अशोक मनवानी।
कुछ वर्ष पहले जन्मजात रोग प्रोजेरिया के बारे में हम लोगों ने हिन्दी फिल्म 'पा' के माध्यम से कुछ जानकारी प्राप्त की थी। ऐसे ही कुछ रक्त रोग भी हैं जो शिशुओं को जन्मजात अपने माता-पिता से मिल जाते हैं। ऐसा ही एक रोग है थैलेसीमिया। बहुत से रोग उस रोग के रोगियों की संख्या से नहीं बल्कि रोग की गंभीर प्रकृति के कारण विकराल होते हैं। जब प्रोजेरिया बीमारी के पूरे विश्व में सौ से भी कम रोगी हैं और उस रोग के प्रति संवेदनशीलता जगाने के लिए फिल्म से ध्यान आकर्षित किया गया, तब लोगों का ध्यान इस बीमारी की ओर गया। यह उचित भी था। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी एक प्रोजेरिया से ग्रस्त प्रदेश के एक बालक से आत्मीय भेंट कर उसका हौसला बढ़ाकर यह संदेश दिया था कि लोग ऐसे रोगियों के प्रति भी जागरुक और सहयोगी बनें।
थैलेसीमिया रोग युवक-युवती दोनों के थैलेसीमिया माईनर होने की दशा में उनका विवाह होने पर उनकी संतानों में थैलेसीमिया मेजर के रूप में दिखाई देता है। होता यह है कि थैलेसीमिया मेजर के रोगी को जीवन भर दूसरों के रक्त पर निर्भर रहना पड़ता है। शरीर में रक्त का निर्माण न होने से यह स्थिति बनती है। भारत में इस रोग के रोगी अधिकतम तीस वर्ष तक जीते हैं। बोन मेरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से रोगी को डोनर से बोन मेरो फ्ल्यूड देकर जीवन रक्षा की जाती रही है। यह ट्रांसप्लांट सफल होने पर रोगी का जीवन लम्बे समय तक चलता है। इस ट्रांसप्लांट की पद्धति के सफल होने से ऐसे रोगियों के इलाज में सफलता प्रतिशत धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वर्तमान में तमिलनाडु के वैल्लोर, मुम्बई और नई दिल्ली में बीएमटी किया जा रहा है। मध्य भारत में इन्दौर प्रथम केन्द्र होगा जहाँ बोन मेरो ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू होगी। मध्यप्रदेश सरकार की यह इस रोग से ग्रस्त रोगों के कल्याण के लिए एक अहम पहल है। बीएमटी थैलेसीमिया के साथ ही कुछ अन्य रक्त रोगों का इलाज भी है।
ताज्जुब की बात है कि हमारे देश के शिक्षित समाज में इस रोग के बारे में जागरुकता की काफी कमी है। अतएव देश में ऐसे रोगियों की संख्या करीब 50 हजार है जो इस रोग के कारण कष्ट उठा रहे हैं। इससे पीड़ित रोगी दरअसल बेकसूर हैं। कसूरवार हैं वो माता-पिता जिन्होंने विवाह के पूर्व एक हजार रुपये से भी कम खर्च पर होने वाली वो रक्त जाँच नहीं करवाई, जिससे व्यक्ति के थैलेसीमिया माईनर से ग्रस्त होने की जानकारी मिलती है। कई राष्ट्रों में यह जाँच कानूनी रूप से अनिवार्य की गई है। फिर भी इस रोग के कुछ मामले उन राष्ट्रों में भी सामने आ ही जाते हैं। हमारे देश में जन-जागरुकता के अभाव में थैलेसीमिया रोग एक चुनौती बन गया है। इन सब बातों के बीच एक अच्छी खबर यह है कि इस रोग के प्रति अब जागरुकता बढ़ी है और सरकार और सामाजिक संगठन मिलकर प्रयास भी कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश सरकार ने इन्दौर में बोन मेरो ट्रांसप्लांट प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। खास यह है कि कुछ चिकित्सक इससे सेवा के रूप में जुड़ने के लिए आगे आए हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान को जब कुछ चिकित्सकों ने इस रोग के इलाज के लिए अपनी सेवाएं देने की इच्छा व्यक्त की, तब यह पहल हुई जिसका लाभ थैलेसीमिया के साथ ही अन्य गंभीर रक्त रोगों के रोगियों को भी मिल सकेगा।
मध्यप्रदेश के सैकड़ों लोग के जीवन में नई मुस्कान आएगी। मध्यप्रदेश के अलावा अन्य निकटवर्ती प्रांतों को भी इसका लाभ मिलेगा। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं में निरंतर विस्तार जारी है अब जटिल रोगों के इलाज के लिए दूर-दराज नहीं जाना पड़ेगा। राज्य में लीवर ट्रांसप्लांट के बाद यह एक अहम शुरूआत है।
(लेखक थैलेसीमिया के लिए जन-जागरण का काम वर्षों से कर रहे हैं।)
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