कृष्णमोहन झा।
पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह इन दिनों नर्मदा परिक्रमा यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने यात्रा प्रारंभ करने के पूर्व ही यह घोषणा कर दी थी कि उनकी यह यात्रा पूरी तरह निजी धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा होगी। वे अपने इस संकल्प पर अडिग हैं। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से एक निश्चित दूरी बना रखी है और उनकी इस धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा के अब तक के किसी भी पड़ाव में ऐसे संकेत नहीं मिले हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री की वह सोच अपनी परिणिति के बिंदु तक अपने वर्तमान स्वरूप को राजनीति से अप्रभावित नहीं रख पाएगी।
वैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जिस प्रकार नित्य प्रति ही दिग्विजय सिंह से भेंट करने के लिए उनके पास पहुंच रहे है उससे यह धारणा बनना तो स्वाभाविक है कि पूर्व मुख्यमंत्री की धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा का राजनीतिक लाभ तो कांग्रेस पार्टी को मिलना तय है परंतु वरिष्ठ नेताओं की दिग्विजय सिंह से भेंट का एकमात्र उददेश्य उनकी यात्रा की सफलता के लिए उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देना ही है।
दिग्विजय सिंह से जब पार्टी के वरिष्ठ नेता भेंट करते हैं तब उनके बीच किसी भी तरह की राजनीतिक मंत्रणाएं नहीं होती। दिग्विजय सिंह के समर्थकों, मित्रों, शुभचिन्ताकों, परिचितों का प्रदेश में एक विशाल परिवार है और ये सभी उनके साथ यात्रा में चल रहे हैं। यह यात्रा किसी सरकार द्वारा प्रायोजित न होने के बावजूद अनूठी गरिमामयी पहचान बनती जा रही है। यात्रा को पूरी तरह सादगीपूर्ण बनाए रखने के लिए शायद दिग्विजय सिंह ने पहले ही अपने समर्थकों को निर्देशित कर रखा है इसलिए अनावश्यक फिजूल खर्ची और आडंबरी से यात्रा को पूर्णत: मुक्त रखा गया है। दिग्विजय सिंह जब यात्रा के दौरान साथ चलने वाले समर्थकों एवं श्रद्धालुओं की भीड़ से मुखातिब होते है तो पारिवारिक माहौल का दृश्य दिखाई देता है। भंडारे भी होते है, धर्म चर्चा भी होती है, अध्यात्म पर विचारों का आदान प्रदान होता है परंतु सब कुछ पारिवारिक माहौल में एवं सादगी के साथ।
दिग्विजय सिंह की इस अनूठी धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा में उनके अनुज लक्ष्मण सिंह एवं पुत्र जयवर्धन सिंह भी उनके साथ शामिल है। दिग्विजय सिंह की धर्म पत्नी हर पूजा अर्चना में उनके साथ होती हैं। भंडारे में स्वयं खाना परोसती हैं। महिलाओं से जब वे आत्मीय भाव से मिलती है तो उनसे मिलने वाली महिलाएं अभिभूत हुए बिना नहीं रहती।
परिक्रमा के दौरान रास्ते में एक खेत में हल चला रहे किसान को देखकर श्रीमती अमृता सिंह किसान के पास पहुंची और बैल की लगाम अपने हाथ में लेकर कुछ दूर तक हल चलाया। इस दौरान दिग्विजय सिंह किसान से खेती के संबंध में चर्चा करते रहे। इस अनुभव को भला बैल या किसान अपने स्मृति कोष की अमूल्य पूंजी नहीं मानेगा।
इस यात्रा में लोग दिग्विजय सिंह के दिल से जुड़ रहे है। जिस गांव में भी दिग्विजय सिंह का काफिला पहुंचता है उनके चारों ओर लोगों का हुजूम इकटठा हो जाता है दिग्विजय सिंह सबसे आत्मीय भाव से मिलते हैं। सबकी कुशलक्षेम पूछते हैं और ऐसी मधुर यादें पीछे छोड़ जाते हैं जिसकी अमिट छाप उनसे भेंट करने वालों के दिलों पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती है।
दिग्विजय सिंह ने अपनी यह धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा राज्य में शिवराज सरकार द्वारा प्रायोजित नर्मदा सेवा यात्रा के समापन के लगभग साढ़े चार माह बाद प्रारंभ की थी, जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का भी पूरा सहयोग था परंतु दिग्विजय सिंह की यात्रा में कांग्रेस पार्टी का कोई रोल नहीं है। दिग्विजय सिंह का कहना है कि बेतहाशा धन खर्च किए बिना भी नर्मदा सेवा यात्रा का आयोजन किया जा सकता था। धन की बर्बादी किए बिना भी प्रदेश की जनता को नर्मदा सेवा यात्रा से जोड़ा जा सकता था।
दिग्विजय सिंह ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि नर्मदा सेवा यात्रा में पंचायतों के सरपंचों से राशि खर्च कराई गई परंतु सरपंच यह राशि पाने के लिए अभी तक भटक रहे हैं। उन्होंने बार बार कहा है कि धन की बर्बादी किए बिना राज्य सरकार नर्मदा सेवा यात्रा की गरिमा को कायम रख सकती थी एवं प्रदेश की जनता तब भी इस यात्रा से जुड़कर स्वयं को धन्य मानती। लेकिन राज्य सरकार ने इसे सरकारी आयोजन बना दिया राज्य सरकार द्वारा पूरा ध्यान नर्मदा सेवा यात्रा की भव्यता सुनिश्चित करने पर था।
दिग्विजय सिंह को नर्मदा परिक्रमा यात्रा के लिए हार्दिक शुभकामनाएं देते हेतु आम कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ पार्टी नेता तक उनसे रोजना भेंट कर रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं पार्टी के वरिष्ठ सांसद ने दिग्विजय सिंह की सादगी पूर्ण धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा को कठोर तपस्या बताया है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें उनकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी। एक अन्य पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं पार्टी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दिग्विजय सिंह के साथ कुछ किलोमीटर तक पदयात्रा की। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री के समान सिंधिया भी जिस तरह सिर पर फेटा बांधकर उनके हम सफर बने यह एक अनूठा दृश्य था। दोनों के चेहरों पर मधुर मुस्कान थी इस दृश्य ने वहां मौजूद जन समूह में शामिल हर श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया।
दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा लगभग 6 माह में पूर्ण होगी। इस दौरान हर पड़ाव पर जुटने वाले उनके समर्थकों की भीड़ में रोजना ही इजाफा होता जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भले इस यात्रा को राजनीति से अप्रभावित रखने के संकल्प पर अडिग हो परंतु यह कैसे संभाव है कि दिग्विजय सिंह की इस अनूठी यात्रा से कांग्रेस पार्टी को कोई लाभ न पहुंचे। दिग्विजय सिंह का यह उददेश्य भी कदापि नहीं है कि पार्टी को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के लिए इस भव्यता प्रदान की जाए। यदि ऐसा होता तो यात्रा के इतने दिनों में इसके संकेत मिले बिना नहीं रहते।
इस सबके बावजूद दिग्विजय सिंह की इस निजी यात्रा पार्टी के शीर्ष नेताओं की एकजुटता बढ़ाने में परोक्ष योगदान तो दे ही रही है। प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भले ही कुछ भी कहे परंतु उसकी पैनी निगाहे तो पूर्व मुख्यमंत्री की इस निजी यात्रा पर निरंतर जमी हुई है। पार्टी की यह उत्सुकता भी स्वाभाविक है कि दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा अंतिम परिणिति के बिन्दु पर पहुंचकर क्या स्वरूप धारण कर लेगी।
दरअसल यह उत्सुकता केवल भाजपा ही नहीं बल्कि प्रदेश के राजनीतिक पंडितों को भी है कि 6 माह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा के दौरान राजनीति से स्वयं को पूर्णत: दूर रखने के संकल्प पर अडिग पूर्व मुख्यमंत्री अपनी इस निजी यात्रा की समाप्ति के पश्चात प्रदेश की राजनीति में अपने लिए कौनसी भूमिका तय करते हैं और 6 माह पश्चात पार्टी में वे अपने लिए जो भूमिका चुनेंगे उसे पार्टी सहर्ष सवीकार करेगी इसमें दो राय नहीं हो सकती।
यहां यह बात विशेष गौर करने लायक है कि जब उनकी यात्रा समाप्त होगी तब तक गुजरात विधानसभा के चुनाव परिणाम भी आ चुके होंगे जिन पर सारे देश की नजरें लगी हुई है। गुजरात चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद देश की राजनीति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आने के पूर्वानुमान उनसे लगाए जा रहे है और मध्यप्रदेश ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव से मुक्त नहीं रह सकता।
मध्यप्रदेश में इन परिवर्तनों का प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों में प्रतिबिंबित होगा। दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा जब पूर्ण होगी तक वे सक्रिय राजनीति में पुन: प्रवेश के संबंध में क्या फैसला लेते है यह अधीरता तो अभी से राजनीतिक पंडितों को सता रही होगी पंरतु इतना तो तय है कि पूर्व मुख्यमंत्री सक्रिय राजनीति में पुन: प्रवेश के संबंध में जो भी फैसला करें प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के केन्द्र में वे ही रहेंगे और हर महत्वपूर्ण मामले में उनकी राय अहम होगी।
दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा यात्रा प्रारंभ करने के अपने फैसले की जब घोषणा की थी तब ऐसी प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त की गई थी कि प्रदेश सरकार की नर्मदा सेवा यात्रा की खामियां उजागर करने के लिए वह यात्रा प्रारंभ कर रहे है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री का यह मंतव्य कभी नहीं रहा। उनका मानना है कि यह आस्था का विषय है और जिसके भी मन में मां नर्मदा के प्रति श्रद्धा एवं आस्था हो उसे नर्मदा पक्रिमा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता और न ही उस पर कोई सवाल उठाना उचित है।
रही नर्मदा सेवा यात्रा की खामियों की बात तो जब राज्य सरकार स्वयं यह दावा कर रही है कि नर्मदा सेवा यात्रा एक सफल ऐतिहासिक धार्मिक अभियान था तो फिर इसमें किसी भी तरह की कमियों के प्रति चिन्तित होने की उसे आवश्यकता ही नहीं है। बेहतर तो यह होता कि राज्य सरकार स्वयं ही नर्मदा सेवा यात्रा को एक ऐसे सर्वदलीय अभियान का स्वरूप देती जिससे समाज के हर वर्ग की हिस्सेदारी होती परंतु उसने तो अपने इस अभियान को सरकारी आयोजन की सीमाओं मेंं ही बांधे रखने का फैसला पहले ही कर लिया था।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।
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