मल्हार मीडिया ब्यूरो नईदिल्ली।
एल्गोरिथम से संबधित पूर्वाग्रह के सामाजिक परिणाम चिंता का विषय, डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में जोखिम को कम करना होगा
भ्रामक समाचारों के प्रसार से मीडिया पर भरोसा कम होता जा रहा है और लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा होता है। सेफ हार्बर की अवधारणा 1990 के दशक में विकसित हुई थी, जब डिजिटल मीडिया की उपलब्धता विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में चुनिंदा उपयोगकर्ताओं तक सीमित थी और प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ता द्वारा उत्पन्न सामग्री के लिये कानूनी रूप से उत्तरदायी होने से बचाता है।
केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उक्त विचार राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में वर्चुअली व्यक्त किए। केंद्रीय मंत्री ने डिजिटल मीडिया के तेजी से हो रहे विकास और इन प्लेटफार्मों पर प्रकाशित सामग्री की जिम्मेदारी पर महत्वपूर्ण सवाल उठाया।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर इस बात पर बहस तेज हो रही है कि क्या सेफ हार्बर प्रावधान अभी भी उपयुक्त हैं, जबकि गलत सूचना, दंगे और यहां तक कि आतंकवादी कृत्यों को फैलाने में इनकी भूमिका है। उन्होंने कहा, “क्या भारत जितने जटिल संदर्भ में काम करने वाले प्लेटफ़ॉर्म को अलग तरह की ज़िम्मेदारियाँ नहीं अपनानी चाहिए? ये ज्वलंत प्रश्न एक नए ढांचे की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं जो जवाबदेही सुनिश्चित करे और राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने की सुरक्षा करे।"
कंटेंट क्रिएटर्स के लिए उचित मुआवजा
पारंपरिक से डिजिटल मीडिया में परिवर्तन ने पारंपरिक मीडिया को आर्थिक रूप से प्रभावित किया है, जो पत्रकारिता की अखंडता और संपादकीय प्रक्रियाओं में भारी निवेश करता है। श्री वैष्णव ने डिजिटल प्लेटफॉर्म और पारंपरिक मीडिया के बीच वित्तीय शक्ति में असमानता को पाटते हुए पारंपरिक सामग्री निर्माताओं के लिए उचित मुआवजे की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "सामग्री बनाने के लिए पारंपरिक मीडिया द्वारा किए गए प्रयासों को निष्पक्ष और उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए।"
राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024 के उपलक्ष्य में भारतीय प्रेस परिषद ने आज राष्ट्रीय मीडिया केंद्र, नई दिल्ली में राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह आयोजित किया।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, रेलवे तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण और संसदीय कार्य राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव, भारतीय प्रेस परिषद की अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और वरिष्ठ पत्रकार कुंदन रमनलाल व्यास भी उपस्थित थे।
श्री वैष्णव ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह में मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के रूप में समारोह को संबोधित करते हुए भारत के जीवंत और विविध मीडिया इकोसिस्टम पर प्रकाश डाला, जिसमें 35,000 पंजीकृत समाचार पत्र, कई समाचार चैनल और एक मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा शामिल है। श्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि 4जी और 5जी नेटवर्क में निवेश ने भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे कम डेटा कीमतों के साथ डिजिटल कनेक्टिविटी के मामले में अग्रणी बना दिया है।
उन्होंने चार प्रमुख चुनौतियों पर बात की जिनका सामना हमारा समाज मीडिया और प्रेस के बदलते परिदृश्य के कारण कर रहा है!
एल्गोरिथम पूर्वाग्रह
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को चलाने वाला एल्गोरिदम उस सामग्री को प्राथमिकता देता है जो जुड़ाव को अधिकतम करती है, मजबूत प्रतिक्रियाओं को प्रोत्साहित करती है और इस तरह प्लेटफ़ॉर्म के लिए राजस्व को परिभाषित करती है। ये अक्सर संवेदनशील या विभाजनकारी कहानियों को जन्म देते हैं। श्री वैष्णव ने विशेष रूप से भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में इस तरह के पूर्वाग्रहों के सामाजिक परिणामों पर प्रकाश डाला, और मंचों से उनकी प्रणाली द्वारा हमारे समाज पर पड़ने वाले प्रभाव के समाधान के साथ आने का आह्वान किया।
बौद्धिक संपदा अधिकारों पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव
एआई का उदय उन रचनाकारों के लिए नैतिक और आर्थिक चुनौतियां प्रस्तुत करता है, जिनके काम का उपयोग एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है। केंद्रीय मंत्री ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता में प्रगति के कारण रचनात्मक दुनिया में आ रहे महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। एआई प्रणालियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर बात करते हुए उन्होंने मूल रचनाकारों के बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों की सुरक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।
श्री अश्विनी वैष्णव ने सवाल किया, “आज एआई मॉडल उन विशाल डेटासेटों के आधार पर रचनात्मक सामग्री तैयार कर सकते हैं जिन पर प्रशिक्षित किया जाता है। लेकिन उस डेटा में योगदान देने वाले मूल रचनाकारों के अधिकारों और मान्यता का क्या होगा? क्या उन्हें उनके काम के लिए मुआवजा या मान्यता दी जा रही है?" उन्होंने कहा, ‘‘यह सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं है, यह नैतिक मुद्दा भी है।’’
श्री वैष्णव ने हितधारकों से राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर इन चुनौतियों से निपटने के लिए खुली बहस और सहयोगात्मक प्रयासों में शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने लोकतंत्र के एक मजबूत स्तंभ के रूप में मीडिया की भूमिका को बनाए रखने और 2047 तक एक सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध विकसित भारत के निर्माण के महत्व पर जोर दिया।
डिजिटल युग में आगे बढ़ना: भ्रामक खबरों से निपटना और पत्रकारिता में नैतिकता को कायम रखना
पारंपरिक प्रिंट से लेकर सैटेलाइट चैनलों और अब डिजिटल युग तक पत्रकारिता के विकास पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. मुरुगन ने आज लोगों तक समाचार पहुँचने की गति पर ध्यान दिलाया। हालाँकि, उन्होंने भ्रामक समाचारों की बढ़ती चुनौती पर ज़ोर दिया, जिसे उन्होंने “वायरस से भी तेज़” फैलने वाला बताया। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि भ्रामक समाचर राष्ट्रीय अखंडता के लिए ख़तरा हैं, देश की सेना को कमज़ोर करते हैं और भारत की संप्रभुता को चुनौती देते हैं।
हर व्यक्ति को संभावित कंटेंट क्रिएटर में बदलने में स्मार्टफोन की भूमिका को स्वीकार करते हुए, डॉ. मुरुगन ने गलत सूचना से निपटने में अधिक जिम्मेदारी की आवश्यकता और नियमों पर जोर दिया। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि संविधान द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, लेकिन इसका प्रयोग सटीकता और नैतिक जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए।
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