रजनीश जैन।
एक संघ था,उसके द्वारा पोषित राजनैतिक दल थे जिनके कार्यकर्ता विचारधारा के लिए परिवार और प्राणों का भी उत्सर्ग करते थे। ये कार्यकर्ता जब भी दौरों पर जाते तो किसी स्थानीय कार्यकर्ता या धर्मशाला में जा टिकते। अपनी थाली और लोटा डोरी भी झोले में लेकर चलते थे ताकि किसी मेजबान या मुलाकाती की मान्यताऐं ,रूढ़ियां बाधा न बने। विचार से पगे ये लोग सिर्फ विचार फैलाते, इतिहास और संस्कृति की दुहाई देते। इसका विनाश करने वाली शक्तियों और साजिशों के खिलाफ उनकी जंग पैदल, साईकल पर, बैलगाड़ी और रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे की यात्रा से होती। ...दाल, रोटी, उपलों पर सिकी बाटियों के सहारे जनसंघ, भाजपा के साधारण सी वेशभूषा वाले इन लोगों ने अपने असाधारण योगदानों से जिस साम्राज्य की रचना की उसके सुविधाभोगी होने में एक दशक भी नहीं लगा।
सत्ताप्राप्ती के सारे प्रपंच उसका मूलमंत्र बन गये और सत्ता एकमात्र ध्येय। ...झोले की लोटा डोरी कब आलीशान झूमरों में बदल गई होश नहीं। भोजन की पत्तल एक नैग की तरह रह गयी है पेपर नैपकिन की सोहबत में, वरना चाँदी की थालियाँ सर्वसुलभ हैं। ...मंदिरों या ट्रस्टों में होने वाली कार्यसमिति की बैठकें जब पाँच सितारा इंतजामों पर निर्भर हो जाऐं , सैकड़ों सरकारी अर्धसरकारी रेस्टहाऊस, समस्त ए श्रेणी होटलों के कक्ष जब मेहमानों की रात्रिकालीन खुमारियों से महक उठें तब जनमानस में संदेह अपरिहार्य है कि...यार ये चल क्या रहा है?
एक महारानी आईं, मुख्य द्वार से बैठक कक्ष के मध्य चालीस मीटर की दूरी पैदल चल कर झल्ला उठीं।...गाड़ी यहाँ तक नहीं आ सकती थी क्या? ...
ये लोग पं दीनदयाल और कुशाभाऊ के वारिस हैं! ऐसे लोगों के जो रात दिन भागते रहे जिन्होंने पटरियों पर अंतिम साँस ली। उनका वर्तमान रेशमी कालीनों, विदेशी कटलरी और पाँच सितारा संस्कृति में चिंतन करता है कि मतदाता को मूर्ख बनाने के ऐसे कौन से नये तरीके हो सकते हैं जिनसे बिना सच की भनक लगे उसका वोट अगले पाँच साल के लिऐ हड़पा जा सके? किसान को नाकारा बनाऐ रखने और उसकी जमीनें छीनने के लिऐ और कौन से उपाय किऐ जा सकते हैं? महिलाओं, गरीबों, मजदूरों को गच्चा देने के लिऐ कौन से नये प्रयत्न किए जाना शेष हैं जिन्हें अपना लिया जाना चाहिऐ?...सवर्ण से अवर्ण तक वे कौन से जातिसमूह हैं जो अभी तक बरगलाऐ नहीं जा सके हैं?...वे पुराने और सेमीपुराने कार्यकर्ता जो अब हकीकत को पहचान चुके हैं उनका मनोबल तोड़कर तनखैय्या घोषित करने के लिए क्या किया जाना चाहिऐ ताकि ये सन् तक 19 पास फटकना भी बंद कर दें?
...जिलों में भ्रष्टाचार का प्रतिशत न्यून करने की माँग करने वाले तत्वों को चिंहिंत करके उन्हें कैसे फौजदारी में रगड़ा जा सकता है ताकि घटिया निर्माण की परंपरा को सुनिश्चित किया जा सके? राजनैतिक प्रस्ताव के लिऐ विषय वही हैं जो पहले थे, बच्चों की उम्र बढ़ने से उनके पुनर्वास के प्रयासों में आशातीत तेजी लाऐ जाने पर बल देना होगा। सभी सदस्यों के बच्चे बडे हो रहे हैं। जिनके हो चुके हैं उन्हें बिना अपनी विरासत सौंपे आसपास के उदीयमान, कर्मठ विधायक की सीट पर थोपने के महान लक्ष्य को हासिल करना। ठेकेदारी, फारेस्ट, सहकारी संस्थाओं से धन कबाड़ने के पुरातन और बदनाम तरीकों को त्याग एनजीओ, चिटफंड, केंद्रीय मंत्रालयों की नवाचारी स्कीमों और प्राइवेट कंपनियों की डीलरशिप हथियाने की नई तकनीक पर तेजी से अमल किया जाना, संभावित चुनावी प्रतिद्वन्दी को नष्ट करने के लिऐ त्वरित उपाय , मीडिया कैंपेन के लिऐ नवोदित पत्रकारों और बूथ मैनेजमेंट के लिऐ जिमों से नये मुस्टंडों को अभी से भर्ती करना ...आदि आदि। इनर कोर के सभी अहम मेंम्बरान की इनक्लोज मीटिंग का गोपनीय सत्र ऐसी बैठकों का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। इसके सदस्य का न्यूनतम लक्ष्य स्वयंशासित जिले में एक भव्य परिसर स्थापित किया जाना है जिसका बहुउदे्दशीय इस्तेमाल हो सके।
...ये और ऐसे कई विषयों पर गहन चिंतन और कुछ फैसले लेने पर ही कोई कार्यसमिति सफल मानी जाती है। सब जनता आश्वस्त हो ले कि आगे की सरकार बनाने के लिऐ आपको माथाफोड़ी में नहीं पड़ना है। सब तय हो गया है। यदि जरूरत पड़ी तो आपको वोट डालने का अवसर अवश्य दिया जाऐगा। ...अभी लिऐ निर्णयों को समयानुसार रिफाइंड करने हम ऐसी और बैठकें आयोजित करेंगे। लेकिन अब किसी और संभाग में ....ताकि वहाँ की बेहया और भिखमंगी अवाम भी अपनी सरकार के विराट रूप का दर्शन कर सके। देख सके कि सरकार मस्त है, तंदरुस्ती का अफरा चढ़ी सरकार है तुम्हारी...क्यों व्यर्थ चिंता करते हो रे मूर्ख प्रदेशवासियो...!?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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