37 साला पत्रकारिता के सफर में कठिन फैसले की घड़ी:के के अग्निहोत्री
मीडिया
Oct 15, 2015
कृष्णकांत अग्निहोत्री
पत्रकारिता के सफर में 37 साल गुजारने के बाद यूं तो केवल दो बार निर्णायक मोड आए, जब मैंने सन् 1979 में पत्रकारिता में कदम रखने के सात साल बाद बंद होते अपने संस्थान ‘हिन्दुस्थान समाचार’, जो एक बहुभाषी सहकारी संवाद समिति थी, को अलविदा कहने का साहस किया। इसे साहस इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि यह सुनिश्चित नहीं था कि इसे अलविदा कहकर जहॉं जा रहा हूं, वहॉं स्थायित्व मिलेगा या नहीं। जून 1986 को मैंने सांध्यकालीन दैनिक समाचार पत्र ‘सांध्य प्रकाश’ में सलाहकार संपादक की पारी शुरू की... श्री सुरेन्द्र पटेल और उनके पुत्र श्री भरत पटेल बडे ही भले और व्यावहारिक पत्रकार-मालिक साबित हुए। सांध्य प्रकाश को उंचाईयों पर पहुंचाने के लिए जितने बेहतर निर्णय इन दोनों ने लिए, उनके लिए मैं उन्हें सलाम करता हूं।
कालांतर में श्री सुरेन्द्र पटेल हम सबको छोड़कर कैलाशवासी हो गए। उनका हंसमुख व्यक्तित्व और रिस्क उठाने की क्षमता का मैं खुद बडा कायल था। मुझे याद है 1986 में यह सांध्य प्रकाश ही था, जिसने भोपाल समाचार पत्र जगत में आंचलिक संवाददाताओं, रिपोर्टर्स, उप संपादक, संपादक जैसी संस्थाओं के वेतन इतने उंचे कर दिए थे कि शहर के अन्य अखबार मालिकों को भी अपने अमले को अपने यहां बनाए रखने के लिए उनके वेतन-भत्ते बढाने पडे थे, जिसमें मुझे याद है.. तब का सबसे तेजी से बढता नामी अखबार भी शामिल था। पत्रकारों की बेहतरी के लिए श्री सुरेन्द्र पटेल एवं श्री भरत पटेल द्वारा उठाए गए इस कदम को मैं सलाम करता हूं।
सांध्य प्रकाश की टीम अनूठी थी और सारे अखबारों से विलग थी। उन्हीं की मदद की वजह से एक समाचार एजेंसी से प्रिंट मीडिया में आया मुझ जैसा अदना सा आदमी, अखबार की बारीकियां समझ-सीख सका, जिसमें किसी अखबार के प्रकाशन के लिए जरूरी सभी विभाग की बारीकियां शामिल हैं। लगभग एक साल ही मुझे सांध्य प्रकाश में सेवा करने का अवसर मिला। उस समय डॉ. वेदप्रताप वैदिक सुप्रसिद्ध समाचार अभिकरण प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिन्दी सेवा ‘भाषा’ के संपादक हुआ करते थे... उनके भोपाल प्रवास के दौरान मेरी उनसे मुलाकात हुई, जब वह सभी अखबारों के दफ्तरों का दौरा करते हुए सांध्य प्रकाश भी आए... तब स्व. श्री सुरेन्द्र पटेल ने अपने सहज स्वभाव के अनुसार डॉ. वैदिक से मेरे काम की तारीफ कर दी।
डॉ. वैदिक ने मुझे ‘भाषा’ में प्रवेश परीक्षा देने का सुझाव दिया, जिसे मैने बाद में श्री सुरेन्द्र पटेल के सामने रख दिया। मैंने कहा—हो आता हूं, किसी नामी राष्ट्रीय समाचार एजेंसी में प्रवेश की परीक्षा देने का अनुभव मिलेगा। पटेल साहब ने भी सरलता से इस सुझाव को मंजूर कर लिया। प्रवेश परीक्षा का जब परिणाम आया, तो पीटीआई-भाषा वालों ने मुझे इंटरव्यू के लिए आमंत्रित कर लिया... तब मैं घबराया, मित्रों से सलाह-मशविरा किया... सबने कहा, जाना चाहिए, मैने कहा, पटेल साहब क्या सोचेंगे कि मैं उनका संस्थान छोडकर जाना चाहता हूं, उन्हें इस तरह धोखा देना उचित नहीं है। मैंने मित्रों के सुझाव को दरकिनार कर एक शाम अखबार निकलने के बाद पटेल साहब से कहा कि मुझे आपसे भरत भैय्या की उपस्थिति में कुछ जरूरी बात करना है, वह फौरन सहमत हो गए।
अमूमन अखबार निकलने के बाद वे इमारत के प्रथम तल स्थित अपने घर के झूले में बैठकर कुछ अन्य वरिष्ठ सहयोगियों के साथ अखबार में छपी खबरों की मीमांसा किया करते थे... लेकिन उस दिन उन्होने उसे कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया। उनके कक्ष में सहमते हुए मैने भाषा से इंटरव्यू के लिए आए निमंत्रण की पूरी बात बताई और कहा कि यदि मैं इसमें चयनित हो जाता हूं, तो मैं वहां ज्वाइन करना चाहता हूं।
भरत भैय्या के चेहरे के भाव तो मैं नहीं देख पाया, लेकिन पटेल साहब के चेहरे पर सहज और सरल भाव थे। उन्होने कहा कि तुम्हें लगता है कि इसमें तुम्हारी बेहतरी है, तो जरूर जाओ। मैंने कहा कि अभी तो इंटरव्यू के लिए जाना है, चयन नहीं हुआ है... लेकिन उन्होने कहा कि आप इंटरव्यू में जरूरी सलेक्ट होगे, यह मुझे मालूम है। मेरी आंखें भर आई और मैं मन ही मन पटेल साहब को प्रणाम कर कक्ष से बाहर निकल आया।
स्वाभाविक था कि पटेल साहब का विश्वास, आत्मविश्वास से लबरेज था.. उन्होंने दुनिया देखी थी, वह गलत कैसे हो सकते थे। इंटरव्यू का परिणाम आया, तो मैं पीटीआई-भाषा की नौकरी के लिए सलेक्ट हो गया था। शायद दैनिक सांध्य प्रकाश के इतिहास में, मुझे जो ज्ञात पडता है, मैं पहला उनका एम्पलाई था, जिसे बकायदा विदाई पार्टी दी गई और आज भी मुझे याद है कि बतौर स्मृति चिन्ह मुझे ‘शेर’ का पोट्रेट दिया गया था।
मित्रों, अब पीटीआई-भाषा में सेवा के लगभग 29 साल खपाने के बाद पत्रकारिता का मेरा सफर तीसरी बार फिर निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, क्योंकि आठ माह बाद जून 2016 को मैं भाषा से सेवानिवृत्त हो रहा हूं, इसका मुझे दुख है कि जिस संस्थान में मैंने 29 साल बिताए, अचानक एक जुलाई 2016 को वह बेगाना हो जाएगा। मैं भाव विव्हल हूं... कुछ बात समझ नहीं आ रही है।
पीटीआई-भाषा के 29 साला पत्रकारिता के अनुभव मैं फिर किसी अवसर पर आप सबसे साझा करूंगा, लेकिन अभी बात नियति की... जो एक बार फिर पत्रकारिता में मेरे लिए एक चैलेंज लेकर आई है, मुझे इलेक्ट्रानिक मीडिया से एक ऑफर है। पहले समाचार एजेंसी, फिर अखबार और अब इलेक्ट्रानिक मीडिया। जाना तो है... तय है, लेकिन आप सबकी ताकत चाहिए कि मैं इस नई चुनौती पर भी उम्र के इस पड़ाव पर खरा उतरूं और कुछ ऐसा कर दिखाउं, जिससे मेरा संस्थान खूब फले, फूले और उन्नति के नए सोपान तय करे। आमीन...
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