मल्हार मीडिया ब्यूरो।
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने एक मत से यह फैसला दिया।
शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर आधार योजना को चुनौती दी गई थी और कहा गया था कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
पिछले कुछ महीनों से लगातार देश में प्राइवेसी को लेकर डिबेट होती रही हैं। सरकार की तरफ से कोर्ट में प्राइवेसी यानी निजता को मौलिक अधिकार नहीं बताया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुना दिया है और अब यह Article 21 के तहत मौलिक अधिकार के अंदर ही माना जाएगा।
इस फैसले के बाद सरकार को थोड़ी मुश्किल जरूर हो सकती है, क्योंकि एक्सपर्ट्स आधार को निजता में सेंध मानते आए हैं। आधार के खिलाफ याचिका दायर की जाती रही है। सरकार की तरफ से दलील दिया गया कि डिजिटल वर्ल्ड में लोग अपनी जानकारियां थर्ड पार्टी वेबसाइट्स जैसे फेसबुक और गूगल को देती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब कई मामले और भी हैं जिनपर ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है । उदाहरण के तौर पर निजता को पूरी तरह से परिभाषित नहीं किया गया है। इससे पहले कई फैसले आए हैं जिनमें प्राइवेसी को परिभाषित करना मुश्किल माना गया है। इसलिए इस फैसले के बाद भी Section 377, Section 66A और Aadhaar में क्या फर्क पड़ेगा यह फिलहाल कहना मुश्किल है।
पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है, 'आधार बनाने के लिए जानकारी देना यह बड़ा मुद्दा नहीं है। क्योंकि आईडेंटिटी के लिए सरकार ऐसी जानकारियां रख सकती है। सबसे बड़ा मुद्दा ये था कि आधार को दूसरी जरूरी सर्विस के लिए अनिवार्य किया जा रहा है। यहां तक की आने वाले समय में मोबाइल नंबर लेने या रेलवे टिकट के लिए भी आधार की जरूत होगी। यही सबसे बड़ी समस्या है कि आधार डीटेल्स किसी प्राइवेट कंपनी को क्यों दी जाए।'
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिए जाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह केंद्र सरकार के लिए झटका है। भूषण ने शीर्ष अदालत का फैसला आने के बाद संवाददाताओं से कहा, "यह सरकार के लिए झटका है, क्योंकि यह निजता पर सरकार के रुख के खिलाफ है।"
यह फैसला केंद्र सरकार की आधार योजना के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिसने बैंक खातों से आधार को जोड़े जाने, आयकर रिटर्न और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार को अनिवार्य बना रखा है।
यह पूछने पर कि क्या इस फैसले से आधार योजना पर कोई असर होगा, भूषण ने कहा, "यह फैसला इस बारे में कुछ नहीं कहता।"
भूषण के अनुसार, ऐसा लगता है कि कोई भी कानून, जो मौलिक अधिकारों का हनन करता हो, उसे संविधान के अनुच्छेद 21 की कसौटी पर परखा जाएगा।
भूषण ने कहा, "यदि सरकार रेलवे टिकट बुक करने या किसी तरह की खरीदारी के लिए आधार को अनिवार्य बनाएगी तो इस तरह के कानूनों को निजता के अधिकार पर अकारण प्रतिबंध समझा जाएगा। मुझे लगता है कि यह समाप्त हो जाएगा।"
आधार के अलावा कई दूसरे मामले भी हैं जिससे सरकार मुश्किल में आ सकती है। इनमें Article 377 है जिसके तहत होमोसेक्सुएलिटी को अपराध माना जाता है। इसके अलावा IT ऐक्ट का Section 66A है जिसके तहत अगर कोई शख्स अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अपनी सोच रखता है और सरकार को उसमें कुछ गलत दिखता है तो उस शख्स के खिलाफ ऐक्शन लिया जा सकता है।
आधार के अलावा Article 377 और Section 66A दो ऐसे ऐक्ट हैं जिनपर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर पड़ सकता है। चूंकि अब निजता मौलिक अधिकार है इसलिए सरकार किसी शख्स के पर्सनल अकाउंट से जानकारियां नहीं ले सकती है। आमतौर पर सरकार और सरकारी एजेंसियों को यह अख्तियार होता है कि किसी शख्स के पर्सनल अकाउंट में सेंध लगा सके।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आधार पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है, लेकिन आने वाले समय में सरकार के रूख के बाद ही साफ होगा कि आधार को अनिवार्य कहां किया जाएगा।
हाल ही में लगातारा आधार के डेटा लीक होने की खबरें आती रही हैं। लेकिन लोगों के मन में सवाल थे कि वो डेटा लीक होने पर क्या करें? मुकदमा किसके खिलाफ करें? किससे शिकायत करें? अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जवाब मिल गया है। चूंकि आधार बनाने के लिए दी गई जानकारियां निजी होती हैं और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद निजता मौलिक अधिकार है। ऐसे में डेटा लीक हो गया तो इस पर सरकार की जवाबदेही बढ़ती है जिनका डेटा लीक हुआ है वो इसके खिलाफ ले सकते हैं। हालांकि इससे पहले भी कानून थे, लेकिन अब ये प्रायोगिक हो जाएंगे।
अभी तक तो सरकारी वेबसाइट्स से आधार के डेटा लीक होते रहे और इसके खिलाफ न तो कई मुकदमा हुआ और न ही कोई समझ पाया कि करना क्या है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब आधार ही नहीं बल्कि किसी भी तरह का यूजर डेट लीक हुआ तो सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। इसलिए सरकारी वेबसाइट्स को मजबूत करने की की जरूरत है।
इससे पहले तक व्हाट्सऐप और फेसबुक से जानकारियां मांगी जाती रही हैं। हर साल सरकार फेसबुक से नेशनल सिक्योरिटी के लिए यूजर डेटा मांगती है। इतना ही नहीं व्हाट्सऐप पर लगातार सवाल उठे हैं कि इसकी प्राइवेसी पॉलिसी की वजह से लोग गलत करके बच सकते हैं। क्योंकि व्हाट्सऐप की एंड टू एंड एन्क्रिप्शन किसी भी सरकारी एजेंसी को इसका डेटा लेने से रोकती है। ऐसे में इस फैसले के बाद व्हाट्सऐप और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर यूजर डेटा देने का दबाव भी नहीं बनाया जा सकता।
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