अशोक मनवानी।
लता जी के अवसान का दुखद समाचार मिला है। लता मंगेशकर मध्यप्रदेश में जन्मी। पत्र-पत्रिकाओं में इतने आलेख किसी एक गायिका के बारे में कभी प्रकाशित नहीं होते। देश का हिंदी का शायद ही कोई ऐसा प्रमुख अखबार हो जो लता जी के जन्मदिवस पर उनके बारे में सामग्री का प्रकाशन न करता हो। लता जी ने बहुत छोटी उम्र से गाना शुरू कर दिया था, उन्होंने कई भाषाओं के गीत गाए हैं, उन्होंने हर उम्र की नायिका को आवाज दी। देश के कुछ प्रमुख फिल्म रसिकों और लेखकों के लता जी के बारे में विचारों को संकलित कर प्रस्तुत किया है। संगीत प्रेमियों, सिने प्रेमियों और लता जी को संगीत की देवी मानने वाले अवश्य पसंद करेंगे।
बाबा तेरी सोन चिरैया
फिल्म लेखक, समीक्षक अजातशत्रु का मानना है कि लता जी सर्वोत्तम ,अनुपम ,गजब और फैंटास्टिक जैसे शब्दों से काफी ऊपर हैं। लता की आवाज की खूबी को समझना है तो हम कह सकते हैं कि यह खूबी संयोग से मिलती है, न रियाज से और न किसी के आशीर्वाद से। इसको समझने के लिए हमें विवेक और विज्ञान से बाहर जाकर एक अंधविश्वासी शब्दावली बनानी पड़ेगी। एक ऐसी खूबी जिसे लता के प्रसंग में यह कहा जाए तो ठीक रहेगा कि वह हजारों साल में किसी गायक या गायिका को नसीब होती है।
बल्कि हजारों सालों में भी नहीं।क्योंकि लता रिपीट होने वाली चीज नहीं है। खूबी है इस आवाज की कि वह निर्मलता और पवित्रता से लबरेज है। कहना यह चाहिए कि हमारी नजर में अंधविश्वास की हद पर जाकर लता को ईश्वर या प्रकृति ने दिव्य आवाज का यह तोहफा दिया है। "बाबा तेरी सोन चिरैया" नाम से 2008 में प्रकाशित पुस्तक में लता जी के गीतों की मीमांसा कर चुके अजातशत्रु ने यह अभिमत लता जी के मिस्ट्री गीतों पर लिखे अपने आलेख "गुजरी सदियों की धुंध में लौटाती एक आवाज" में लिखा है।
लता मंगेशकर : ऐसा कहां से लाऊं
हिंदी और डोगरी की जानी-मानी लेखिका पद्मा सचदेव लता जी के साथ बिताए समय को याद करते हुए लिखती हैं। मैंने लता जी को कभी किसी को टोकते हुए नहीं देखा अपनी रिकॉर्डिंग और प्रोग्राम के लिए वे चिंतित और मुस्तैद रहती हैं। मैं बड़ी हैरान होती हूं जब यह सुनती हूं कि लता जी रिकॉर्डिंग पर समय से नहीं पहुंचती या रिकॉर्डिंग कैंसिल कर देती हैं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं देखा दीदी रिकॉर्डिंग पर आ चुकी हैं। यहां कोई जल्दी में दिखाई नहीं दे रहा साज, सुर में होने को है और एलपी( लक्ष्मीकांत प्यारेलाल )भी मजे में खड़े हैं.लता दीदी कोरस की लड़कियों के साथ बातें कर रही हैं । वह कहीं से भी लता मंगेशकर नहीं लगती।आर्केस्ट्रा जोर जोर से बज रहा है। लता जी की आवाज कोयल जैसी सुरीली आवाज, जैसे शोर का सारा नशा तोड़ कर उस पर छा जाती है। मैंने यह भी सुना था दीदी जब लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की रिकॉर्डिंग पर जाती हैं तो वे दोनों इन्हें हार पहनाकर पांव छुते हैं। लेकिन ऐसी तो कोई रीति नहीं हुई। बांसुरी की मीठी आवाज उभरती है फिर शोर में खो जाती है। तेज आर्केस्ट्रा के शोर में दीदी की आवाज राहत की एक थपकी लेकर उभर रही है। एक नशे की तरह चढ़ती जा रही है। लता जी और रफी साहब का युगल गीत रिकॉर्ड होते देखा। हम 11 बजे सब लोग आए थे ,अभी दोपहर का 1:30 बज रहा था ।इसी तरह एक रिकॉर्डिंग शंकर जयकिशन जी की थी जिसमें लता जी भैरवी राग में सजी कोई धुन गा रही थी। दूसरे स्टूडियो में इसी दिन सोनिक ओमी की रिकॉर्डिंग है ।गीत साहिर लुधियानवी का है। सोनिक ओमी लता दीदी को धुन सुना रहे हैं। चेहरे पर शिकन तक नहीं है। इसी तरह एक बार हृदयनाथ भाई साहब के बेटे आदिनाथ के नामकरण का दिन था। महाराष्ट्र में रिवाज है, नाम रखते समय बेटे को पालने में झुलाते हुए बुआ लोग लोरी गाती हैं। आशा जी ने गीत गाना शुरू किया "कोई कहे कृष्ण ...कोई कहे..." फिर लता दीदी, मीना जी, उषा जी सब गाने लगी। भारत की सर्वश्रेष्ठ गायिकाएं पालने को झुलाते हुए गा रही थी छोटा सा प्यारा सा चेहरा सुकून में डूब गया। लता दीदी का स्वर उसकी मुखाकृति पर सुख की एक महीन सी परत ओढ़ा गया था। पद्मा सचदेव ने यह अभिमत भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित पुस्तक लता मंगेशकर: ऐसा कहां से लाऊं प्रथम संस्करण वर्ष 2012 में लिखा है।
सिनेमा : कल आज ,कल
जाने माने फिल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज का मानना है कि लता मंगेशकर के लिए इससे अधिक संतोष की बात क्या हो सकती है की फिल्मी दुनिया में छह सात दशक तक उनकी सक्रियता, रचनात्मकता और कलात्मकता का निखार देखने को मिला है ।लता की प्रशंसा में बीसवीं शताब्दी के अनेक दिग्गजों ने दिल खोल कर लिखा है। इनमें कुमार गंधर्व, यहूदी मेनुहिन, अमीर खान ,बड़े गुलाम अली खान, भीमसेन जोशी, पंडित जसराज, इलैयाराजा रविशंकर सरीखे नाम शामिल है ।लता जी को किसी प्रमाण पत्र या प्रशंसा की क्या जरूरत है ।लता जी ने अपने कैरियर में उन गीतों को गाने से बचने का भरसक प्रयास किया जो मादक अथवा चालू संगीत वाले माने जाते हैं। लेकिन इंतकाम में साधना पर फिल्माए कैसे रहूं चुप या हेलेन पर फिल्माए ओ जाने जा ,संगम में वैजयंती माला पर फिल्माए मैं क्या करूं राम.. रोटी कपड़ा और मकान में जीनत अमान पर पिक्चराइज अरे हाय हाय ये मजबूरी.. और चांदनी में श्रीदेवी पर फिल्माए मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां..जैसे गीत भी उन्होंने बखूबी गाए। ये लता जी की परिपाटी से हटकर थे। विनोद भारद्वाज ने यह अभिमत सिनेमा : कल, आज कल ( वाणी प्रकाशन ,दिल्ली)वर्ष 2006 में अपने आलेख एक मीठी महानता का नाम है लता में लिखा है।
लता : सुर गाथा
लेखक यतींद्र मिश्र का कहना है कि लता जी ने अपने स्वरों की थाती से फिल्मी गीतों भजनों, गजलों, अभंग पदों नात, कव्वाली, श्लोक और मंत्र गायन, लोकगीतों, कविताओं तथा देशभक्ति गीतों के माध्यम से जितनी रोशनी बिखेरी हुई है उसके अनुपात में कोई कवि, संगीत विश्लेषक या सिनेमा अध्येता अपनी बात कभी भी मुकम्मल तौर पर पूरी तरह नहीं कह सकता। उनका लिखा, सोचा विचारा कुछ ना कुछ छूट अवश्य जाएगा। उनके द्वारा बनाई गई कला की बड़ी परिधि पर वामन के डग की तरह पृथ्वी नापने का काम शायद ही कोई करने में समर्थ हो।श्री यतींद्र मिश्र ने यह बात अपनी पुस्तक लता सुर गाथा (प्रकाशक वाणी प्रकाशन नई दिल्ली) वर्ष 2016 की भूमिका में लिखी है.
लता दीदी : अजीब दास्तां है ये
लता जी के साथ अनेक देशों में गीत संगीत कार्यक्रम में शामिल हो चुके प्रसिद्ध उद्घोषक हरीश भिमानी मैं समय हूं) ने लता जी के बातचीत और जीवन जीने के सहज अंदाज के बारे में लिखा है कि स्टेज पर जाने से पहले जीने की आखिरी पायदान को किसी देवता के चरण की तरह छूना लता जी के स्वभाव में है और गाना गाते समय में चप्पल नहीं पहनती। चाहे स्टेज हो या रिकॉर्डिंग स्टूडियो। इसी तरह अपने पहनावे के रंगों के बारे में लता जी का विश्वास है कि साड़ी तो मैं वाइट ही पहनती हूं ,सोमवार हो तो उसका बॉर्डर एक रंग का होता है और शुक्र शनिवार को अलग रंग का। लेकिन कौन से रंग के साथ क्या विश्वास जुड़ा है, यह बात भी आग्रह करने पर भी नहीं बताती अमावस्या के दिन लता जी न गीत गाएंगी न ही किसी प्रवास या नए अभियान का आरंभ करेंगी। सप्ताह में एक बार महालक्ष्मी के दर्शन भी अवश्य करेंगी । व्रत और उपवासों का पालन तो यातना की सीमा तक कर लेती हैं।चाहे विश्व के किसी कोने में हो और उस दिन कोई महत्वपूर्ण कार्यक्रम ही क्यों ना हो। उपवास है तो नियमानुसार होगा ही और कार्यक्रम भी नियत समय पर होगा। भिमानी जी ने कहा कि लता जी ने उनसे इंटरव्यू में कहा है कि वह पिछले जन्म में और पुनर्जन्म में विश्वास रखती हैं ।अगर लोग मुझे इतना स्नेह देते हैं तो जरूर यह पिछले जन्मों के कर्मों का फल होगा ।हरीश भिमानी ने उन परिस्थितियों का भी उल्लेख किया है जब पिता की मृत्यु के 1 घंटे बाद 13 वर्ष की लता ने बिलख रही मां से पूछा था "माई क्या आप मुझे नौकरी करनी होगी ?" दीनानाथ जी की अंतिम क्रिया पर खर्च हुए 75 रुपए के बाद घर में केवल 4 दिन का राशन बचा था। पांचवें दिन घर के 6 जीवों के लिए अन्न कहां से आएगा ,यह विकराल प्रश्न जितना माई को सताता था उतना ही 13 वर्ष की वयस्क लता को। माई के गहने तो बहुत पहले बिक चुके थे, बलवंत फिल्म कंपनी का गिरवी रखा कैमरा छुड़ा न पाने के वक्त।अब तो एक-एक करके बर्तन भी बिकने लगे थे। शिक्षा में रुकावट आ गई पर पिता की अकाल मृत्यु होने पर मुख्य सवाल सीखने का नहीं जो कुछ सीखा था उसे काम में लाने का था। फिल्मों में पार्श्व गायन की प्रणाली अभी युवा थी और पार्श्व गायन के लिए लता की आवाज भी अभी बहुत कच्ची थी।श्री भिमानी ने यह विचार और संस्मरण अपनी पुस्तक "लता दीदी: अजीब दास्तां है ये" अरुणोदय प्रकाशन नई दिल्ली (प्रकाशन वर्ष 2017) में व्यक्त व्यक्त किए हैं।
सृष्टि का अमर स्वर : लता
मध्यप्रदेश में पत्रकारिता के स्कूल माने जाने वाले नईदुनिया इंदौर के संपादक प्रकाशक अभय छजलानी ने लता जी के बारे में लिखा है कि एक आवाज जो हमारे अंधेरों और हमारी उदासियों को बेधकर बरसों से कानों के जरिए हमारे खून में शामिल होती रही है उस आवाज का नाम है लता मंगेशकर। दरअसल लता मंगेशकर एक नाम ना हो कर जीवित आश्चर्य है, जिसमें हिंदुस्तान की कई पीढ़ियां अपनी आत्मा के अकेलेपन को खोजती हैं। उस अकेलेपन को जो पीड़ा की पवित्रता में छटपटाता रहता है। क्या आपको नहीं लगता लता मंगेशकर को सुनते हुए कि सब कुछ ठहर गया है। सिर्फ एक स्वर चल रहा है, ठीक वहां से उठकर ,जहां से शब्द अपना अर्थ ग्रहण करते हैं।
लता मंगेशकर सुगम व लोकप्रिय संगीत की मोनालिसा हैं। इसलिए अद्वितीय भी। नई पीढ़ियां आएंगी और आती रहेंगी और उन सब के बीच उनकी यह आवाज संगीत के संसार में एक अनश्वर नागरिक की तरह शताब्दियों तक हरदम बनी रहेगी। श्री अभय छजलानी ने लता जी के बारे में लाभचंद प्रकाशन,इंदौर से प्रकाशित आलेख संकलन "सृष्टि का अमृत स्वर :लता" प्रकाशन वर्ष 2004 में यह विचार लिखे हैं।
द लूमिनास लाइफ ऑफ लता मंगेशकर
अंग्रेजी लेखक श्याम दुआ ने लिखा है कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार सहित अनेक संस्थाओं ने लता जी के नाम पर पुरस्कार स्थापित किए हैं। यह किसी गायक या गायिका का उसके जीवन काल में मिलने वाला सबसे बड़ा सम्मान है। श्री श्याम दुआ ने अपनी पुस्तक "द लूमिनस लाइफ ऑफ लता मंगेशकर" प्रिंटलाइन बुक्स दिल्ली ,प्रकाशन वर्ष 2004 में यह बात लिखी है।
लता : समग्र
लता दीनानाथ मंगेशकर रिकॉर्ड संग्रहालय पिगदम्बर, इंदौर के जनक सुमन चौरसिया का मानना है कि गायन के इतिहास में तानसेन की तरह एक अशर नाम और किंवदंती बन चुकी कोकिल कंठी गायिका लता मंगेशकर के गायन वैशिष्ट्य की प्रशंसा में बहुत लिखा जा चुका है, कहा जा चुका है, पर लता का काम और असर शब्दों के बखान करने की क्षमता के बहुत आगे है। लता दीदी आराध्या स्वरूपा हैं।
श्री चौरसिया ने यह बात संग्रहालय के प्रकाशन "लता समग्र"2014 की भूमिका में लिखी है।
समीक्षात्मक आलेख
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