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आत्मकेंद्रित आत्ममुग्ध मीडिया की चुप्पी उस दिन हैरान करने वाली थी

मीडिया            Apr 19, 2018


सोमदत्त शास्त्री।
ये हैरान कर देने वाली खामोशी थी। भोपाल में 11 अप्रैल के अखबारों के पन्नों से उन तमाम घटनाओं की सुर्खियां लगभग गायब थीं, जिनसे मैं कल पुरकशिश तरीके से तमाम दिन भीगता सा गुजरता रहा था।

मीडिया की तमाम नामचीन हस्तियां जिनमें मेरे अग्रज श्री रामबहादुर राय, ,पंजाब केसरी के लिक्खाड़ मालिक श्री अश्विनी कुमार, यशस्वी लेखिका सुश्री नलिनी सिंह, जी. हिन्दुस्तान के युवा संपादक जिन्हें मैं मौजूदा दौर का बेहतरीन पत्रकार मानता हूँ।

श्री ब्रजेश सिंह और मध्यप्रदेश से पत्रकारिता की अनुपम देन मेरे अनुज भाई श्री आनंद पांडे तथा वरिष्ठ पत्रकार मित्र श्री प्रकाश हिंदुस्तानी मौजूद थे।

इनके अलावा तीन अलग-अलग आयोजनों में हमारे गौरव वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव, देश मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ओपी रावत, मप्र सरकार के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव के अतिरिक्त जनसंपर्क के रिटायर्ड डायरेक्टर श्री सुरेश तिवारी भी मौजूद थे।

इन तीनों आयोजनों में सिर्फ एक सरकारी आयोजन की आधी-अधूरी अधकचरा खबरें छपी नजर आती हैं। शेष घटनाओं में हमारे प्रिय पत्रकार साथी भाई श्री राजेश सिरोठिया द्वारा मेहनत से रची गई किताब ख़बरनवीसी- आप बीती आँखोदेखी के विमोचन तथा चुनाव, जनमत और सोशल मीडिया की भूमिका पर संगोष्ठी का कहीं जिक्र तक नहीं है।

इतना आत्मकेंद्रित आत्ममुग्ध मीडिया किसी भी सूरते हाल में समाज की सेहत के लिए फायदेमंद तो कतई नहीं है।

चुनाव,जनमत और सोशल मीडिया की संगोष्ठी में विद्वान वक्ताओं के मंथन के दौरान जिस खतरे से आगाह किया गया, वह था समाज जीवन और हमारी लोकतात्रिक प्रणाली को प्रदूषित करने की सोशल मीडिया की लगातार लपलपाती अदृश्य शक्ति का विस्तार और उससे बचने की जरूरत।

प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव बता रहे थे कि वह शनै:शनै: इतना बेकाबू होता जा रहा है कि पारंपरिक मीडिया की पकड़ से भी बाहर होता जा रहा है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का मानना था कि सोशल मीडिया अभी इस स्थिति में भले न हो कि हमारे जनमत को प्रभावित कर सके लेकिन इसे भविष्य के लिए खतरे के रूप में लेना चाहिए।

श्री महेश श्रीवास्तव का कहना था देश में चुनाव आज भी कुंभ स्नान सरीखे पवित्र कर्म माने जाते हैं और इनकी यह पवित्रता बनी रहना चाहिए।

इन तमाम विद्वान वक्ताओं के वक्तव्यों और विचारों से पाठकों को अनभिज्ञ रखकर आखिर हमारा मीडिया चाहता क्या है? यह खामोशी किसी दिन अगर मुर्दा सन्नाटे में बदल गई तब क्या होगा ? यह हमारे समय का बड़ा सवाल है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से ली गई है

 


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