अरूण पांडे।
शाहरुख़ की फ़िल्म का ट्रेलर देखने के बाद मुझे लग रहा है कि उन्होंने वैष्णोदेवी के दर्शन और उमरा करके सही किया क्योंकि उनकी फ़िल्म पठान को फ़्लॉप होने से अब God ही रोक सकते हैं.
दीपिका और शाहरुख़ की इस भयंकर ओवरएक्टिंग से भरपूर फ़िल्म को हिट कराने की कुव्वत इंसानों में तो नहीं है.
संयोग की बात है की ट्रेलर देखने के ठीक पहले मैं पाकिस्तानी एक्टर अली खान का एक इंटरव्यू देख रहा था जिसमें वो बताते हैं कि डॉन (नक़ली वाली) की शूटिंग के पहले रिहर्सल में शाहरुख़ स्क्रिप्ट से अलग ख़ालिस बॉलीवुडिया ओवरएक्टिंग करते हैं तो डायरेक्टर फरहान एतराज करते हैं कि स्क्रिप्ट में ही रहो तो शाहरुख़ कहते हैं कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता जनता उनसे यही टोटके देखना चाहती है.
अली बताते हैं शूटिंग में भी जब शाहरुख़ ने यही किया तो वो हैरान रह गए और उन्होंने फरहान से कहा ये ठीक नहीं है मैं रियलिस्टिक अंदाज में हूँ पर अगर वो स्टाइल मारेगा तो मैं भी स्टाइल मारूँगा.
मॉरल ऑफ द स्टोरी यही है कि पुरानी सफलता अक्सर लोगों को जड़ बना देती है. उन्हें वही सही लगता है जो वो पहले आज़मा चुके हैं. पर रियल लाइफ़ में ऐसा होता नहीं है पीढ़ियाँ बदल जाती हैं लोगों के टेस्ट बदल जाते हैं.
राजेश खन्ना के साथ यही हुआ वो 25 साल की उम्र में जो स्टाइल मारते थे वही 60 की उम्र में भी. बच्चन साहब ने बदलाव को जल्दी पकड़ लिया और इसलिए लंबा चल रहे हैं.
शाहरुख़ जोखिम नहीं उठा रहे हैं और जबकि ये उनका यूएसपी है.
शाहरुख़ जो गोलियाँ और गन चला रहे हैं वैसे स्टंट 6 साल का बच्चा रोज़ लैपटॉप पर खेलता है.
दीपिका जो गाने में कर रहीं हैं लोग ऐसी 150 रील सोशल मीडिया में रोज़ देखते हैं.
बहुत से नेताओं और ज़्यादातर अभिनेताओं के साथ दिक़्क़त होती है वो बार बार विफलता के बावजूद उस फ़ॉर्मूले और फ़ॉर्मेट को ही सफलता की गारंटी मानते हैं जिसने उन्हें किसी ज़माने में हिट बनाया था.
जो मिज़ाज के हिसाब से अंदाज बदलते रहते हैं वो छाए रहते हैं जो नहीं सुधरते उन्हें जनता और दर्शक और सबसे महत्वपूर्ण बाजार सुधार कर रख देते हैं.
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