मल्हार मीडिया ब्यूरो दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2016 में देश में लागू की गई नोटबंदी के फैसले को आज सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है।
नोटबंदी को गलत और त्रुटिपुर्ण बताने वाली 3 दर्जन से ज्यादा याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि केंद्र के इस निर्णय में कुछ भी गलत नहीं था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ये फैसला RBI की सहमति और गहन चर्चा के बाद लिया गया है। इस बीच कोर्ट ने इस फैसले में कई बड़ी टिप्पणियां भी की।
कोर्ट ने ये भी कहा कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने सभी नियमों का पालन किया। छह महीने तक सरकार और आरबीआई के बीच इस मसले को लेकर बातचीत हुई और इसके बाद फैसला लिया गया।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने आज नोटबंदी के खिलाफ 58 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि ये निर्णय एकदम सही था। कोर्ट ने इसी के साथ सभी याचिकाओं को खारिज भी कर दिया।
कोर्ट ने 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को अमान्य करने के केंद्र के फैसले पर कहा कि सरकार ने RBI से गहन चर्चा के बाद ही कोई निर्णय लिया और केंद्रीय बैंक के पास नोटबंदी करने की कोई शक्ति नहीं है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार की आर्थिक नीति होने के कारण निर्णय को पलटा नहीं जा सकता है।
इस बीच फैसले में मतभेद भी दिखा, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत केंद्र की शक्तियों के बिंदु पर न्यायमूर्ति बी आर गवई के फैसले से अलग मत रखते हुए असहमति जताई।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि नोटबंदी को संसद से एक अधिनियम के माध्यम से लानी चाहिए थी, न कि सरकार द्वारा।
कोर्ट ने इसी के साथ कहा कि 8 नवंबर, 2016 को लाई गई नोटबंदी की अधिसूचना वैध थी और नोटों को बदलने के लिए दिया गया 52 दिनों का समय भी एकदम उचित था।
कोर्ट ने 2022 में 7 दिसंबर को सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बता दें कि नोटबंदी के खिलाफ कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने भी याचिका दायर की थी, याचिका में कहा गया था कि केंद्र का यह फैसला गलत और त्रुटिपुर्ण है।
नोटबंदी को सरकार ने 'सुविचारित' निर्णय और नकली धन, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा बताया था।
सुनवाई के दौरान सरकार की बात रखते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा था कि नोटबंदी एक ऐसी आर्थिक नीति है, जो कई बुराइयों को दूर करने के लिए बनाई गई।
कोर्ट ने केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को विस्तार से सुनने के बाद पिछले सात दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केंद्र सरकार ने साल 2016 में आठ नवंबर की रात 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद राष्ट्र के नाम संबोधन में इसका एलान किया था। सरकार
के इस एलान के बाद देशभर के बैंकों, एटीएम पर लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई दिखी थीं। लोगों ने पुराने नोट बदलकर नए नोट हासिल करने के लिए काफी जद्दोजहद की थी।
सरकार के नोटबंदी के फैसले को विपक्ष ने मुद्दा बनाया। केंद्र सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाए थे। विपक्ष का कहना था कि ये एक तरह का घोटाला है।
इसके खिलाफ कोर्ट में 58 अलग-अलग याचिकाएं दाखिल हुईं थीं। इनपर लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने सात दिसंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था।
नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की बेंच ने अहम फैसला सुनाया। जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने इसकी अध्यक्षता की।
इस बेंच में जस्टिस नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल रहे।
याचिकाकर्ताओं के वकील की ओर से दलील दी गयी थी कि इस मामले में आरबीआई कानून 1934 की धारा 26(2) का इस्तेमाल किया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिशों पर किया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने इसे अकादमिक मुद्दा बताया था। सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब 'बीते वक्त में लौट कर' कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सात दिसंबर को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें।
जिसके बाद सरकार और आरबीआई की तरफ से इस मसले पर सील बंद लिफाफा में दस्तावेज पेश किए गए थे।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने नोटबंदी की वजहें समझाते हुए कहा था कि नोटबंदी कोई अकेला कदम नहीं था बल्कि एक व्यापक आर्थिक नीति का हिस्सा था!
ऐसे में ये संभव नहीं है कि आरबीआई और सरकार अलग-थलग रहकर काम करती रहें। उन्होंने कहा था कि आरबीआई और केंद्र सरकार एक-दूसरे के साथ सलाह-मशविरा करते हुए काम करते हैं।
आरबीआई ने बताया कि सेंट्रल बोर्ड मीटिंग के दौरान आरबीआई जनरल रेगुलेशंस, 1949 की कोरम (बैठक में एक निश्चित सदस्यों की संख्या) से जुड़ी शर्तों का पालन किया गया।
रिजर्व बैंक ने बताया है कि इस बैठक में आरबीआई गवर्नर के साथ-साथ दो डिप्टी गवर्नर और आरबीआई एक्ट के तहत नामित पांच निदेशक शामिल थे।
ऐसे में कानून की उस शर्त का पालन किया गया था जिसके तहत तीन सदस्य नामित होने चाहिए।
नोटबंदी पर फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस नजीर दो दिन बाद यानी चार जनवरी को रिटायर हो रहे हैं। रिटायरमेंट से पहले उनका ये बड़ा फैसला ऐतिहासिक बताया जा रहा है।
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