मल्हार मीडिया ब्यूरो।
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को संविधान पीठ द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के विरुद्ध याचिकाओं पर 10 जुलाई को प्रस्तावित सुनवाई स्थगित करने की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिकता एक अपराध है। केंद्र ने मामले के संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से समय मांगा, जिसके बाद प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले को स्थगित करने से इंकार कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि मामला कुछ समय से लंबित पड़ा हुआ है और केंद्र को अपना जवाब दाखिल करना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने कहा, "हम प्रस्तावित सुनवाई करेंगे। हम इसे स्थगित नहीं करेंगे। आप सुनवाई के दौरान कुछ भी दाखिल कर सकते हैं।"
मामले की सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ गठित की गई है।
न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा अब प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के साथ मामले की सुनवाई करेंगे। ये दोनों न्यायमूर्ति ए.के.सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण का स्थान लेंगे।
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में समलैंगिक सैक्स को दोबारा गैर कानूनी बनाए जाने के पक्ष में फैसला दिया था, जिसके बाद कई प्रसिद्ध नागरिकों और एनजीओ नाज फाउंडेशन ने इस फैसले को चुनौती दी थी। इन याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
शीर्ष न्यायालय ने आठ जनवरी को कहा था कि वह धारा 377 पर दिए फैसले की दोबारा समीक्षा करेगा और कहा था कि यदि 'समाज के कुछ लोग अपनी इच्छानुसार साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें डर के माहौल में नहीं रहना चाहिए।'
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में 2013 में दिए अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दो जुलाई, 2009 को दिए फैसले को खारिज कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिक सैक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
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