Fri, 23 May 2025

अटेर में कांग्रेस की जीत भाजपा की नहीं भदौरिया हार है

राजनीति            Apr 13, 2017


राकेश अचल।
मध्यप्रदेश में अटेर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की पराजय दरअसल भाजपा की पराजय नहीं अपितु भाजपा उम्मीदवार अरविन्द सिंह भदौरिया की हार है। अटेर विधानसभा कश्तर का चरित्र शुरू से ही अजूबा रहा है। यहां से चुने जाने वाले जन प्रतिनिधियों का दिमाग फिरते देर नहीं लगती। अरविंद से पहले अटेर का एक लंबा इतिहास रहा है। अटेर की जनता किसी भी प्रत्याशी को ज्यादा ढोती नहीं है यानि जनता प्रत्याशियों को रोटी की तरह पलटती रहती है।

देश की दूसरी आजादी यानि आपातकाल के बाद से तो कम से कम अटेर ने अपना यही चरित्र बना रखा है। 1977 में यहां से जनता पार्टी के शंकर लाल [मुन्ना खेरी] को जिताया था तो अगले ही चुनाव में[1980 ]कांग्रेस के परशुराम सिंह भदौरिया को चुन लिया। 1985 के चुनाव में कांग्रेस के सत्यदेव कटारे चुने गए तो 1990 में कटारे हार गए और भाजपा के मुन्ना सिंह भदौरिया चुन लिए गए।

1993 में कटारे की फिर जीत हुई लेकिन 1998 में भाजपा के मुन्ना सिंह भदौरिया की फिर वापसी हो गयी। 2003 में सत्यदेव कटारे फिर जीते और 2008 में कटारे की जगह भाजपा के अरविन्द सिंह भदौरिया चुन लिए गए। अटेर की जनता ने 2013 में कटारे को फिर चुन लिया और तय था कि यदि सत्यदेब 2019 का चुनाव लड़ते तो शायद न जीत पाते। कटारे के आकस्मिक निधन के कारण हुए इस उपचुनाव में भाजपा ने अरविन्द भदौरिया को दोबारा प्रत्याशी बनाकर भूल की। यदि अरविन्द की जगह कोई नया चेहरा होता तो शायद परिणाम कुछ और होते।

इस चुनाव में कांग्रेस के हेमंत कटारे को कोई सहानुभूति का सहारा नहीं मिला। वे कांग्रेस की कथित एकजुटता और भाजपा की अंदरूनी कलह के कारण जीते। मुश्किल ये है कि अनेक उपचुनाव हार चुकी कांग्रेस इस उप चुनाव की जीत का सिलसिला लगातार बनाये रखने में समर्थ नहीं है,यदि ऐसा होता तो बांधवगढ़ में भी कांग्रेस ही जीतती।

बहरहाल कांग्रेस के लिए अटेर विधानसभा उपचुनाव जीतने का जश्न मानाने दीजिये,भाजपा को इस उपचुनाव से ज्यादा हताशा नहीं होगी। किन्तु इलाके के छत्रपों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने शर्मसार जरूर होना पड़ेगा। क्योंकि मुख्यमंत्री ने उन्हें अटेर जीतने के लिए वो सब दिया था जिसकी दरकार उन्हें थी। इस उपचुनाव में जीत और हार से प्रदेश की राजनीति का परिदृश्य बदलने वाला नहीं है,क्योंकि कांग्रेस बहुत पीछे है भाजपा से। हाँ! कांग्रेस के उपाध्यक्ष डॉ गोविन्द सिंह जरूर अपने होने का अहसास पार्टी को अवश्य करा सकते हैं। उनके प्रयासों से कांग्रेस ने पूर्व में इसी तरह गोहद विधानसभा उपचुनाव भी जीता था।



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