मल्हार मीडिया भोपाल।
ज्ञानतीर्थ सप्रे संग्रहालय में आज सोमवार 14 अक्टूबर को कलागुरु लक्ष्मण भांड का स्मरण किया गया। संग्रहालय की श्रंखला ‘सृजन-संवाद’ के तहत आयोजित स्मृति प्रसंग में कलागुरु के शिष्य, उनके सहयोगी तथा परिजनों ने उनके साथ बिताये क्षणों को याद करते हुए कला जगत में उनके अवदान को रेखांकित किया। कला समीक्षक रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि भांड साहब मूलत: चित्रकार, पेशे से पत्रकार तथा कला इतिहास के ज्ञाता थे।
वे चित्रकार होने के साथ-साथ कई भाषाओं के ज्ञाता थे। हिंदी,मराठी, अंग्रेजी के अलावा संस्कृत के भी श्रेष्ठ जानकार थे। भोपाल में आने के बाद उर्दू भी सीखी। वे कला के जितने पारखी थे उतनी व्यक्तियों के प्रति भी उनकी परख थी। वे किसी व्यक्ति का फोटो देख उसकी रुचियां तक जान लेते थे। उन्होंने बताया कि छात्र जीवन में वे स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े रहे।
कलागुरु के सहयोगी रहे जनसंचार मर्मज्ञ रघुराज सिंह ने कहा कि- वे चित्रकला और लेखन का संगम थे। यह विशेषता बिरले लोगों में ही होती है। कला के प्रति तो उनका समर्पण था ही लेकिन शासकीय सेवक के रूप में जो उन्हें दायित्व दिया जाता था उसे भी वे पूरी लगन से निभाते थे। उनकी इस खूबी के कायल तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारी भी रहा करते थे।
उन्हें अपेक्षित सम्मान नहीं मिला
रघुराज सिंह ने इस बात पर दु:ख भी जताया कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, लेकिन वे स्व प्रचार से दूर ही रहे। यही वजह है कि उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे अधिकारी थे। इस दिशा में हमें सोचना होगा।
लक्ष्मण भांड के शिष्य रहे विनय सप्रे ने अपने गुरु का स्मरण करते हुए कहा कि- वे अच्छे चित्रकार होने के साथ ही अच्छे शिक्षक भी थे। उनके पास जो सीखने जाता था उसके भीतर की संभावनाओं को वे टटोल लेते थे, उसी आधार पर उसकी प्रतिभा को निखारते थे। उन्होंने स्वीकार किया कि भांड साहब ने ही मेरे द्वारा उकेरी गई आड़ी-तिरछी रेखाओं में कला देख ली थी और उसे निखार कर मेरी दिशा बदल दी। इसी तरह अन्य शिष्य सुषमा श्रीवास्तव ने भी कहा कि वे अपने सहज स्वभाव से सभी को अपना बना लेते थे। यही वजह है कि उनके पास सीखने गया व्यक्ति उनका ही होकर रह गया।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रो. रत्नेश ने कहा कि मेरा भांड साहब से सीधा परिचय नहीं रहा लेकिन उनके बारे में जो सुना और पढ़ा है उस आधार पर कह सकता हूं कि उनके साथ रहने वाला स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता होगा। उन्होंने आयोजन के लिए सप्रे संग्रहालय को साधुवाद भी दिया। इसके पूर्व संग्रहालय की ओर से स्वागत करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र हरदेनिया ने कलागुरु की पुस्तकें भेंट की। अंत में हाल ही में दिवंगत शिखर सम्मान प्राप्त कलागुरु रामचंद भावसार को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम का संचालन निदेशक अरविंद श्रीधर ने किया। कार्यक्रम में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर, जनसंपर्क विभाग के पूर्व अपर संचालक जगदीश कौशल, सुरेश गुप्ता सहित कलाजगत की विभूतियां उपस्थित रहीं।
अण्णा संबोधन में ही अपनत्व का भाव
आरंभ में भांड साहब की पुत्रवधु तथा मूर्तिकार अनुप्रिया ने कहा कि हमारे श्वसुर जी को हम सभी ‘अण्णा’ कहकर बुलाते थे, इसीलिये इसी संबोधन में आत्मीयता का भाव आता है। उन्होंने कहा कि हम दोनों बहुओं को हमेशा बेटियों का प्यार दिया। यही वजह रही कि मायके में पिता नहीं होने के बाद भी पिता की कमी नहीं खलने दी। उन्होंने अपने ससुर जी को समर्पित कविता का पाठ भी किया।
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