ममता यादव।
मध्यप्रदेश कांग्रेस में जनरेशन गैप अब खुलकर दिखाई देने लगा है। गुटबाजी तो पहले से हावी थी ही अब पीढ़ियों का अंतर भी पार्टी की इमेज पर भारी पड़ रहा है।
आज राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार का फैसला विधायक जीतू पटवारी द्वारा व्यक्तिगत लेने और उसे जगजाहिर करने के बाद अब यह स्थिति बिल्कुल साफ हो गई है कि कांग्रेस में न तो कोई किसी से पूछ रहा है न कोई किसी को कुछ बता रहा है, जिसे जो समझ आये वो कर रहा है।
इसके पहले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा सीएम हाउस के सामने धरना देने के दौरान भी यही स्थिति बनी थी। प्रदेशअध्यक्ष कमलनाथ ने साफ—साफ कह दिया था कि उन्हें पता ही नहीं था कि दिग्विजय सिंह धरना दे रहे हैं।
उधर पार्टी ने जीतू पटवारी के फैसले से पार्टी ने पल्ला झाड़ लिया। सदन के भीतर नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने अपने विधायक के फैसले पर खुलकर नाराजगी जताई और कहा पार्टी इससे सहमत नहीं है।
आज का घटनाक्रम और उसपर आई प्रतिक्रिया कांग्रेस की गुटीय राजनीति में लगी आग में घी डालने का काम साबित हो सकता है।
देखने में आ रहा है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इन दिनों पार्टी के नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाने में लगे हैं लेकिन उनकी यह कोशिश सत्ताधारी भाजपा के लिए ज्यादा मुफीद साबित हो रही है।
दिग्विजय सिंह ने रतलाम में पार्टी के नेताओं को सबक सिखाते-सिखाते कह दिया था कि यह आखिरी चुनाव है।
वहीं, इस बार कमलनाथ ने विधायक जीतू पटवारी को व्यक्तिगत रूप से फैसला लेने पर सबक सिखाने के लिए सदन के भीतर यह कह दिया कि उन्हें भी ट्वीट से राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार की जानकारी लगी है।
मगर यह फैसला पार्टी का नहीं है। वे सदन की परंपराओं का पालन करते हैं।
अब खुद कांग्रेस के इस जनरेशन गैप और गुटबाजी का असर जब साफ—साफ नजर आने लगा है तो डैमेज कंट्रोल करने के लिए कांग्रेस के नेता ठीकरा मीडिया पत्रकारों पर फोड़ देते हैं।
सदन में कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह द्वारा कही गई बात भी ऐसी ही कुछ थी। इससे एक सवाल उठता है क्या पत्रकारों के टृविट उनके लेखन और नेताओं के टृविट या लेखन में कोई अंतर ही नहीं होता? बात हास्यास्पद है मगर गंभीर लोगों के तरफ से कही जाए तो सवाल उठना लाजिमी है।
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