राकेश दुबे।
देश की शीर्ष अदालत ने सत्ताधीशों को आईना दिखाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम चैनल मीडिया वन पर लगे प्रतिबंध को हटाते हुए सरकार को यह नसीहत दी है।
याद कीजिए, केंद्रीय सूचना व प्रसारण और गृह मंत्रालय ने इस मलयालम चैनल मीडिया वन को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बताते हुए बीती 31 जनवरी को इस पर रोक लगायी थी।
याद कीजिए, उस कहावत को कि “मजबूत लोकतंत्र के लिये मीडिया की आजादी ज़रूरी है।“ इसी तथ्य को एक बार फिर दोहराकर देश की शीर्ष अदालत ने सत्ताधीशों को आईना दिखाने का ही प्रयास किया है।
शीर्ष अदालत की पीठ ने यह भी कहा कि चैनल के शेयरधारकों का जमात-ए-इस्लामी हिंद से जुड़ाव का दावा चैनल के अधिकारों को प्रतिबंधित करने का वैध आधार भी नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई़ चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने बीते बुधवार कहा कि सरकार मीडिया की आजादी पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगा सकती।
ऐसा करने से लोकतंत्र में जनता की अभिव्यक्ति की आजादी बाधित होती है। कोर्ट ने माना कि सूचना माध्यमों की आजादी से ही मजबूत लोकतंत्र संभव है।
शीर्ष अदालत ने इस सर्वविदित तथ्य को भी दोहराया कि मीडिया का दायित्व है कि वह सच को सत्ता के सामने लाये।
साथ ही जनता के सामने वास्तविक तथ्य पेश करे ताकि जनता में तार्किक सोच से बेहतर विकल्प चुनने की सोच विकसित हो सके।
सही मायनों में मीडिया की आजादी पर प्रतिबंध एक तरह से जनता की अभिव्यक्ति पर ही प्रतिबंध है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक विचारधारा से सामाजिक व आर्थिक मुद्दों का निर्धारण लोकतंत्र के लिये चुनौती पेश करने वाला है।
साथ ही यह भी कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कानूनन हुए नागरिक सुधारों को बाधित नहीं किया जा सकता।
इतना ही नहीं, कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट द्वारा सरकार की ओर से लगाये गये प्रतिबंधों को जारी रखने वाले आदेश को भी खारिज कर दिया।
शीर्ष अदालत का मानना था कि स्वस्थ लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी अपरिहार्य है।
हाल के दिनों में सत्ताधीशों को रास न आने वाले मीडिया संस्थानों पर भृकुटि टेढ़ी करने के तमाम वाकये सामने आये हैं। मीडिया के प्रति सहिष्णुता का जो भाव आजादी के बाद की सरकारों में नजर आता था, वह अब नजर नहीं आता।
कहीं न कहीं सरकारों की कोशिश रही है कि जनचेतना को प्रभावित करने वाले मुखर आलोचक संस्थानों पर येन-केन-प्रकारेण दबाव बनाया जाये ताकि वे सत्ताधीशों की इच्छा के अनुसार खबरों के प्रसारण करने को बाध्य हों।
इसमें दो राय नहीं कि कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा अपने आर्थिक हितों तथा राजनीतिक दल विशेष की विचारधारा से प्रभावित नीतियों के चलते पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन के मामले भी प्रकाश में आये हैं।
लेकिन इसके बावजूद मीडिया का बड़ा वर्ग लोगों तक तथ्यों पर आधारित सूचना पहुंचाने के प्रयासों में निरंतर लगा रहा है।
कई राज्यों में राजनीतिक दल व धर्म विशेष की विचारधारा वाले प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दखल रहा है, लेकिन इसके बावजूद लोकतंत्र के व्यापक दायरे में मीडिया की आजादी समय की जरूरत है।
सजग व स्वतंत्र मीडिया ही समाज में स्वस्थ व प्रगतिशील विचारधारा के पोषण में सहायक होता है। मीडिया को भी तटस्थता व निष्पक्षता के साथ सूचना संप्रेषण का दायित्व निभाना चाहिए।
जब भी कोई मीडिया संस्थान मर्यादा की रेखा का उल्लंघन करता है और राजनीतिक दल या विचारधारा विशेष से प्रभावित होता है तो समाज में स्वत: ही उनकी स्वीकार्यता को आंच आती है। ऐसी ही स्थिति में सरकारों को हस्तक्षेप के लिये मौका मिलता है।
निस्संदेह, पत्रकारिता एक ऋषिकर्म की तरह होती है। बिना किसी आर्थिक प्रलोभन और नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए यदि प्रेस जिम्मेदारी से भूमिका निभाती है तो जनता का सहयोग भी मिलता है।
सही मायनों में प्रेस की आजादी जनता की अभिव्यक्ति की ही आजादी है। मीडिया को भी भारतीय संविधान के तहत उतनी ही आजादी मिली है, जितनी कि एक आम आदमी को हासिल है।
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