डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
पंकज त्रिपाठी इस फिल्म में उतने ही अटल जी लगे, जितने फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी में विवेक ओबेरॉय मोदी जी लगे थे और सम्राट पृथ्वीराज में अक्षय कुमार पृथ्वीराज लगे थे।
फिल्म को देखकर लगा कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी सचमुच इतने पलायनवादी और बोरियत भरे व्यक्ति थे, जितने दिखाए गए हैं?
अटल जी वास्तव में खाने पी और शौक़ीन व्यक्ति रहे हैं तभी तो फिल्म में यह डायलॉग भी है कि ''मैं अविवाहित हूँ, कुंवारा नहीं !''
फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी के सभी सकारात्मक पहलू फ़िल्मी स्टाइल में हैं, कॉलेज के दिनों में राजकुमारी हक्सर (जो शादी के बाद राजकुमारी कौल बनीं) से उनके रूहानी संबंधों के भी। बाद में वाजपेयी उनके परिवार के हिस्से बने।
फिल्म में वाजपेयी के जीवन के इन पहलुओं को दिखाया गया है कि वे देश, आरएसएस और सिद्धांतों के प्रति समर्पित थे, वे नहीं चाहते थे कि बाबरी ढांचा ढहा दिया जाए और न ही वे खुद को प्रधानमंत्री के रूप में आगे लाने के इच्छुक थे।
अटल जी भाजपा के पहले नेता थे तो प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी और आजादी के 51 साल बाद वे पीएम बने, लेकिन लोक सभा में अविश्वास प्रस्ताव के बाद एक वोट से उनकी सरकार गिर गई थी। फिल्म में बताया गया है कि एक दौर ऐसा भी आया था जब वे राजनीति से दूर हो गए थे, लेकिन मित्र लालकृष्ण आडवाणी के कारण वे सक्रिय रहे।
भारत के दसवें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन के हर दौर की प्रमुख घटनाओं को फिल्म में समेटने की कोशिश में फिल्म वह वस्तु बन गई जिसे चूं चूं का कुछ कहा जाता है। फिल्म भारत पाकिस्तान युद्ध, कारगिल की लड़ाई, इमरजेंसी, आरएसएस पर प्रतिबन्ध, बाबरी ढांचे को गिराने जैसी घटनाएं हैं।
यह भी दिखाया गया है कि वाजपेयी ने भारत को परमाणु शक्ति दिलाने, पाकिस्तान से मैत्री के लिए अथक प्रयास किये थे। इन सभी विषयों पर अलग अलग कई फ़िल्में बन चुकी हैं, इस फिल्म में इन घटनाओं को सतही तौर पर छुआ है।
ढाई घंटे की फिल्म कहीं भी दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती। यहाँ तक कि अटल जी और राजकुमारी कौल के परिवार से उनके चालीस साल ज्यादा चले रिश्तों को केवल बैकग्राउंड म्यूज़िक में निपटा दिया गया। आरएसएस के भारतीय जनसंघ से और फिर भाजपा से रिश्तों को खुलकर दिखाया गया है।
हेडगेवार, गोलवलकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, नेहरू, शास्त्री, चरण सिंह, मोरारजी देसाई, राजमाता सिंधिया, इंदिरा और बाद के दौर के नेता अरुण जेटली, प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, उमा भारती आदि की झलकियां भी इसमें दिखेगी। पीयूष मिश्रा , कृष्ण बिहारी वाजपेयी के रूप में, अटल बिहारी वाजपेयी के पिता और एक स्कूल शिक्षक, राजा रमेश कुमार सेवक लालकृष्ण आडवाणी के रूप में,दया शंकर पांडे पंडित के रूप में दीन दयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के रूप में प्रमोद पाठक, इंदिरा गांधी के रूप में पायल नायर, प्रमोद महाजन के रूप में हर्षद कुमार, प्रसन्ना केतकर एमएस गोलवलकर के रूप में, जवाहरलाल नेहरू के रूप में हरेश खत्री, सोनिया गांधी के रूप में पाउला मैकग्लिन, सुषमा स्वराज के रूप में गौरी सुखतंकर और रिपोर्टर के रूप में कृष्णा सजनानी की भूमिकाएं हैं।
डायरेक्टर रवि जाधव की इस फिल्म में बैकग्राउंड का संगीत इतना तेज है कि अटल बिहारी वाजपेयी के संवाद कई बार सुनाई ही नहीं देते, यह फिल्म की बड़ी कमी है। अटल बिहारी वाजपेयी पर बेहतर फिल्म की अपेक्षा थी। इसे ओटीटी पर आने के बाद टुकड़ों-टुकड़ों में झेल सकेंगे।
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