राघवेंद्र सिंह।
आम चुनाव का ऐलान हो गया है। कल तक जिन मेंगो पीपुल्स और पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी होती थी उनके समेत माई बाप वोटर नेताओं के आंखों के तारे और चेहरों के नूर हो जाएंगे।
दीपिका पादुकोण से व्याह रचाने वाले सुपरस्टार रणवीर सिंह की फिल्म गली ब्याय का एक गाना -अपना टाइम आएगा...मतदाताओं और कार्यकर्ताओं पर वोटिंग होने तक फिट बैठता है।
कल तक मध्यप्रदेश में जिन कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही थी अब पार्टियां खासतौर से उम्मीदवार उनकी लल्लोचप्पो करते नजर आएंगे। यहीं से शुरू होती है वोटर और कार्यकर्ताओं के साथ रैप सांग अपना भी टाइम आएगा।
पार्टी और नेताओं की भी बड़ी मुश्किल है। अभी दो महिने पहले ही तो वोटर को लुभाया था और कार्यकर्ताओं को मनाया था। लीडर दो महिने में ठीक से सुस्ता भी नहीं पाए थे कि आम चुनाव आ गए। कल के चुनाव तो सूबे की किस्मत बदलने वाले थे और आम चुनाव देश के भाग्य का फैसला करेंगे। राफेल विवादों में उलझी भाजपा पुलवामा कांड के बाद वायुसेना द्वारा पाक के आतंक के अड्डों पर की गई बमबारी के बाद आक्रामक मूड में है।
जाहिर है कि रोजगार,राममंदिर,नोटबंदी,जीएसटी जैसे मुद्दे चुनावी परदे से उतर गए लगते थे। लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा है अगर कोई आसमानी सुल्तानी घटना दुर्घटना नहीं होती है तो टीम राहुल गांधी फिर से राफेल के जिन्न को बाहर ले आएगी।
इतना तो है कराची के पास तक पहुंचे भारत के लड़ाकू विमान और आतंकी अड्डों पर उनकी बमबारी से भाजपा को निश्चित ही वोटों के मामले में बढ़त मिलेगी। इसमें खास बात ये है कि भाजपा चाहेगी विपक्ष सेना की कार्रवाई में मारे गए आतंकियों के मुद्दे पर सिर गिनाने का मामला जोरशोर से उठाए।
असल में भाजपा को पता है देश सेना के मामले में बहुत संवेदनशील है। एक फौजी पर भी अगर आंच आती है तो समूचा राष्ट्र युद्ध उन्माद में डूब जाता है।
जिस तरह पुलवामा में चालीस से अधिक सीआरपीएफ के जवान आतंकी हमले में शहीद हुए थे देशभर में सरकार पर चालीस के बदले चार सौ आतंकियों के सिर लाने का दबाव बढ़ रहा था।
एयर स्ट्राइक कर मोदी सरकार ने अपने खिलाफ जनता की नाराजगी को समर्थन में बदला और विपक्ष को डर है कि कहीं यह समर्थन वोट में न बदल जाए।
इस खींचतान के बीच चुनाव आयोग ने आम चुनाव का ऐलान कर दिया और अब सभी पार्टियों का फोकस आतंक,एयर स्ट्राइक और लड़ाकू पायलट अभिनंदन की वापसी के बाद वोटर पा आ गया है।
भाजपा वोटर को पाकिस्तान के आतंकी अड्डों पर बमबारी के बाद अपने पाले में लाने का अभियान तेज करेगी। इसके लिए सोशल मीडिया टेलीविजन पर फेक न्यूज की बाढ़ और तेज होने के संकेत हैं। ऐसे में वोटर के लिए कठिन समय आने वाला है।
किस पर भरोसा करे और किस पर न करे यह उसके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं होगा। हम ये तो नहीं कहते कि चुनाव आयोग इस पर कोई तत्काल बंदिश लगाए मगर ऐसा तो हो ही सकता है कि जैसे मतदान के 48 घंटे पहले प्रचार रुक जाता है वैसे ही वोट पड़ने के पांच सात दिन पहले सोशल मीडिया पर राजनीति, जाति, सम्प्रदाय और धर्म को लेकर खबरों पर रोक लगा दी जाए।
वैसे आयोग ने पाक में एयर स्ट्राइक जैसी खबरों का राजनैतिक लाभ लेने पर रोक लगा दी है। बैनर,विज्ञापन और भाषणों में ऐसे मुद्दे पर रोक सियासी दलों पर नकेल डालने वाली साबित होगी।
कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष चाहेगा कि लोकसभा के चुनाव भाजपा के 2014 में जारी किए गए घोषणा पत्र के मुद्दों को जनता के बीच ले जाए और इसी आधार पर मोदी सरकार का सोशल आडिट किया जाए। इसमें सालाना एक करोड़ नौकरी,मेक इन इंडिया,राममंदिर,कामन सिविल कोर्ट,धारा 370 का खात्मा जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरा जाए।
चुनाव से पहले मोदी ने कांग्रेस के पचास साल राज की तुलना में पांच साल की सत्ता मांगी थी।यह सही बात है कि किसी भी सरकार के लिए भारत जैसे देश में बदलाव के लिए पांच साल बहुत कम समय होता है।
लेकिन मोदी द्वारा मांगे गए पांच साल के भाषण खुद उनके लिए फंदा बन रहे हैं। बुद्धिजीवियों से लेकर आम मतदाताओं में यह चर्चा है कि मोदी सरकार अपने मुद्दों की बजाए उन विषयों पर काम करती रही जो मनमोहन सरकार ने अधूरे छोड़ दिए थे।
मसलन यूपीए सरकार जीएसटी लागू करना चाहती थी मोदी सरकार ने उसी काम को पूरा किया। इसके पहले मनमोहन सरकार भूमि सुधार कानून लाना चाहती थी जिसे मोदी सरकार ने आगे बढ़ाया बाद में राहुल गांधी और विपक्ष के विरोध के चलते मोदी को इस मुद्दे से अपने कदम खींचने पड़े।
इसी तरह 49 फीसदी विदेशी और 51 प्रतिशत भारतीय हिस्सेदारी के निवेश का भाजपा और संघ ने विरोध किया था। लेकिन मोदी सरकार ने सुरक्षा क्षेत्र में भी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी। शायद भाजपा विपक्ष में होती तो ऐसा वह कभी नहीं करने देती।
इन तमाम संवेदनशील और भावुक मुद्दों पर वोटर को भाजपा राष्ट्रहित के बहाने अपने पाले में खींच सकती थी। बहरहाल अब सीन बदल गया है जो मुद्दे कल तक भाजपा के लिए लाल कपड़े की तरह थे सरकार में आने के बाद उन्हें ही ओढ़ा और बिछाया जा रहा है।
देश के राजनैतिक परिदृश्य पर वोटर का समर्थन जुगाड़ करने वाली पार्टियों के नेताओं के लिए एक शेर याद आ रहा है-
आंधियों से न बुझूं ऐसा उजाला हो जाऊं,
वो नवाजे तो जुगनू से सितारा हो जाऊं,
एक कतरा हूं मुझे ऐसी सिफत दे मौला,
कोई प्यासा दिखे तो दरिया हो जाऊं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और आईएनडी समाचार चैनल में प्रधान संपादक हैं
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