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बुजुर्गों के जीवन को आसान, खुशहाल, शानदार बनाने में मददगार एआई

मीडिया            Nov 02, 2025


 राजकुमार जैन।

75 वर्षीय रमेश कुमार दिल्ली के अपने फ्लैट में अकेले रहते हैं. बेटा अमेरिका में इंजीनियर है.  पिछले महीने जब वे बाथरूम में फिसल कर गिरे, तो उनकी कलाई में बंधी स्मार्टवॉच ने तुरंत आपात सिग्नल (अलर्ट) भेज दिया. 

पड़ोसी और अन्य परिचित मौके पर पहुंचे, एम्बुलेंस बुलवाई गई और रमेश जी बच गए. यह घटना तकनीक की उस शक्ति का प्रतीक है, जो आज बुज़ुर्गों को संवेदी सहयोग के साथ सुरक्षा और आत्मनिर्भरता प्रदान कर रही है.

अपना देश तेज़ी से बदल रहा है. बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और बदलती जीवनशैली के कारण लोग लंबी उम्र जी रहे हैं. आज देश में 60 वर्ष से ऊपर के लगभग 15 करोड़ लोग हैं और 2050 तक यह संख्या दोगुना होने का अनुमान है. छोटे परिवार, बच्चों के विदेश या महानगरों में पलायन से उपजे अकेलेपन ने बुज़ुर्गों की ज़िंदगी को कठिन बना दिया है.

यह अकेलापन न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि शारीरिक बीमारियों का जोखिम भी बढ़ा देता है. ऐसे में एआई एक संवेदनशील और व्यावहारिक साथी बनकर उनके जीवन को सुरक्षित, सक्रिय और गरिमामय बना रहा है. वर्तमान में बाजार में एआई संचालित ऐसे कई उपकरण उपलब्ध हैं जो बुजुर्गों का जीवन आसान और खुशहाल बनाते हैं. 

  • फॉल डिटेक्शन स्मार्टवॉच और फिटबिट जैसे उपकरण गिरने पर तुरंत परिवार या डॉक्टर को अलर्ट भेजते हैं. त्वरित मदद मिलने से जीवन रक्षा की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.
  • एआई-संचालित टेलीमेडिसिन प्लेटफ़ॉर्म घर बैठे चिकित्सकीय परामर्श और रिपोर्ट विश्लेषण की सुविधा देते हैं.
  • एआई एल्गोरिद्म मधुमेह, उच्च रक्तचाप या हृदय की अनियमितता के शुरुआती संकेतों की पहचान कर सकते हैं, जिससे समय रहते उपचार संभव होता है.
  • स्मार्ट पिल डिस्पेंसर जैसे हीरो या मेडमाइन्डर बुज़ुर्गों को दवा समय पर लेने की याद दिलाते हैं, भूली हुई खुराक की सूचना परिवार को भेजते हैं और औषधी क्रम का पालन सुनिश्चित करते हैं.
  • स्मार्टवॉच और हेल्थ मॉनिटरिंग डिवाइस लगातार हृदय गति, रक्तचाप, ऑक्सीजन स्तर और नींद की गुणवत्ता पर नज़र रखते हैं.
  • स्मार्ट शौचालय अब मूत्र और मल के विश्लेषण से संक्रमण या निर्जलीकरण जैसी समस्याओं का प्रारंभिक पता लगाकर चिकित्सक को चेतावनी भेज सकते हैं, यह भविष्य की “डिजिटल डायग्नोस्टिक्स” क्रांति की दिशा में एक कदम है.

संवाद के साथी और भावनात्मक सहयोगी : वॉयस असिस्टेंट जैसे अमेज़न एलेक्सा और गूगल असिस्टेंट अब हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं.  लाइट बंद करो, मौसम का हाल बताओ, ग़ज़ल सुनाओ या बेटे को कॉल लगाओ ये सब आदेश बुज़ुर्ग केवल बोलकर दे सकते हैं.  इससे तकनीक का उपयोग सहज बनता है और दुनिया से संवाद कायम रहता है.

साथी रोबोट जैसे मित्रा या एलिकयु भावनात्मक सहयोग के लिए विकसित किए गए हैं.  ये बातचीत करते हैं, खेल खिलाते हैं, व्यायाम की याद दिलाते हैं और अकेलेपन की भावना को घटाते हैं.  कई अध्ययनों में पाया गया है कि ऐसे रोबोट बुज़ुर्गों में डिप्रेशन और डिमेंशिया जैसे संज्ञानात्मक ह्रास को कम करने में मददगार साबित हो रहे हैं.

वर्चुअल रियलिटी (वीआर) थेरेपी अब मानसिक और शारीरिक पुनर्वास में उपयोगी साबित हो रही है.  यह तकनीक एक इमर्सिव वातावरण बनाती है जहाँ बुज़ुर्ग संतुलन अभ्यास कर सकते हैं या अपनी पुरानी यादों से जुड़ सकते हैं, जैसे अपने पुराने घर की गलियों में “वर्चुअली टहलना”.

स्वतंत्र और सक्रिय जीवन : जीपीएस-सक्षम स्मार्ट ट्रैकिंग उपकरण अल्ज़ाइमर या डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों की लोकेशन पर नज़र रखते हैं और भटकने की स्थिति में परिवार को अलर्ट भेजते हैं.

आवाज़ और हावभाव से नियंत्रित व्हीलचेयर अब बाजार में उपलब्ध हैं जिन्हें केवल बोलकर या हाथ के इशारों से चलाया जा सकता है, जिससे गतिशीलता और स्वतंत्रता दोनों बढ़ती हैं.

एआई-सक्षम नेविगेशन टूल दृष्टिबाधित या कमजोर सक्रियता वाले व्यक्तियों को सुरक्षित रूप से घर या बाहर घूमने में मदद करते हैं.

एआई-संचालित राइड-हेलिंग ऐप्स में बुज़ुर्गों के लिए वॉयस-कमांड और सरल इंटरफ़ेस जोड़े जा रहे हैं ताकि वे यात्रा को स्वयं नियंत्रित कर सकें.

दैनिक जीवन में सरलता: स्मार्ट होम डिवाइस घर को सुरक्षित और आरामदायक बनाते हैं.  ये गिरने, निष्क्रियता, गैस रिसाव या धुएं की पहचान कर सकते हैं और तुरंत अलर्ट भेजते हैं.  स्मार्ट थर्मोस्टैट तापमान को स्वतः नियंत्रित करते हैं, और स्वचालित प्रकाश व्यवस्था रात में सुरक्षा बढ़ाती है.

टाइल ट्रैकर जैसे छोटे वाटरप्रूफ स्टिकर रिमोट, चाबी या वॉलेट जैसी चीजें ढूंढने में मदद करते हैं जो भूलने की सामान्य प्रवृत्ति के कारण अक्सर खो जाती हैं.

डोडो मेट्रोनोम लाइट सिस्टम जैसे एआई-आधारित उपकरण बिना दवा के नींद में सुधार लाने में सहायक हैं,  ये श्वसन को प्रकाश की लय से समन्वित करना सिखाते हैं, जिससे प्राकृतिक रूप से नींद आती है.

सीखना और मानसिक सक्रियता : बुज़ुर्ग अक्सर नए कौशल सीखना चाहते हैं. एआई-संचालित शिक्षा प्लेटफ़ॉर्म अब क्षेत्रीय भाषाओं में अनुकूलित पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं. इससे वे संगीत, भाषा, कला या तकनीक में अपनी रुचियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं.  यह सक्रियता न केवल मानसिक स्वास्थ्य को सशक्त बनाती है बल्कि आत्मसम्मान को भी बढ़ाती है.

 वित्तीय सुरक्षा और प्रशासनिक सहायता : वरिष्ठ नागरिक वित्तीय धोखाधड़ी के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं. एआई-आधारित बैंकिंग सिस्टम असामान्य गतिविधियों की पहचान कर तुरंत चेतावनी दे सकते हैं.इसी तरह, एआई चैटबॉट्स और वर्चुअल असिस्टेंट सरकारी योजनाओं, पेंशन, बीमा और कानूनी सहायता से जुड़ी जटिल प्रक्रियाओं को सरल बनाते हैं, जिससे बुज़ुर्गों को डिजिटल सेवाओं का लाभ आसानी से मिल सके.

देश में कई भारतीय स्टार्टअप इस क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं. एमोहा एल्डर केयर घर पर देखभाल और फॉल डिटेक्शन सेवाएँ देती है. काइटस सीनीयर केयर स्वास्थ्य निगरानी और वेयरेबल डिवाइस प्रदान करती है.

अनवाया का ‘एआई 360 डिग्री प्लेटफ़ॉर्म’ लगातार रक्तचाप, हृदय गति और लोकेशन ट्रैकिंग जैसी सुविधाओं को जोड़ता है. मुंबई के छात्र राही शाह और हृदय बोरियावाला ने वॉकफिट नामक एआई-आधारित वॉकिंग स्टिक अटैचमेंट बनाया है जो गिरने से रोकने में मदद करता है. 

भारत जैसे विशाल देश में सभी वर्गों के लिए तकनीक तक समान पहुंच एक चुनौती है. शहरी क्षेत्रों में जहां इंटरनेट और स्मार्टफोन सर्वसुलभ हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में डिजिटल साक्षरता और महंगे उपकरण बाधा हैं. समाधान के रूप में सरकार को महंगे उपकरणों पर सब्सिडी, एनजीओ द्वारा प्रशिक्षण शिविर और स्थानीय भाषाओं में इंटरफ़ेस उपलब्ध करवाने जैसे कदम उठाने होंगे. साथ ही, बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य और निजी डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एन्क्रिप्शन और मजबूत गोपनीयता नीति आवश्यक है.

आगामी वर्षों में और भी क्रांतिकारी उपकरण आएंगे. ये उपकरण बुजुर्गों को आत्मनिर्भर, सुरक्षित और खुशहाल जीवन देने में मदद करेंगे.एआई केवल तकनीक नहीं, बल्कि परिवार और समाज का संवेदनशील सहयोग है. बुजुर्गों को तकनीक सिखाने, किफायती उपकरण उपलब्ध कराने और जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी हमें निभानी होगी. 

तकनीक तब सार्थक होती है जब वह इंसानियत की सेवा करे, और बुजुर्गों को इस सेवा की सबसे अधिक आवश्यकता है. भारतीय संस्कृति में माता-पिता की सेवा सर्वोच्च धर्म मानी गई है, पर आधुनिक जीवन की जटिलताओं ने इसे कठिन बना दिया है. 

एआई इस खाई को संवेदनशीलता से पाट रहा है, यह केवल मशीन नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सहायक है जो परिवार की अनुपस्थिति में भी स्नेह और सुरक्षा का भाव बनाए रखता है. आज जब रमेश कुमार अपनी आवाज़ से लाइट बंद करते हैं, एलेक्सा से जगजीतसिंह की ग़ज़ल सुनते हैं या दवा की याद दिलाने पर मुस्कुराते हैं, तो यह सिर्फ तकनीक नहीं, आत्मनिर्भरता और गरिमा की अनुभूति है.

एआई अब केवल भविष्य की अवधारणा नहीं, बल्कि वर्तमान का करुणामय साथी है. यह बुज़ुर्गों के लिए सुरक्षा कवच, संवाद का माध्यम और आत्मसम्मान का सहारा बन रहा है. समाज, सरकार और परिवार, मिलकर इस तकनीक को संवेदना के साथ अपनाएं, तो भारत के बुज़ुर्ग लंबी और सुरक्षित ज़िंदगी शान से जी सकेंगे.

लेखक एआई विशेषज्ञ हैं

 


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