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35 वीं पुण्यतिथी पर स्मरण लेख:प्रखर और बेमिसाल पत्रकार सत्यनारायण श्रीवास्तव

मीडिया            Feb 01, 2016


arun-patelअरुण पटेल स्व. श्री सत्यनारायण श्रीवास्तव अदभुत प्रतिभा के धनी ऐसे पत्रकार थे, जो न केवल एक कुशल संपादक रहे बल्कि उन्हें राजनीतिक रिपोर्टिंग का पुरोधा कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। राजनीतिक रिपोर्टिंग में सटीक तथ्य और अंदरखाने की खबरों को निकालकर लाने में उन्हें महारथ हासिल थी। आजकल के युवा पत्रकार ही नहीं बल्कि पत्रकारिता कर रहे अन्य लोगों के लिए उनकी रिपोर्टिंग की शैली और विश्वसनीयता अनुकरणीय है। स्व. श्रीवास्तव में यह खूबी थी कि राजनेताओं से उनकी गहरी छनती थी और अलग-अलग गुटों व धड़ों तथा दलों में बटे नेताओं से उनके नजदीकी रिश्ते थे। सब उन पर भरोसा करते थे। किस प्रकार राजनीतिक रिश्ते निभाये जाते और कैसे खबरें निकाली जाती तथा किस ढंग से हर नेता का विश्वास जीता जाता है, इसकी भी वे अनुकरणीय मिसाल थे। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूँ कि जब मैंने भोपाल में पत्रकारिता की शुरुआत की उस दौरान सत्यनारायण जी मेरे संपादक थे, लेकिन उन्होंने हमेशा मुझसे ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं उनके अधीन पत्रकारिता की शुरुआत करने वाला नौसिखिया पत्रकार नहीं बल्कि उनका छोटा भाई हूँ। उन्होंने ही यह सिखलाया कि कैसे राजनीतिक रिश्ते बनाये जाते हैं और किस ढंग से परस्पर विश्वास को कायम रखा जाता है। हालांकि मैं संपादकीय विभाग में प्रांतीय समाचारों को देखता था लेकिन उन्होंने मुझे इसके अलावा रिपोर्टिंग करने और कभी-कभी प्रथम पृष्ठ पर काम करने का भी मौका दिया। उनकी यह सीख थी कि भले ही किसी विषय विशेष में रिपोर्टिंग की विशेषज्ञता रखो पर हर प्रकार की रिपोर्टिंग और डेस्क पर काम करने का भी अनुभव होना चाहिए। इस प्रकार मैंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत उनके सानिध्य में की और जब कहीं कोई परेशानी आई तो उन्होंने एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। जहां तक सत्यनारायण श्रीवास्तव की पत्रकार के रुप में जीवन-यात्रा का सवाल है तो वे देश के आजाद होने के साथ ही अपनी पढ़ाई छोड़कर पत्रकारिता से जुड़ गए थे। उन्होंने जबलपुर नगर निगम के पूर्व महापौर एवं प्रखर समाजवादी नेता तथा प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. पं. भवानीप्रसाद तिवारी के सानिध्य में पत्रकारिता की शुरुआत 1948 के उत्तरार्ध में की और उनके द्वारा प्रारंभ किए गए "प्रहरी'' अखबार से वे जुड़े। प्रहरी में कार्य करने के दौरान ही स्व. श्रीवास्तव अनेक साहित्यकार जैसे हरिशंकर परसाईं, रामकृष्ण श्रीवास्तव, शायर ताज भोपाली, नर्बदाप्रसाद सर्राफ, पन्नालाल श्रीवास्तव ''नूर'' पंडित भवानीप्रसाद मिश्र और रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' के सानिध्य में भी आये। वर्ष 1952 में वे जबलपुर से भोपाल आ गए और यहाँ पत्रकारिता प्रारम्भ की। उस समय भोपाल से नवभारत का पूर्ति-अंक निकलता था और सत्यनारायण श्रीवास्तव उसके पहले संपादक बने। नवभारत के बाद उन्होंने दैनिक जागरण में कार्य किया और संपादकीय विभाग के सर्वेसर्वा रहे। साल 1966-67 तक दैनिक जागरण में कार्य करने के बाद उन्होंने नरसिंहपुर से साप्ताहिक 'उदय' और बाद में भोपाल से साप्ताहिक 'जागरुक-जनमत' प्रकाशित किया जो अपनी विशिष्टताओं के लिए काफी जाना-पहचाना गया। वर्ष 1968 के आसपास वे पुनः दैनिक जागरण के संपादकीय विभाग से जुड़े और 1977 तक उसके संपादक रहे। मुझे भी वर्ष 1970 और 71 में लगभग नौ माह तक उनके साथ काम करने का अवसर मिला। साल 1977 से 1979 तक वे दैनिक भास्कर में रहे और वहाँ उन्होंने विशेष राजनीतिक संवाददाता के बतौर रिपोर्टिंग की। जैसा कि कहा जाता है कि जीवन एक पहिए के समान घूमता है, यह वाक्या श्री श्रीवास्तव पर सटीक बैठता है। उन्होंने वर्ष 1979 के उत्तरार्ध में पुनः नवभारत में कार्य प्रारंभ किया। इस प्रकार नवभारत से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले स्व. श्रीवास्तव अपनी जीवन-यात्रा के अंतिम चरण में नवभारत में ही वापस लौट आये थे। अंतिम सांस लेने तक वे नवभारत से ही जुड़े रहे। लगभग 33 वर्षीय पत्रकारिता जीवन में अनेक तत्कालीन राजनीतिक विभूतियों से उनके प्रगाढ़ एवं नजदीकी रिश्ते रहे। पूर्व राष्ट्रपति एवं भोपाल रियासत के विलीनीकरण के बाद मुख्यमंत्री बने डॉ. शंकरदयाल शर्मा से न केवल उनके निकटतम एवं आत्मीय रिश्ते थे बल्कि सत्यनारायण जी की गिनती उनके अत्यन्त विश्वासपात्र मित्रों में होती थी। पंडित द्वारकाप्रसाद मिश्र, श्यामाचरण शुक्ल, मूलचंद देशलहरा, बाबू तखतमल जैन, गोविंद नारायण सिंह, प्रकाशचंद सेठी, अर्जुन सिंह, विद्याचरण शुक्ल, ठा. निरंजन सिंह, हरिविष्णु कामथ और भाजपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री द्वय सुंदरलाल पटवा एवं कैलाश जोशी से भी उनके नजदीकी संबंध थे। राजनीतिक रिपोर्टिंग की अभिनव शैली के प्रखर प्रणेता के साथ ही वे एक चिंतक भी थे, जिन्होंने अपनी प्रभावी लेखन क्षमता से न केवल पत्रकारिता को बुलंदियों पर पहुंचाने का प्रयास किया बल्कि इस क्षेत्र में ईमानदारी, निःस्वार्थता और निष्पक्षता के मापदंडों को भी पुरुस्थापित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। स्व. सत्यनारायण श्रीवास्तव की अपने समकालीन पत्रकारों में कितनी गहरी पैठ थी और लोग उन्हें कितना मानते थे यह वरिष्ठ पत्रकार यशवंत अरगरे के इन शब्दों से मिलता है कि 'भाई' सत्यनारायण श्रीवास्तव का व्यक्तित्व प्रखर, अदम्य लेखनी तथा संयम और मधुरवाणी का संयोग था, जो कि प्रायः किसी एक व्यक्ति में एक साथ कम ही देखने में आता है। पत्रकार के रुप में उनकी कलम का पैनापन विख्यात था परन्तु वे कभी वाचाल नहीं रहे, उनकी बोलचाल में रोष की थर्राहट अथवा द्वेष की वक्रता कभी नजर नहीं आई। नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए स्व. श्रीवास्तव के व्यक्तित्व का यह आयाम अनुकरणीय हो सकता है कि वे अपने व्यवहार और वाणी से सुरम्य रहें और लेखन में प्रखरता का समावेश हो''। वरिष्ठ पत्रकार स्व. श्री श्यामसुंदर व्यवहार का यह कथन भी सटीक था कि "सत्यनारायणजी सबके मददगार एवं विश्वासपात्र थे''। अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रखर पत्रकारों में सत्यनारायण श्रीवास्तव की गिनती होती थी। वे पत्रकारिता की उस पीढ़ी के अगुवा थे जिसमें पत्रकारिता व्यवसाय नहीं बल्कि एक मिशन हुआ करती थी। उनकी विशेषता थी कि वह न केवल अपने कार्यक्षेत्र के प्रति सजग और ईमानदार थे बल्कि उनका संपर्क क्षेत्र भी व्यापक था। एक ओर जहां प्रभावी राजनेताओं से उनके विश्वास से भरे मैत्रीपूर्ण रिश्ते थे तो वहीं वह अपनी कलम के माध्यम से पाठक वर्ग से भी जुड़े रहे और पाठक भी उनसे अपना जुड़ाव महसूस करते थे। स्व. श्री श्रीवास्तव आडम्बर से दूर सादगीपूर्ण जीवन जीते थे और पत्रकारिता के क्षेत्र में सूफी एवं यथार्थवादी विचारधारा के प्रतिनिधि माने जाते थे। आदर्श और स्वाभिमान उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी। अपने मित्रों, विशेषकर राजनेताओं के बीच ''सत्तू भैया'' के नाम से अपनी अलग पहचान रखते थे। यह माना जाता है कि लक्ष्मी और सरस्वती एक स्थान पर एक साथ निवास नहीं करतीं तथा यह स्व. श्रीवास्तव पर सटीक बैठती है। देश-प्रदेश की प्रभावशाली हस्तियों के नजदीकी संपर्क में रहने के बावजूद वे कभी आर्थिक रुप से सम्पन्न नहीं हो पाये और जीवन-पर्यन्त संघर्ष करते रहे। यदि यह कहा जाए कि उन्होंने मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता को अपने जीवन में अंगीकार किया और इसके बदले में कभी कुछ पाने की इच्छा या लालसा नहीं पाली तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।


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