आज भले ही अनुपम मिश्र हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन वे अपने शब्दों तथा कार्यों के जरिए हमेशा जीवित रहेंगे। उनके कार्यों को आगे बढ़ाना ही हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी। इस आशय के विचार मंगलवार को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित संग्रहालय में सुनाई दिए। यहां प्रख्यात पर्यावरणविद् और गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र की स्मृति में सभा का आयोजन किया गया था। श्री मिश्र का 19 दिसंबर 2016 को दिल्ली में निधन हो गया था।
सभा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रमेश चंद्र शाह ने कहा कि अनुपम ने पर्यावरण और जल परंपरा के प्रति जो काम किया वह अद्वितीय है। उनकी किताब आज भी खरे हैं तालाब ऐसी कृति है जो साहित्यिक नहीं है लेकिन उसे जैसा प्रतिसाद मिला वह अपने आप में अनूठा है। प्रो. शाह ने कहा कि उन्होंने जो कार्य किए है उन्हें अपने जीवन में उतारें तथा उनके लिखे हुए को पढ़ें यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी। हिन्दी सेवी तथा वरिष्ठ पत्रकार कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि अनुपम की भाषा और जीवन दोनों में ही समाज की दो विभूतियों की झलक मिलती है।
उनकी भाषा पर यदि विनोबा भावे का प्रभव है तो जीवन में महात्मा गांधी की झलक मिलती है। उन्होंने गांधी की तरह ही सादा जीवन जीया तथा जैसा सोचा वैसा ही आचरण में उतारा भी। श्री पंत ने अनुपम के पिता मूर्धन्य कवि भवानी प्रसाद मिश्र के साथ बिताये क्षणों को भी याद किया।
शिक्षाविद् रमेश दवे ने अनुपम जी की किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का प्रस्ताव शासन को देने का सुझाव भी रखा तथा इस दिशा में अब तक अपने तई किए प्रयासों का जिक्र भी किया। लोककला मर्मज्ञ बसंत निरगुणे ने कहा कि वे जलदृष्टा थे। उन्होंने जल से भाषा प्राप्त की। ऐसे वे बिरला व्यक्तित्व थे। पर्यावरण्विद् केजी व्यास ने भी अनुपम जी के कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने संग्रहालय और अनुपम जी के रिश्तों को रेखांकित किया। अंत में अनुपम जी के चित्र पर पुष्पांजली अर्पित की गई तथा दो मिनट का मौन रखा गया। इस अवसर पर संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा,किशन पंत, दीपक पगारे, डॉ. शिवकुमार अवस्थी एवं प्रो. रत्नेश श्रीमती ऋचा अनुरागी ममता यादव सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
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