राकेश दुबे।
भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल लोकसभा सीट की मुश्किल तो दिग्विजय सिंह के मुकाबले प्रज्ञा सिंह को उतारकर हल कर ली। इंदौर अभी जस की तस है।
भोपाल में मुकाबला “राजा” कहे जाने से खुश होने वाले दिग्विजय सिंह से अब साध्वी के उप नाम से ख्यात प्रज्ञा सिंह से है। दिग्विजय के खाते सालो की राजनीति है तो प्रज्ञा के खाते में जेल यातना।
कल औपचारिक रूप से भाजपा की सदस्य बनी प्रज्ञा सिंह सन्यास लेने के पूर्व भाजपा के छात्र और युवा सन्गठन में काम कर चुकी हैं।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही मध्यप्रदेश को जितने में जितनी ताकत लगा रही हैं, उससे ज्यादा उन्हें रूठों को मनाने में झोंकना पड़ रही है।
यूँ तो इन दिनों लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां मध्यप्रदेश में पूरे शबाब पर हैं। लोकसभा की 29 सीटों में से कांग्रेस ने अब तक 28 पर और भाजपा 24 पर अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है।
राज्य में कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां पर बागी उम्मीदवार खेल बिगाड़ सकते हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए उनके बागी मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।
खजुराहो में भाजपा नेता बीडी शर्मा का पुतला तक जलाया गया है। पुतला जलाकर विरोध करने वाले लोग भाजपा के ही कार्यकर्ता हैं।
खजुराहो भाजपा कार्यकर्ताओं की मांग उनके क्षेत्र में स्थानीय प्रत्याशी को टिकट देने की थी। भाजपा ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर इस सीट पर बीडी शर्मा को प्रत्याशी बनाया है।
शहडोल में भाजपा ने मौजूदा सांसद, पांच बार विधायक रहे और पूर्व मंत्री ज्ञान सिंह का टिकट काट कर उनके स्थान पर कांग्रेस से बीजेपी में हाल ही में आईं हिमाद्री सिंह को टिकट दे दिया गया। इससे सांसद ज्ञान सिंह खासे नाराज हैं।
ज्ञान सिंह का कहना है कि 'जब लाख-डेढ़ लाख से जीतने की बारी आई तो मुझे खिसका दिया। इसी तरह शहडोल में कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आईं पूर्व विधायक प्रमिला सिंह को टिकट दिया है।
बताया जाता है कि उन्हें कमलनाथ की सिफारिश पर टिकट मिला है। स्थानीय कांग्रेस में विरोध प्रमिला सिंह का भी हो रहा है। उधर मंदसौर से बीजेपी सांसद सुधीर गुप्ता को दोबारा टिकट दिया जाने के बाद किसान नेता बंसी लाल गुर्जर के समर्थक नाराज दिखाई दे रहे हैं।
छिंदवाड़ा से भाजपा ने कांग्रेस के नकुलनाथ के खिलाफ नत्थनशाह कवरेती को टिकट दिया तो पूर्व विधायक रामदास उइके नाराज हैं। विदिशा से कांग्रेस ने शैलेन्द्र पटेल को टिकट दिया तो स्थानीय कांग्रेसी नाखुश हैं।
सीधी में भाजपा उम्मीदवार रीति पाठक का खुलकर विरोध हो रहा है। विरोध में कई पदाधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफे तक दे दिए हैं।
2018 के चुनाव की तरह 2019 के रण में भी भाजपा और कांग्रेस को अपनों के खिलाफ डटे अपनों की नाराजगी झेलनी होगी।
सियासी दलों के डैमेज कंट्रोल की कोशिशों पर अपनों की नाराजगी भारी पड़ती दिख रही है।कहने भाजपा और कांग्रेस दोनों बगावत को नकार रही है, पर आग है दोनों तरफ बराबर लगी हुई।
अगर यह बगावत अदावत में बदल गई तो भाजपा को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस के पास वैसे भी खोने को कुछ नहीं है।
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