ममता यादव।
मध्यप्रदेश के पत्रकारों में रविवार की शाम 8 बजे के बाद बधाईयों का दौर शुरू हो चुका था। आखिर को लंबे समय बाद सरकार की तरफ से पत्रकार कमेटियों का गठन किया गया था। खबर जनसंपर्क की तरफ से सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
यूं पत्रकार भी हैरान थे जिस तरह एक—एक कमेटी में 30 से ज्यादा पत्रकार शामिल किए गए थे। कई नाम ऐसे थे जो पहली बार शामिल किए गए। थे अचानक रात 12 बजे जनसंपर्क की तरफ से कमेटियां भंग करने का समाचार जारी कर दिया गया।
इससे अब यह कहा जा रहा है कि कमलनाथ सरकार की किरकिरी में इस घटनाक्रम से और इजाफा हो गया। बहतहाल पढ़ें खबर
ये संभवत: पहली बार हुआ कि राज्य स्तरीय अधिमान्यता समिति़, पत्रकार संचार कल्याण और पत्रकारों की कठिनाइयों का अध्ययन और निराकरण के लिये सुझाव देने संबंधी समितियों का गठन किया और कुछ ही घंटों बाद तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक समितियां भंग भी कर दी गईं।
यूं भी जनता के बीच तेजी से अलोकप्रिय होती सरकार के कारिंदे और कांग्रेसियों के कारण मीडिया और सरकार के बीच लगातार दूरियां ही बढ़ रही हैं। सरकार की छवि भी दिन पर दिन खराब हो रही है सो अलग। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में बैठे चंद लोग जनसंपर्क को अपने हिसाब से हांकने का प्रयास कर रहे हैं।
पूर्व में जारी की गई समितियों की सूची पढ़ें यहां क्लिक करे
खैर आज जो हुआ यह सीधा—सीधा पत्रकारिता और पत्रकारों के लिये असम्मानजनक है। एक नहीं कई सम्मानित नाम समितियों में थे। सोशल मीडिया पर बधाईयों का सिलसिला भी शुरू हो गया था। पर पत्रकारों का यह उत्साह ज्यादा देर टिका नहीं रात 12 बजे जनसंपर्क के अधिकारी की तरफ से जारी की गई खबर में समितियों को भंग करने की जानकारी आ गई।
सूत्रों की मानें तो बताया जा रहा है कई क्षेत्रों के विधायकों ने इन समितियों के बारे में नाराजगी जताई क्योंकि उन्हें विश्वास में नही लिया गया न ही उनसे पूछा गया। दूसरा समितियों में मीडिया समूहों के लोगों के बैलेंस भी नहीं बन पाया।
जो भी हो मध्यप्रदेश की पत्रकारिता और पत्रकारों की इससे बड़ी किरकिरी शायद ही कभी हुई हो या भविष्य में हो। अब निर्णय पत्रकारों को लेना है कि वे भविष्य में ऐसी समितियों का हिस्सा बनना पसंद करेंगे या नहीं।
कायदे से अब भी जनसंपर्क विभाग और कांग्रेस को सबक ले लेना चाहिए। मीडिया से संबंध दिन पर दिन खटास भरे ही हो रहे हैं। इस पर गौर करने की जरूरत अब सरकार और पीसीसी दोनों को ही है।
इससे मैसेज यह भी गया है कि जनसंपर्क और सरकार के बीच तारतम्य और तालमेल दोनों की कमी है। पर बेहतर हो कि इस कमी में पत्रकारों को न घसीटा जाए।
पत्रकारों के हाथ में है कि वे अब अपने स्वाभिमान को ताक पर न रखें।
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