अमन आकाश।
पंचायत-2 के आखिरी एपिसोड में शहीद राहुल पांडेय का पार्थिव शरीर फुलेरा आना है।
पत्रकार घटना की लाइव रिपोर्टिंग के लिए पहुंच चुके हैं। शव को लाने में अभी एक-डेढ़ घण्टे लग जाने हैं।
पंचायत भवन में पत्रकार बातचीत कर रहे हैं।
रिपोर्टर कैमरामैन से कहता है - "जवान लड़का था, शहीद हुआ है।
गांव गर्व कर रहा है। लड़के के पिता जब समाज में निकलेंगे तो इज्जत की नज़रों से देखे जाएंगे।
पर उन्हें समाज में ही तो नहीं रहना है, लौटकर घर भी तो जाना होगा, वहां उन्हें उनका बेटा नहीं मिलेगा।
भले ही शहीद राहुल पांडेय पिता को इज्जत बख़्श गए हों, पर उन्होंने जो अकेलापन, जो शून्य छोड़ा है वह कभी भरा नहीं जाएगा।"
कल पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की अंतिम यात्रा को देखकर पंचायत का वही दृश्य आंखों के सामने घूम गया।
हजारों की संख्या में चाहनेवाले मूसावाला पहुंचे थे. माता चरण कौर सिद्धू के बाल संवार रही थीं, पिता मूंछों पर ताव दे रहे थे।
पिता ने एक बार सिद्धू के सिग्नेचर स्टाइल की तरह जांघ पर हाथ मारकर भी भीड़ का अभिवादन भी किया।
कुछ देर में चिता की आग ठंडी पड़ जाएगी, भीड़ छंट जाएगी, सोशल मीडिया की मातमपुर्सी कम हो जाएगी।
सिद्धू मूसेवाला को लोग भले अगले 50 बरसों तक याद कर लें, एक बेटे के जाने का जो शून्य चरण कौर और बलकौर सिंह की ज़िंदगी में उपजा है, वह कभी नहीं, कोई नहीं भर पाएगा।
ना नाम, ना शोहरत, ना पैसा, ना चाहनेवालों की भीड़ और ना मिलियन-ट्रिलियन व्यूज।
दुनिया के लिए भले ही वो स्वैग वाला सिंगर सिद्धू मूसेवाला हो, अपनी बेबे और बापू के लिए वह 28 वर्षीय बेटा ही था, जिसकी शादी के सपने परिवार वालों ने संजो रखे थे।
सच में, जाना हिंदी की सबसे खौफनाक प्रक्रिया है!
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