निकाय चुनाव में गुरुओं का तिलस्म टूटा,विजय का आशीर्वाद, मिली पराजय

राजनीति            Aug 03, 2022


छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
सनातन धर्म में भगवान से बढ़ कोई गुरु नहीं हो सकता और जो भगवान से अधिक पूज्यवन हो जाये तो उससे बढ़ा पाखंड नहीं है।

एक बड़ा खुलासा है कि पंचायती और नगर निकाय चुनाव में नामचीन गुरूओं ने जिन्हे आशीर्वाद दिया, वह सभी चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गये।

जो गुरु सच्चा है वह इस सोशल मीडिया की चकाचोध में पूजा नहीं जा रहा। धाम की आंधी और अन्य गुरुओ की आंधी में लोग अपना जीवन का सत्कार मान चुके है।

गुरुओं के अंधे भक्तों के लिये चुभने वाली खबर है कि जिन धाम और गुरुओ का जिन प्रत्याशियों को आशीर्वाद मिला वह सभी पराजित हो गये।

पूरे देश सहित विदेशी मे एक धाम पूजा जा रहा है। उनके कृपापात्र सरपंची से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक का चुनाव बुरी तरह हार गये। इन गुरु की कृपा अपने करीबी भक्तों पर भी नहीं बरसी।

हाल के चुनाव में एक महत्वपूर्ण पद के लिये एक गुरु के बेहद करीबी शिष्य को टिकिट तक नहीं मिला जबकि चर्चायें गर्म रहीं कि अपने सबसे कृपापात्र शिष्य को टिकिट दिलाने के लिये गुरूजी ने हर संभव प्रयास किये।

जो नेता गुरूजी के सामने दंडवत होते थे उन्होंने गुरूजी का मोबाइल तक रिसीव करना बंद कर दिया।

शिष्य ने चुनाव में उतरने का फैसला किया तो गुरूजी नंबर गेम पूरा करने के लिये रात्रि में एक ताकतवर नेता के घर पहुंच गये।

गुरूजी का अचानक नेताजी के घर पहुंचना राजनैतिक गलियारों में विशेष चर्चा का विषय बना रहा।

शिष्य को पराजय मिली जो कई गुरुओ के तिलस्म पर संदेह व्यक्त करती है। गुरूजी तो अपने दरबार में भक्तो के अंतर्मन को पढ़ भविष्य का लेख बता देते है तो अपने परम भक्त का भविष्य क्यों नहीं बता सके।

वह तो ख़ुद राजनैतिक तिकड़म का पांसा फेकते नजर आये।

छतरपुर शहर के एक गुरु ने तो एक पार्षद प्रत्याशी को चुनौती दे दी थी।

गुरूजी ने इस पार्षद प्रत्याशी को पराजित करने के लिये पूरी जोर आजमाइश की पर गुरु की चुनौती की हवा निकल गई और प्रत्याशी ने भारी मतों के अंतर से विजय हासिल कर ली।

इन्हीं गुरूजी के सबसे करीबी शिष्य की तो वार्ड पार्षदी में जमानत जप्त हो गई।

गांव, नगर और जिले की सरकार के चुनाव में कई ऐसे मामले सामने आये है जिनमे गुरु के विशेष कृपापात्र शिष्य अपने गुरु के तिलस्म पर भरोसा कर चुनावी रण में उतरे और उन पर कृपा नहीं बरस पाई।

यह गुरुओ की आलोचना नहीं बल्कि हकीकत की समालोचना है।

धर्म अंधी भक्ति का नहीं बल्कि कर्म को फल से जोड़ा गया है, ईश्वर से बड़ा इंसान नहीं हो सकता है।

वर्तमान में देखा जा रहा है कि लोग अपनी ईश्वरीय भक्ति से अधिक गुरु की पूजा करने में विश्वास कर रहे है।



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