रजनीश जैन।
लगता है जैसे चंपाबेन और उनके सत्यशोधन आश्रम के 28 साल व्यर्थ चले गये। उत्तराखंड के एक पहाड़ी गांव से सागर जिले के बेड़नी पथरिया गांव की बेड़नी नर्तकियों को देहव्यापार के दलदल से उबारने के लिए चंपाबेन इसी गांव में डट गयीं थीं। उनकी मुहिम की सफलता के यूं तो कई आयाम इलाके में दिख जाते हैं, लेकिन जब इस गांव की एक पूर्व नर्तकी क्रांतिबाई अपने राहतगढ़ जनपद की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं तो यह बदलाव का शीर्ष था।
क्रांति कुशल और समझदार नेता हैं और भाजपा की कर्मठ कार्यकर्ता हैं। पर उसे अपनी पार्टी से आज जो मिल रहा है वह वही है जो उसके बेड़िया समुदाय को हमने सैकड़ों सालों से दिया है। कलंक, जलालत, उपेक्षा और अपमान। तब लगता है कि सब कुछ वैसा ही तो है।
कल राहतगढ़ में प्रदेश के ऊर्जामंत्री 34 करोड़ की लागत से बना विद्युत सब स्टेशन का उद्घाटन करने आए थे। कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र में सबके नाम थे, जनपद अध्यक्ष क्रांति को छोड़कर। जनपद में उसके कनिष्ठ पदाधिकारियों के भी नाम थे, पर क्रांति का न नाम था न उसे आमंत्रण पत्र ही दिया गया।...सोचा होगा बेड़नी नचनारी है, आ गई तो कार्यक्रम की शोभा बिगड़ेगी। इसे कहते हैं सोशल स्टिगमा। क्रांति की बाइट सुनिए, वह भी खुद को दलित होने के कारण भेदभाव होना कह रही है, यह नहीं बता पा रही कि नर्तकी का अतीत होने के कारण उसके साथ ऐसा हो रहा है।
बेड़िया समुदाय को इसी वजह से अनुसूचित जाति में रखा गया है। उसका सीधा आरोप विधायक पारूल साहू पर है कि वे किसी भी कार्यक्रम में उसे नहीं बुलातीं। विधायक का दबदबा है क्षेत्र के अफसरों कर्मचारियों पर, हाल ही में एसडीएम संतोष चंदेल को क्षेत्र से हटवा चुकी हैं। लिहाजा सारी छोटी बड़ी चीजें वे और उनके पति नीरज केशरवानी तय करते हैं। सो क्रांति अगर उनको जिम्मेदार मान रही हैं तो इसके पीछे एक सिलसिला है। क्रांति का जनपद राहतगढ़ सुरखी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है जहां से युवा भाजपा विधायक पारूल साहू चुनी गयी थीं। सुरखी पुराने समाजवादी और अब भाजपा सांसद लक्ष्मीनारायण यादव का भी विधानसभा क्षेत्र रहा है। जनतापार्टी के शासनकाल में यहीं से चुने जाकर प्रदेश के शिक्षामंत्री बने थे।
कल के उद्घाटन कार्यक्रम में दोनों ही मौजूद थे। क्रांति की उपेक्षा के सवाल का कोई जबाब देते नहीं बना। श्रेय लूटने की महफिल सजी हो और पूरे जनपद की ग्रामीण जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला कस्बे की गलियों में उपेक्षा के अपमान का घूंट पर घूंट पीकर असहाय घूम रही हो तो इसके क्या नतीजे अगले चुनाव में निकलेंगे।
एक तरफ भाजपा का पूरा राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व दलितों को लुभाने उनकी देहरियों पर मत्था रगड़ रहा हो, महिलाओं को आरक्षण देने का गौरवगान करता हो, महिला सशक्तिकरण के दावे करता हो...जनपद अध्यक्ष क्रांति की गाथा पोल खोल देती है कि ग्रासरूट पर कितनी क्रांति सरकार ने की है।...अब रैमेडी क्या है? शिवराज सिंह स्वयं आऐं बेड़नी पथरिया गांव, क्रांति के घर पर भोजन करें, 2011 में चंपाबेन के निधन के बाद बेड़िया समुदाय के उद्धार का काम किस उपेक्षा का शिकार हुआ है इसका जायजा लें, सत्यशोधन आश्रम देखें और प्रेरणा लें।
आखिर क्रांतिबाई भाजपा की एक सम्मानित कार्यकर्ता भी है तो उसके साथ भेदभाव करने वालों को यह सजा दें कि जब मुख्यमंत्री क्रांति के गांव पहुंचे तो ऐसे नेताओं को अपने साथ न आने दें।
लेखक सागर के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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