ममता मल्हार।
पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में कुछ ऐसे वरिष्ठ पत्रकारों का सानिध्य मार्गदर्शन मिलता रहा कि उस वक्त का उनका सिखाया मेरी पत्रकारिता की नींव बना। उनमें से एक डॉ. मनोज माथुर थे। जिन्हें ब्लिट्ज़ वाले माथुर साहब के नाम से जाना जाता था। वर्ष 2002-3 में पीपुल्स ग्रुप ने एक साप्ताहिक टेबलॉयड की शुरुआत पुराने भोपाल के शीशमहल से की थी।
उस अखबार में मुझे राजनीतिक, प्रशासनिक रिपोर्टिंग के साथ विभिन्न क्षेत्रों की प्रसिद्ध हस्तियों के इंटरव्यू की जिम्मेदारी भी मिली थी। माथुर साहब सम्पादक थे। आलम यह था कि जहां भी जाएं या फोन पर बात करें विजय द्वार की तो सामने से जवाब मिलता अरे वो माथुर साहब वाला अखबार।
मेरी याद में, मेरे पत्रकारिता के अनुभव में यह शायद वह आखिरी अखबार था जो सम्पादक के नाम से जाना जाता था। बाकी आज जो पत्रकार स्वतन्त्र काम कर रहे हैं उनमें गिने चुने मीडिया उपक्रम हैं जो पत्रकार के नाम से जाने जाते हैं। यहां मैंने अनुभव किया कि पत्रकारों की इज्जत होती थी।
जब भी किसी बड़े नेता से इंटरव्यू के लिए समय मांगती तो जवाब मिलते अरे विजयद्वार के द्वार पर बुलाइये वहीं इंटरव्यू देंगे। दिग्विजय सिंह मप्र के मुख्यमंत्री थे तब चलाचली की बेला थी।
भोपाल के एक नामी वकील के इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि दिग्विजय राजनीतिक सन्यास लेंगे। यह खबर मैंने बनाई और छप गई और वह सही भी साबित हुई। दिग्विजय वाकई करीब डेढ़ दशक तक राजनीति से लगभग दूर हो गए।
दूसरे दिन सर ने बुलाया और कहा ऐसी खबर लिखने से पहले एक बार बात कर लिया करो।
मैं एक फ्रेशर पत्रकार थी और एक नौसिखिया पत्रकार को इतना कुछ उस प्लेटफार्म से काम करने को मिल रहा था यह बड़ी बात थी आज समझ आता है। ये अलग बात रही कि जितने संस्थान मैंने छोड़े विद्रोह करके ही छोड़े।
खैर अब पत्रकारिता का यह खोया मकाम शायद ही वापस आ सके मगर जो गिने चुने इस मुकाम को कायम रखने में अपने स्तर पर जुटे रहते हैं वे वाकई तारीफ के काबिल लोग हैं।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ मनोज माथुर को सादर नमन।
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