मल्हार मीडिया भोपाल।
माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के 35 वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के दूसरे चरण में आज 'आंचलिक अखबारों की राष्ट्रीय पत्रकारिता’ पर विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया।
पत्रकार- लेखक हरीश पाठक के विश्लेषणपरक ग्रन्थ 'आंचलिक अखबारों की राष्ट्रीय पत्रकारिता’ पर आधारित इस गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा ने की।
गोष्ठी में बतौर वक्ता हिस्सा लेते हुए वरिष्ठ पत्रकार उमेश त्रिवेदी ने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता जोखिम भरी है। यह समाज को बदल सकती है। इसमें सामाजिक सरोकार पहले हैं उसके बाद सत्ता है और सत्ताधीश सबसे पीछे हैं।
आंचलिक पत्रकारिता यथार्थ को सामने लाती है महानगरीय पत्रकारिता ग्लैमर को। उन्होंने हरीश पाठक की किताब का जिक्र करते हुए कहा कि मीडिया के बदलते दौर में यह पत्रकारिता की पुरानी दुनिया की ओर लेकर जाता है।
राजेश बादल का कहना था कि आंचलिक पत्रकार स्थानीय समस्याओं और चुनौतियों को झेलते हुए सच सामने लाता है। उन्होंने कहा कि पाठक की यह किताब पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए तथा इसमें जो घटनाएं हैं उनकी वीडियोग्राफी तैयार की जानी चाहिए।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि हिन्दी में जिस तरह अंगरेजी की घुसपैठ हो रही है वह ठीक नहीं। इससे पत्रकारिता का सम्मान कम होता है। उन्होंने पाठकों से आग्रह किया कि अंगरेजी को बढ़ावा दे रहे हिन्दी समाचार पत्रों का बहिष्कार करें।
आंचलिक पत्रकारिता पर विश्लेषरणपरक ग्रन्थ लिखने वाले हरीश पाठक ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि इस पुस्तक को लिखने के लिए की गई यात्रा के दौरान पाया कि जितने भी बड़े घोटाले या घटनाएं सामने आएं वे आंचलिक पत्रकारों की ही देन है।
बड़े अखबारों को सामग्री यही छोटे शहरों के पत्रकार उपलब्ध कराते हैं। अपने कथन के समर्थन में उन्होंने राजस्थान का रूपकुंवर सती सम्मान और बिहार के पशुपालन घोटाले का उदाहरण भी दिया। उन्होंने बताया कि इन दोनों घटनाओं को पहले वहां के छोटे अखबारों ने ही छापा था जिसे बाद में राष्ट्रीय मीडिया ने उठाया।
एक तरह से यह कस्बाई पत्रकार महानगर के पत्रकारों को जगाते हैं। इसके लिए उन्हें खतरे भी उठाने पड़ते हैं। लेखक श्री हरीश पाठक ने इस विषय पर राजेन्द्र माथुर फैलोशिप के अन्तर्गत विस्तृत अध्ययन किया तथा उसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है।
इनके चित्र दीर्घा में संजोए गए
माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की चित्र-दीर्घा में ‘स्वराज’ के छह बलिदानों के चित्र संजोए गए। इनमें शान्तिनारायण भटनागर, बाबूराम हरी, होतीलाल वर्मा, नंद गोपाल, अमीरचंद्र बंबवाल, लद्धाराम कपूर शामिल हैं। समारोह में प्रतीक स्वरूप ‘स्वराज’ के पहले संपादक शान्तिनारायण भटनागर के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। शेष पांच चित्र दीर्घा में प्रदर्शित किए गए।
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