान रहा है समाचारों की दुनियां को नहीं। मतलब यह कि आज भी लोग समाचारों के लिये अखबार या पत्रिका से इतर कुछ सोच नहीं पाते हैं। newsfeed_resized_final तो सोशल मीडिया पर पकड़ है इनकी मगर क्यों इसलिये कि आसान है सिर्फ एक ईमेल आईडी ही तो चाहिए। सोशल मीडिया आत्मप्रशंसा के भरपूर मौका देता है और यह अपने यूजर को इसका चस्का भी लगा देता है ऐसा चस्का कि अगर वह एक पल भी इस पर न जाये तो उसे कसमसाहट बेचैनी होने लगती है। कोई माने या न माने मगर आज का सच यही है कि इसका यूजर एक बार बिना भोजन—पानी के रह जायेगा मगर सोशल मीडिया के बगैर नहीं रह पायेगा। बात करें वेब पत्रकारिता की। वेब पत्रकारिता की जब बात आती है तो एक बात बहुत साफ होती है कि इसमें सिर्फ पत्रकारिता होगी यानी समाचार,विचार आदि। यानि वह सब होगा जो किसी अखबार या न्यूजचैनल का कंटेंट होता है। लेकिन यहां फिर गड़बड़झाला नजर आता है जब यहां भी कई लोग अपनी निजी वेबसाईट को भी पत्रकारिता का माध्यम बताते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से कई लोग ऐसे भी हैं जो पत्रकार नहीं हैं और खुद को पत्रकार साबित करने पर आमदा होते हैं। एक फेसबुक पेज बनाकर उस पर जो चाहे लिखना इधर—उधर से समाचार कॉपी पेस्ट करना फोटो शेयर कर देना इनके लिये पत्रकारिता का लगभग सर्टिफिकेट जैसा होता है। लेकिन इस पत्रकारिता के कारण असल पत्रकारिता का नुकसान हो रहा है,उदाहरण यह कि अगर किसी वास्तविक पत्रकार पर कोई मुसीबत आती है तो उसे कहा जाता है कि अरे तुम तो फेसबुकिए पत्रकार हो।आलम यह है कि वेब पत्रकारों को फेसबुकिया पत्रकार कहा जाता है। social-media-press इसे इस तरह भी समझा जा सकता है। आमतौर पर पत्रकारों की नौकरियों के दौरान संस्थानों में नहीं पटती तो वे नौकरी छोड़ देते हैं। पहले ऐसा कोई माध्यम नहीं था अब है सोशल मीडिया। इस वे अपना पेज बना कर खबरें देने लगते हैं। उदाहरण के लिये उत्तरप्रदेश के स्वर्गीय जगेंद्र को लिया जा सकता है। अपनी बिंदास और धाकड़ खबरों के लिये जाने जाने वाले जगेंद्र सिंह की नौकरी में बहुत दिन नहीं पटी तो उन्होंने अपना फेसबुक पेज बनाया शाजापुर समाचार के नाम से और उस पर खबरें लिखने और शेयर करने लगे। जब जगेंद्र की हत्या हुई तभी यह बात उठी कि वो पत्रकार नहीं थे।यह इसीलिए हुआ क्योंकि कई गैरपत्रकारों ने मीडिय से मिलते—जुलते पेज बना रखे हैं। सोशल मीडिया में कापी पेस्ट का खतरा भी बहुत बढ़ गया है। क्योंकि यहां ऐसी कोई सुविधा नहीं है कि मूल लेख को कोई कापी न कर सके और अपने वॉल पर चिपका न सके। तो कुलमिलाकर यह कि सोशल मीडिया आपकी वेबसाईट के लिये एक बेहतरीन प्लेटफार्म है। आपके समाचारों के लिए एक बेहतरीन सोर्स है मगर जब तक आप उसकी सत्यता ना जांच लें आप भरोसा नहीं कर सकते।


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