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कुपोषण में टाप पर मध्यप्रदेश हजार में से 50 बच्चे नहीं मना पाते पहला जन्मदिन

राज्य            Jan 07, 2017


मल्हार मीडिया।

12वीं पंचवर्षीय (वर्ष 2012-2017) योजना की अवधि समाप्त होने में तीन माह से भी कम समय रह गया है। इन पांच साल में स्वास्थ्य, कुपोषण से जुड़ीं योजनाओं के बजट में भारी वृद्धि की गई, लेकिन परिणाम नजर नहीं आ रहे। महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन न मातृ मृत्यु दर में अपेक्षित कमी अाई और न ही शिशु मृत्यु दर में। गुरुवार को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की एसआरएस 2015 रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि शिशु मृत्यु दर में देश में मप्र फिर टॉप पर है।

यहां एक हजार में से शहर के 50 बच्चे अपना पहला जन्म दिन नहीं मना पाते। ग्रामीण क्षेत्रों की हालत और चिंताजनक है। यहां शिशु मृत्युदर 54 हैं। राज्य सरकार 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए तय लक्ष्य को एक दशक बाद भी पूरा नहीं कर पाई।  दोनों पंचवर्षीय योजनाओं के दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद दैनिक भास्कर ने पाया कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के लागू करते समय 2007 में मातृ मृत्यु दर को 125 प्रति हजार करने का लक्ष्य तय किया गया था।

जो पांच साल बाद वर्ष 2012 में भी नहीं बदला। अब वर्ष 2017 में भी यह आंकड़ा 150 प्रति हजार से नीचे आने की उम्मीद नहीं है। इसी प्रकार शिशु मृत्यु दर को 40 प्रति हजार तक लाने का दावा वर्ष 2002 में किया गया था। जो 15 वर्षों बाद भी लगभग 50 प्रति हजार है। यही हाल गरीबी और कुपोषण कम करने के दावों का है ।


11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राज्य सरकार ने दावा किया था कि प्रदेश में शिशु लिंगानुपात 932 से बढ़ाकर 950 तक ले जाया जाएगा, लेकिन प्रदेश में बेटियों की संख्या घटकर 914 पर आ गई है। शिवराज सरकार की महत्वाकांक्षी लाडली लक्ष्मी योजना को लेकर भी सवाल उठे हैं। क्योंकि इस योजना को सफलता पूर्वक लागू करने का दावा किया गया। लेकिन प्रदेश में बेटियों की संख्या बढाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है।
यह खुलासा 12वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में हुआ है। जिसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि लाडली लक्ष्मी, मुफ्त शिक्षा, भ्रूण हत्या के मामलो में सख्ती के लागू किए जाने के बावजूद प्रदेश में शिशु लिंगानुपात में कोई इजाफा नहीं हो सका।


किसी भी देश या राज्य के विकास के लिए स्वास्थ और शिक्षा आवश्यक है। दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के साठ साल के बाद भी प्रदेश दोनों सेक्टर में सबसे पिछड़ा हुआ है।
विकास की ऊंची दर के बावजूद, प्रदेश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।

प्रदेश में मौतों की संख्या बढ़ना और औसत जोतो का कम होना भी चिंता का विषय है।
2010-11 : महिला एवं बाल विकास विभाग का बजट 1717.79 करोड़ रुपए था।
2016-17 : बजट राशि बढ़ाकर 3922. 46 करोड़ कर दी गई। स्वास्थ्य विभाग का बजट 5643.86 करोड़ है ।



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