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खबर के मर्म को समझकर ऐसा शीर्षक बने कि पाठक भ्रमित न हो

मीडिया            Sep 06, 2018


ममता यादव।
हम मीडिया हैं और इस नाते हमारी पहली जिम्मेदारी क्या बनती है? भोपाल के तीन प्रमुख अखबारों में बंद की खबर का शीर्षक देखिये। इसमे भी दैनिक भास्कर की खबर का हैडिंग देखिये। जातिवाद असल में दिमागों में है। हम समस्याओं से उतने दुखी नहीं होते जितना अपनी जाति की उपेक्षा से होते हैं। इसी का फायदा राजनीति उठा रही है। पर सवाल उठता है मीडिया भी सवर्ण, पिछड़ा, अगड़ा करके हैडिंग लगाएगा तो क्या असर पड़ेगा?

पत्रिका, नईदुनिया ने बकायदा समस्या बताते हुए हैडिंग बनाई है। जो तारीफ के लायक है। हालांकि नईदुनिया ने खबर में अंदर वही किया है जो भास्कर ने किया है मगर पत्रिका ने तरीके से खबर लगाई है। असल में आप पत्रकार हैं तो उन चीजों को पीछे छोड़ना होगा जो वैसे तो बहुत बड़ी हैं मगर हकीकत में उनकी अहमियत जरा सी भी नहीं है।

एक बार रुककर सोचना होगा कि समस्याएं दूर करके देश को आगे बढ़ाना है कि जाति को रखकर चाटना है? राजनीति जिस चीज़ का फायदा उठा रही है उसे खुद भूलकर एक होकर अपना हक लेना है या इस तरह की पोस्ट ओर बातें करके आग में घी का काम करना है और अपनी मूर्खता दिखाना है? सोचियेगा तय आपको करना है कि आपको चाहिए क्या है? जाति धर्म की आग में जलता भारत या अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये वाकई विकसित भारत?

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार और सुबह सवेरे अखबार के इंदौर के संपादक हेमंत पाल से बात करने पर कुछ रोचक जानकारियां सामने आईं जिनको यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। एक उदाहरण से पूरी बात ही स्पष्ट हो जाती है एक शब्द के क्या अर्थ और क्या परिणाम हो सकते हैं खासकर बंद के संदर्भ में

दरअसल सुबह अखबार की खबरों के साथ पाठक के दिनभर की मानसिकता तय होती है। हालांकि वर्चुअल दुनिया में यह कम ज्यादा हो सकता है मगर खत्म नहीं हुआ है। अखबारों के शीर्षक में आशय छुपा होता है और वह तय करता है कि अखबार अपने पाठकों को क्या पढ़ाना चाहते हैं और किस नजरिए से पढ़ाना चाहते हैं ये बात खबर के शीर्षक से ही स्पष्ट होती है। अखबार पढ़कर ही पाठक खबर के प्रति अपनी मानसिकता बनाता है और उसी तथ्य को दिमाग में रखकर सोच बनाता है।

आज यानी 6 सितम्बर के बड़े अखबारों की हैडिंग इस तथ्य का सबसे सटीक उदहारण कहा जा सकता है। एससी, एसटी एक्ट में संशोधन के विरोध में अन्य वर्गों ने 6 सितम्बर को देशभर में बंद का आह्वान किया था। ध्यान देने वाली बात है कि ये 'आह्वान' यानी जनता से अपील की गई थी। लेकिन, अख़बारों के हैडिंग से कुछ और ही ध्वनित होता है।

प्रदेश के तीनों प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने के हैडिंग ऐसे लगाए हैं, जैसे बंद का समर्थन करते हुए उन्होंने कोई पंपलेट निकाला हो। किसी भी हैडिंग में बंद का आह्वान, अपील या मांग जैसा कोई शब्द नहीं है!

'दैनिक भास्कर' का हैडिंग है 'सवर्णों का आज भारत बंद, 35 जिलों में हाई अलर्ट, सेना तैनात' इसका सीधा सा आशय है कि बंद तो होगा ही। 35 जिलों में हाई अलर्ट से भ्रम उपजता है कि यहाँ संभावित हिंसा के आसार हैं और सेना की तैनाती उस बात की पुष्टि करती है।

जबकि, हैडिंग में सवर्ण शब्द आना ही आपत्तिजनक है। ये एससी, एसटी एक्ट में संशोधन का विरोध है जिसे अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों और अन्य संगठनों का भी समर्थन है, जिन्हें सामाजिक लोक व्यवहार में सवर्ण की परिधि में शायद नहीं लिया जा सकता।

इस हैडिंग में कहीं भी ये स्पष्ट नहीं होता कि ये किसी सामाजिक संगठन की अपील है या सरकारी आदेश। क्योंकि. 'आज भारत बंद' का स्पष्ट मतलब यही निकलता है कि बंद तो होगा ही। अखबार ने इस हैडिंग में अपने बचाव के लिए कोई गली नहीं छोड़ी कि यदि बंद न हुआ या असफल हुआ तो अगले दिन का हैडिंग क्या बनाया जाएगा?

'नईदुनिया' भी इससे अछूता नहीं रहा! इस अखबार का हैडिंग है 'एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के विरोध में भारत बंद' यानी सुबह जब पाठक के हाथ में अखबार आएगा, तब भारत बंद हो चुका होगा! जबकि, पाठक के पास जब अखबार पहुँचता है, तब दिन की शुरुआत होती है। तब ऐसी कोई भविष्यवाणी तो की नहीं जा सकती। लेकिन, 'नईदुनिया' ने तो कर दी।

दरअसल, ये पाठक को भ्रमित करने वाला हैडिंग है कि वो अपने दिन की शुरुआत होने से पहले ही अपनी मानसिकता बना ले कि आज तो सब बंद है। जबकि, न तो ऐसा होता है न हुआ। बंद की अपील के बावजूद आज भी 'महाबंद' जैसा माहौल नहीं था।

'पत्रिका' ने अपनी प्रमुख खबर का हैडिंग लगाया है 'आज भारत बंद, ज्यादातर जिलों में धारा 144' ये हैडिंग भी सूचना देता है कि आज तो पूरा भारत बंद है। कोई आह्वान या अपील का उल्लेख इस अखबार ने भी नहीं किया। बल्कि, डराया ज्यादा है कि भारत बंद है और धारा 144 भी लागू है तो बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है। हालांकि पत्रिका ने बंद का आव्हान करने वाले बाकी संगठनों और अन्य वर्गों का भी उल्लेख किया है।

पाठक के हाथ में जो अखबार पहुँचता है, वो तीन या चार तरहकी मानसिकता से प्रभावित होता है। पहली है अखबार के मालिक की अपनी मानसिकता क्या है। दूसरा है कि वो अखबार सरकार का समर्थक है या विरोधी। बंद जैसी स्थिति में सरकार क्या चाहती है, इसे दर्शाने में भी अखबार का प्रबंधन देर नहीं करता।

तीसरी मानसिकता होती है अखबार के संपादक की कि वो हाथ बचाकर खबर को किस तरह पाठकों के सामने परोसना चाहता है और सबसे अंत में नंबर आता है, उस खबर को संपादित कर उसे पहले पेज पर लगवाने वाले प्रभारी संपादक का।

हर अखबार के पहले पन्ने का हैडिंग सिर्फ खबर ही नहीं देता, बहुत सारे पक्षों को भी उजागर करता है। एक बात ये भी कि जिस अखबार का जितना प्रसार क्षेत्र होता है, वो अपने हैडिंग से उतना ज्यादा प्रभावित भी करता है। इससे जुड़ा एक सही उदाहरण 'नईदुनिया' के इंदौर संस्करण का 80 के दशक का है।

इंदौर में एक जैन साध्वी ने किसी कारणवश गृहस्थ जीवन अपना लिया था, जिसका जैन समाज ने भारी विरोध किया था। मामला इतना बढ़ा कि जैन समाज ने एक दिन के बाद का आह्वान कर दिया।

ये वो दौर था, जब इंदौर में 'नईदुनिया' का की विश्वसनीयता का प्रभाव जबरदस्त था। खबर वही सही मानी जाती थी, जो 'नईदुनिया' में छपे। जैन समाज की बंद की अपील को 'नईदुनिया' ने पहले पन्ने पर इस हैडिंग के साथ छापा 'आज इंदौर बंद रहेगा' जिसका असर ये हुआ कि इंदौर स्वस्फूर्त बंद हो गया।

सुबह अखबार पढ़कर ही पाठकों ने बंद की मानसिकता इसलिए बना ली कि 'नईदुनिया' में छपा है तो इंदौर तो बंद होना ही है। वास्तव में ये गलत हैडिंग था। जैन समाज ने इंदौर बंद की अपील की थी, जबरन बंद करने के लिए धमकी नहीं दी थी। लेकिन, अखबार की विश्वसनीयता का मामला था तो इंदौर में चाय-पान तक की दुकानें बंद रही।

इस घटना को लेकर बाद में इंदौर में आयोजित एक सेमीनार में नवभारत टाइम्स के तत्कालीन प्रधान संपादक राजेंद्र माथुर ने उल्लेख भी किया था। उन्होंने कहा था कि किसी अखबार को शहर के लोगों के दैनिक जीवन में इस तरह नहीं रच-बस जाना चाहिए कि सिर्फ हैडिंग पढ़कर शहर की धड़कनें रुक जाएँ और शहर बंद हो जाए।

कारण कि पाठकों ने सच जानने की भी कोशिश नहीं की कि वास्तव में सच्चाई क्या है? शहर को बंद करने का आह्वान किया गया है या आदेश दिया है। लेकिन, आज न ऐसे अखबार बचे हैं जिनकी विश्वसनीयता असंदिग्ध हो और न इतने ज्ञानी संपादक या अखबारों के सम्पादकीय विभाग में काम करने वाले ही हैं जो खबर के मर्म को समझकर ऐसा हैडिंग बनाएं कि पाठक भ्रमित न हो।

 

 


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