मल्हार मीडिया।
जनसत्ता के कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की पुस्तक आ रही है मेरे बाद। इस किताब की पृष्ठभूमि जासूसी है इसका कवर पेज ही इस किताब के कंटेंट को पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाता है।
यश पब्लिकेशन से प्रकाशित इस किताब के बैक कवर पर लिखी गई लाईनें ही कौतूहल जगाने के लिए काफी हैं। जो कि इस प्रकार हैं,अपराध जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। अपराध अगर घातक है तो खूबसूरत भी। अपराध के आकर्षण से कौन,कब और कहां मोहित हो जाये, कहना मुश्किल है। अपराध कथा कहना भी एक कला है:
वरिष्ठ पत्रकार संजय स्वतंत्र अपने अंदाज में रूबरू करवाएंगे इस किताब के कुछ हिस्सों से अभिमन्यू सीरीज में। कम शब्दों में बहुत कुछ बताते हुए संजय स्वतंत्र लिखते हैं,
जासूसी के पेशे में कदम जमा रहे अभिमन्यु के आत्मविश्वास ने वशिष्ठ परिवार से लेकर आरामतलब पुलिस महकमे को परेशान कर दिया।
किशोर वशिष्ठ की मौत की जगह पर वो न आता तो पुलिस इसे आत्महत्या का मामला मान कर केस बंद कर देती और पूरा परिवार बुजुर्गवार के अंतिम संस्कार में जुट चुका होता।
ऐसा क्या है अभिमन्यु में जो पुलिस से लेकर वकील की दलील पर भारी पड़ता है। कभी कासानोवा चार्म को भुनाता तो कभी घोर नैतिक हो जाता।
पंजाब की मिट्टी का बेलौस युवा दिल्ली के कमीनेपन का अदरक की चाय की चुस्कियों की तरह मजा ले रहा था।
स्मार्टफोन और तकनीक के हवाले हुई इस दुनिया में अपराध आज भी उतना तकनीकी नहीं है। क्रूर सा दिखता इंसान मक्खी भी मारने में परहेज करता तो कोई नरम दिल की पहचान वाला इंसान को मार कर ही अपना बदला पूरा समझता है।
अभिमन्यु को पता है कि अपराध को समझने के लिए इंसान और उसके परिवेश को समझना होगा। जासूसी की दुनिया के इस नए किरदार से जल्द ही रू-ब-रू कराने जा रहे हैं चर्चित भारतीय लेखक मुकेश भारद्वाज।
तो अभिमन्यु से हम लोग जल्द ही मिलेंगे। रहस्य की कई गुत्थियां सुलझाते हुए वह आ रहा है। आपसे मिलने। उसे आपका ही इंतजार है। वह अपराध के पीछे की दास्तां बताएगा। जिसे सुन कर आप सचमुच हैरत में पड़ जाएंगे। इस जासूस की हर मुस्कान के पीछे एक कहानी है। सुनेंगे आप?
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