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1932:जब विदेशी मीडिया ने हॉकी के बादशाहों को बिठाया सर आंखों पर और भारतीय अखबारों में ...

मीडिया            Jun 07, 2016


sunil-yadav-newyorkन्यूयार्क से सुनील यादव। 1932 के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम...लॉस एंजिल्स बंदरगाह पर अपने जलयान के डेक पर उतरने की तैयारी करते भारतीय खिलाड़ी। hockey-1932-2 42 दिनों के पानी के जहाज़ के सफ़र के बाद भारतीय टीम लॉस एंजिल्स पहुंची। वहाँ के एक अख़बार ने लिखा, ''आज हॉकी के बादशाह पधार रहे हैं। उनकी बहुत सी बीवियाँ उनके साथ हैं. टीम में दो शेर भी आ रहे हैं.''.........मज़ेदार बात ये रही कि भारतीय अख़बारों में ओलंपिक जीत को पहले पन्ने तो दूर, खेल समाचारों में भी काफ़ी नीचे जगह दी गई थी.... वो भी सिर्फ़ एक कॉलम में। उस दिन की मुख्य खेल ख़बर थी .......सबको उम्मीद थी कि भारत अमरीका के ख़िलाफ़ जीतेगा, लेकिन किसी ने ये कल्पना नहीं की थी कि भारत औसतन हर तीन मिनट पर गोल करेगा और जीत का अंतर होगा 24-1,ओलंपिक हाकी में ये जीत का अब तक का सबसे बड़ा अंतर है..........स्टेट्समैन अख़बार ने अपने 13 अगस्त, 1932 के अंक में लिखा, ''भारतीय खिलाड़ियों ने ग़ज़ब का स्टिक वर्क दिखाया। फ़ारवर्डों का तालमेल देखते ही बनता था। हाफ़ बैक फ़ॉरवर्डों की मदद के लिए अक्सर आगे आ जाते थे। फ़ॉरवर्ड्स और हाफ़ बैक्स के फ़्लिक पास अमरीकियों के लिए नई चीज़ थे। कई बार तो वो खेलने के बजाए, अपने फुर्तीले प्रतिद्वंदियों के खेल को निहारने लगते थे. इस मैच में रूप सिंह ने 12, ध्यान चंद ने 7 और गुरमीत ने 3 गोल किए.''................ उस समय चर्चा थी कि एक हज़ार डॉलर की शर्त लगाई गई है कि ध्यानचंद तीन से ज़्यादा गोल नहीं मार पाएंगे। अमरीकियों ने उनके पीछे तीन खिलाड़ी लगा रखे थे। इसके बावजूद ध्यान चंद सात गोल मारने में सफल रहे।''............ dhyanchand-1932 जर्मनी में ध्यानचंद इतने लोकप्रिय हुए कि उन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी को जर्मन ध्यान चंद कहना शुरू कर दिया। प्राग में एक मैच के बाद एक युवती ने ध्यान चंद का चुंबन लेने की कोशिश की। उन्होंने उस मुश्किल से यह कह कर पीछा छुड़ाया कि वो शादीशुदा शख़्स हैं। बाद में ध्यान चंद ने लिखा कि ये उनकी नज़र में भारत की सर्वश्रेष्ठ हॉकी टीम थी - 1936 की बर्लिन ओलंपिक टीम से भी बेहतर hockey-1932-1 ध्यान चंद अपनी आत्मकथा गोल में लिखते हैं कि भारतीय टीम के लिए फ़ंड जमा करने के अभियान में महात्मा गांधी को शामिल करने की असफल कोशिश की गई। चार्ल्स न्यूहैम ने महात्मा गांधी को पत्र लिख कर कहा कि वो भारतीय हॉकी टीम के ओलंपिक जाने के लिए धन जुटाने में उनकी मदद करें। hockye-1932 गाँधी जी ने न्यूहैम के पत्र के जवाब में लिखा, ''आपको जान कर आश्चर्य होगा कि मुझे पता ही नहीं है कि हॉकी जैसा भी कोई खेल होता है। मैं इस बारे में निश्चियत नहीं हूँ कि आम लोगों की इस खेल में रुचि भी है या नहीं। मुझे नहीं याद पड़ता है कि मैंने कभी इंग्लैंड, दक्षिण अफ़्रीका या भारत में हॉकी का कोई मैच देखा है। मुझे दुख है कि मैं इस संबंध में आपकी कोई मदद नहीं कर सकता।'' hocky-team-1932 लेकिन इसके बावजूद भारतीय हॉकी फ़ेडेरेशन के प्रमुख एफ़ हेमैन और पंकज गुप्ता के प्रयासों से इतना पैसा जोड़ लिया गया कि भारतीय टीम के अमरीका जाने का किराया निकल आए। ध्यान चंद ने इसका ज़िक्र अपनी आत्मकथा 'गोल' में किया, ''सभी खिलाड़ी मैच के बाद मिलने वाला 2 पाउंड का भत्ता छोड़ने के लिए राज़ी हो गए ताकि टीम को पैसे की कोई किल्लत न रहे।''


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