मल्हार मीडिया ब्यूरो।
विपक्षी दलों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ पेश किए गए महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू द्वारा खारिज करने के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सोमवार को यह घोषणा की।
नामित राज्यसभा सदस्य के.टी.एस. तुलसी ने सोमवार को कहा कि विपक्षी दलों के पास प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग नोटिस को खारिज करने के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाने का विकल्प है। महाभियोग नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले तुलसी ने राज्यसभा के सभापति द्वारा महाभियोग नोटिस खारिज करने के निर्णय से असहमति जताई। राज्यसभा के सभापति नायडू ने सोमवार को इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
तुलसी ने एनडीटीवी से कहा, "मुझे लगता है कि संविधान की व्याख्या का यह सवाल तब उठता है, जब ऐसा लगे कि व्याख्या गलत है और हम मानते हैं कि हम इस फैसले को अदालत में चुनौती दे सकते हैं।"
उन्होंने कहा, "जिन्होंने भी हस्ताक्षर किया है, सभी की सहमति से यह निर्णय लिया जाएगा।"
उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों की ओर से पिछले सप्ताह पेश किए गए महाभियोग नोटिस में पर्याप्त सबूत पेश किए गए थे।
तुलसी ने कहा, "हमने कहा कि कदाचार के पर्याप्त सबूत हैं और सबूतों को नत्थी किया गया है।"
उन्होंने कहा, "लेकिन, उपराष्ट्रपति को औचित्य के आधार पर सामग्री का परीक्षण नहीं करना चाहिए। राज्यसभा के सभापति के रूप में उन्हें इस स्थिति में केवल यह देखना है कि प्रस्ताव वैध है या नहीं।"
तुलसी ने कहा, "और इसके लिए इस स्थिति में एक ही शर्त है कि इसपर राज्यसभा के 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। अगर ऊपरी सदन के 50 सदस्य महाभियोग पर हस्ताक्षर करते हैं तो मामले की गंभीरता को समझते हुए इसका निश्चित ही सम्मान करना चाहिए और समिति द्वारा इसका परीक्षण करावाया जाना चाहिए।"
तुलसी ने कहा कि तीन सदस्यीय समिति जो महाभियोग नोटिस के स्वीकार कर लेने के बाद, मामले को देखती है, उसे सिविल कोर्ट की शक्ति दी गई है।
उन्होंने कहा कि समिति गवाहों को तलब कर सकती है और संबंधित न्यायाधीश को भी एक मौका दे सकती है।
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