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नदी संहिता के उपाय अपनाने से ही नदियाँ बचाना संभव

मीडिया            Mar 24, 2019


मल्हार मीडिया भोपाल।
जाने-माने भूजल विज्ञानी कृष्ण गोपाल व्यास ने उनके द्वारा विकसित नदी संहिता (नदी मैनुअल) में उल्लेखित उपायों की सहायता से सिद्ध किया कि सूखती नदियों के प्रवाह को लौटाना और उन्हें अविरल बनाना संभव है।

उल्लेखनीय है कि श्री व्यास देश के पहले जल विज्ञानी हैं जिन्होंने नदियों को जिंदा रखने के लिए ‘नदी संहिता’ विकसित की है।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माधवराव सप्रे संग्रहालय शोध संस्थान में 23 मार्च को आयोजित नदी संहिता पर हुए विमर्श कार्यक्रम में बड़ी संख्या में इंजीनियरों, भू-विज्ञानियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडियाकर्मियों ने भाग लिया।

श्री व्यास ने नदी संहिता पर मोटे-मोटे बिन्दुओं की चर्चा की। यह संहिता उन सब लोगों के लिए उपयोगी और सार्थक है जो पर्यावरण तथा नदी संरक्षण के काम से जुड़े हुए हैं। वास्तव में उनके लिए यह मार्गदर्शिका है।

प्रस्तुति और लंबी चर्चा के बाद प्रतिभागियों का अभिमत था कि नदी संहिता में बताए मार्ग पर चलकर नदियों को सूखने से बचाया जा सकता है। उनके प्रवाह को अविरल बनाया जा सकता है। इसके लिए प्रयासों की शुरुआत मुख्य नदियों की सहायक नदियों से करनी होगी।

जैसे नर्मदा के प्रवाह को बढ़ाना है तो उसके कछार की सभी सहायक नदियों के कैचमेंट में बड़े पैमाने पर भूजल रीचार्ज का काम करना होगा। इसके लिए बड़ी संख्या में बारहमासी ज्यादा से ज्यादा गहरे तालाब बनाने होंगे। नदी के उपयोग में किफायत बरतनी होगी।

नदी की रेत का अमर्यादित खनन भी उसके प्रवाह को हानि पहुँचाता है। उसे रोकने के लिए खनन प्रक्रिया मात्रा को वैज्ञानिक आधार देना होगा। नदियों में मिलने वाले गंदे पानी को पूरी तरह रोकना होगा। नालों का गंदा पानी साफ करने वाले सफाई यंत्रों को लगाना होगा।

नदी के कछार में जैविक खेती को अपनाना होगा। पानी की निर्मलता और जैव विविधता लौटानी होगी। यह सरकार की जिम्मेदारी तो है ही, पर यह लक्ष्य हासिल करने में समाज की भी अहम भूमिका है।

मौजूदा हालातों में नदी तंत्र पर गंभीर खतरा है। नदियाँ सूख रही हैं और मरने वाली नदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह संकट नदी तंत्रों के अस्तित्व के लिए खतरा है। यदि उस संकट की अनदेखी की तो अगले कुछ सालों में देश की सभी नदियाँ मौसमी बनकर रह जाएँगी। गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी बड़ी नदियों की स्थिति खराब होगी।

विमर्श की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र हरदेनिया ने कहा कि इस संहिता को तैयार करने में श्री व्यास ने गहरा श्रम और अध्ययन किया है। उनके दीर्घ अनुभव का इसमें निचोड़ है। लेकिन अभी यह अंतिम नहीं है इसमें और भी कई बातें जुड़ेंगी। इसमें विषय विशेषज्ञ अपने सुझाव अवश्य दें।

विमर्श में हिस्सा लेते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार राकेश दीवान ने कहा कि मौजूदा समय में विकास की जो अवधारणा है उसे बदलनी होगी तभी नदियों को बचाया जा सकता है। भूविज्ञानी प्रोफे. धनंजय सराफ का सुझाव था कि इस संहिता में जियो फिजिक्स को भी जोड़ना होगा तभी प्रयास सार्थक होंगे। जल संसाधन विभाग के पूर्व अभियंता एस.एस. धोड़पकर ने रोजमर्रा के जीवन में पानी बचाने की जरूरत पर बल दिया।

ओम प्रकाश भार्गव ने कहा कि नदियों को बचाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ आगे आना होगा। सी.पी. श्रीवास्तव ने इन कार्यों में युवा पीढ़ी को जोड़ने पर बल दिया। इनके साथ ही विमर्श में प्रोफे. अश्विनी, यू.आर. सिंह, आर.एस. कश्यप, के.एस. सेठ, ममतानी, डा. शिवकुमार अवस्थी, डा. हरप्रसाद शर्मा, टी. हबीब, वी.एस. पोतनीस, प्रोफे. श्याम बोहरे, प्रबल राय, आर.एस. शर्मा, वसंत निरगुणे, कमलेश पारे, डा. जवाहर कर्नावट, राकेश दीक्षित, प्रोफे. वी.पी. सिंह आदि ने सहभागिता की।

 


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