मल्हार मीडिया ब्यूरो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को खो-खो व गिली-डंडा जैसे भारत के पारंपरिक खेलों के धीरे-धीरे लुप्त होने की बात उठाते हुए स्कूलों व युवा संगठनों से इन्हें बढ़ावा देने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 44वें संस्करण में कहा, "जो खेल कभी पड़ोस की हर गली में खेले जाते थे और हर बच्चे की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे, वे अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। गर्मियों की छुट्टियों में इन खेलों का खास स्थान होता था।"
उन्होंने कहा, "इन खेलों को बच्चे अत्यधिक उत्साह के साथ घंटों खेलते थे। कुछ खेलों में पूरे परिवार की भागीदारी दिखती थी।"
पिट्ठू, खो-खो, गिली-डंडा, लट्टू, पतंग उड़ाने जैसे कुछ अन्य खेलों का नाम लेते हुए मोदी ने कहा कि ये खेल कश्मीर से कन्याकुमारी व कच्छ से कामरूप तक हर बच्चे के जीवन से जुड़े हुए थे।
उन्होंने कहा, "बेशक इन खेलों को इनके स्थान के नाम के आधार पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है।"
उन्होंने कहा, "इन खेलों में हमारे देश की विविधता में निहित एकता देखी जा सकती है। एक ही खेल को विभिन्न जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है।"
उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक खेलों को इस तरह से बनाया गया है कि ये शारीरिक क्षमता के साथ तार्किक सोच, एकाग्रता, सर्तकता व ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते थे।
मोदी ने कहा, "इनमें भाग लेने के लिए कोई आयु सीमा नहीं है। इन खेलों को छोटे बच्चे से लेकर दादा-दादी तक साथ खेलते थे।
उन्होंने कहा कि इनमें से बहुत से खेल लोगों को समाज, पर्यावरण व दूसरे क्षेत्रों के बारे में जागरूक करते थे।
उन्होंने कहा, "आज यह महत्वपूर्ण है कि स्कूल, पड़ोस व युवा संगठन आगे आए और इन खेलों को बढ़ावा दें। जन समूहों के जरिए हम पारंपरिक खेलों का एक बड़ा संग्रह बना सकते हैं।"
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