कीर्ति राणा।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जब खुद कार्यकर्ताओं के बीच कहें कि अमित शाह ने प्रस्ताव रखा था कि बिना सरकारी कार्यक्रम के कार्यकर्ताओं का बूथ सम्मेलन कौन करा सकता है तो उन्होंने तुरंत यह टॉस्क पूरा करने की जिम्मेदारी स्वीकार ली।
जाहिर है बैठक में ऐसा ही हुआ होगा, बाकी नेता अमित शाह की बात समझने, कैसे कर पाएंगे की उधेड़बुन में लगे होंगे और विजयवर्गीय ने बाज झपट्टा मार दिया।
हरियाणा में भाजपा सरकार बनवाना हो या महेश्वर, सांवेर सीट पर प्रत्याशी की जीत हो विजयवर्गीय-मेंदोला की जोड़ी ने जब ऐसी तमाम चुनौतियों को सफलता में बदल कर दिखा दिया हो, कनकेश्वरी देवी से लेकर बागेश्वरधाम वाले धीरेंद्र शास्त्री की कथा में सात दिन में लाखों लोगों के भोजन आदि का इंतजाम करना जिनके लिए सामान्य बात हो तो मात्र 72 घंटे से भी कम समयावधि में सारी तैयारी कर के 20 हजार कार्यकर्ताओं का यह संभागीय सम्मेलन कराना तो इस जोड़ी के लिए हाथ के मेल समान ही है।
इस सम्मेलन को इंदौर और अपने क्षेत्र में कराने का दायित्व लेकर उन्होंने मप्र का चुनाव कराने आए तमाम बड़े नेताओं को यह संदेश भी दे दिया है कि विश्वस्त कार्यकर्ताओं की फौज के साथ धन-बल में भी किसी से कम नहीं हैं। पं बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद केंद्रीय नेतृत्व की नाराजी की जो हवा चली थी ऐसी सारी बातों को भी अमित शाह ने विजयवर्गीय के प्रति अपना विश्वास दर्शा कर झूठा साबित कर दिया है।
अमित शाह की मौजूदगी में इंदौर में होने वाला यह बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन भाजपा के इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण होगा कि इस सम्मेलन से में उनके भाषण का असर मालवा-निमाड़ तक होगा।प्रदेश की 230 में से मालवा-निमाड़ क्षेत्र में 66 सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां 28 सीटें मिली थीं, कांग्रेस ने यहां 35 सीटें जीती थीं।
कहा जाता है मालवा-निमाड़ में भाजपा के पिछड़ने के कारण पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।इस बार विजयवर्गीय को मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पार्टी सीटों की अधिकाधिक जीत का दायित्व सौंपती है तो वे भी पिछली बार की भूल से सबक लेकर इस बार अधिक प्रभावी तरीके से अपनी रणनीति को सफल कर के दिखाएंगे, क्योंकि इस बार चुनाव में सीएम फेस शिवराज नहीं हैं, मोदी के चेहरे के ताप के आगे तमाम चेहरों की हसरतें झुलस गई हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और हिंदुस्तान मेल के संपादक हैं।
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