डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
शादी हनीमून मनाने का के.वाई.सी. होता है। इसके बाद लोग पूछने लगते है - कोई गुड न्यूज़? हमारे भारत में इस सवाल का आशय एक ही होता है, जो नवजात शिशु की किलकारी से जुड़ा है। जुड़वां बच्चे का अर्थ दोहरी ख़ुशी माना जाता है।
यह मानवीय संवेदनाओं का मुद्दा है, इसका सम्बन्ध खुशियों और भावनाओं से है, जिसे फिल्म में कॉमेडी बना दिया गया है। इसीलिए इस फिल्म की कॉमेडी क्रूर लगती है।
हैट्रोपैटर्नल सुपरफेकंडेशन प्रेग्नेंसी क्या है? मैंने पहली बार जाना कि प्रेग्नेंसी की एक ऐसी कंडीशन जिसे हैट्रोपैटर्नल सुपरफेकंडेशन प्रेग्नेंसी कहा जाता है, जहां एक गर्भ में दो अलग पिताओं के जुड़वा बच्चे कंसीव हो सकते हैं। यानी मां एक और बच्चों के पिता दो।
कहा जाता है कि पूरी दुनिया में ऐसे 17 केस हुए हैं और इसी पर निर्देशक आनंद तिवारी ने फिल्म 'बैड न्यूज' बनाई है। इस बच्चे का बाप कौन है यह सामान्य सवाल है, लेकिन कोई पूछे कि इस बच्चे बाप 'कौन कौन' है, तो यही सवाल गाली बन जाता है। ऊपर से पढ़ी लिखी सामान्य मां को भी यह पता नहीं हो तो? इन्हीं हालात को दिखाने लिए कहानी बुनी गई है।
एक हैं अखिल चड्ढा (विक्की कौशल) मम्माज़ बॉय ! दिल्ली में करोल बाग के फेमस रेस्टोरेंट के मालिक जिन्हें रेस्टोरेंट के काम के अलावा सब आता है। पिता नहीं हैं, हीरो को नाचने- गाने में महारत है।
एक शादी में हीरो को मिलती है सलोनी बग्गा (तृप्ति डिमरी)। 'ये लड़का हाय अल्ला कैसा है दीवाना' से शुरू हुई बात 'रब ने बना दी जोड़ी' तक पहुँच जाती है। हीरो कहता था कि टैटू बनवाने वाली कुड़ियां चंगी बीवी नहीं हो सकती।
लेकिन यहां तो ट्रायल पीरियड में ही सब्सक्रिप्शन ले लिया जाता है। सुहागरात में भी मां बार बार दरवाजा खुलवाती है तो हीरो कहता है कि आप भी अंदर ही आ जाओ, जगराता कर लेते हैं और सुबह सुबह प्रभात फेरी में भी चलेंगे।
खैर, किसी तरह शेरवानी से शेर बाहर निकलता है ( यह फिल्म का ही डायलॉग है)। मां बेटा-बहू को हनीमून के लिए यूरोप ट्रिप का टिकट गिफ्ट करती है, ताकि हीरो- हीरोइन और फिल्म क्रू को शानदार लोकेशनों पर शूटिंग करने और एनीमल फिल्म में वस्त्र आडम्बर को ख़त्म करनेवाली तृप्ति डिमरी की अतृप्त भावनाओं को शांत करने के साथ ही अखिल चड्ढा को चड्डी से निजात मिले। माँ के बार बार आनेवाले वीडियो कॉल्स रंग में भंग ही नहीं, एलएसडी जैसा ड्रग मिला देते हैं।
कॉमेडी की जलेबी बन चुकी तो उस पर इमोशन की चाशनी चढ़ाई जाती है। नो मोबाइल फोबिया के बारे में बताया है। हनीमून से वापस आते हैं तब हीरो का गेलापन सामने आता है। होटल शेफ हीरोइन का सपना क्रिएटिव क्यूज़ीन 'मेराकी स्टार' बनना है, राजमा चावल बनाना नहीं। सपनों में टकराव और फिर 'ये राजमा खाना था ठाकुर, तुमने इसे फेंका क्यों? राजमा कोई खाने की डिश नहीं, इमोशन है।' (जैसे पोहा कोई नाश्ता नहीं, इंदौरियों के लिए इमोशन है). जाओ, निकल जाओ इस घर से। और हीरोइन चली मसूरी की रंगीन वादियों में, घुमावदार सड़कों और पहाड़ियों के बीच शानदार स्टार होटल में। शेफ है, लड़की है, अकेली है।
यहीं मिल जाते हैं सरदार सुखबीर पन्नू (एमी विर्क, पजाबी हीरो), अपना नया पन्ना लेकर। नए सफे पर नई कहानी शुरू। यही वो जगह है, यही वो समां है, यहीं पर कहीं एक, दूजे, तीजे से मिले थे। कोई ऋषि आता है और हीरोइन को खीर खिला जाता है। मोगली की शक्ल शक्ल में भेड़िया। बैड न्यूज़ के हालात खड़े हो गए।
डायरेक्टर ने इमोशनल फिल्म में कॉमेडी का घचड़घान कर दिया। खीर में रायता मिला दिया या फिर बादाम के हलवे में दही बड़े की चटनी। कॉमेडी झेलने की भी सीमा होती है। पैरोडी भी पांच सात मिनट ठीक लगती है, फिर झेलना दुशवार हो जाता है।
पंजाबी फिल्मों और गानों के शौकीनों तथा किटी पार्टीवाले ग्रुप को मजा आएगा। दिमाग घर रखकर जाएं। टाली जा सकने योग्य यानी टालनीय फिल्म।
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