रवि अवस्थी।
चौथी पारी में मजबूत बनकर उभरे शिवराज
साल की दूसरी तिमाही में आई कोरोना की दूसरी लहर ने मध्य प्रदेश को भी झकझोर कर रख दिया। अनेक विषम परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश के धैर्यवान मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने हिम्मत नहीं हारी।
कठोर परिश्रम व सूझबूझ से उन्होंने न केवल प्रदेश को इस संकट से उबारा ,बल्कि कई राष्ट्रीय कार्यक्रमों व योजनाओं में प्रदेश को अव्वल बनाकर केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीतने में भी सफल रहे। साल के दरमियान उन्हें अपनी सियासी स्थिति को लेकर कई बार शिगूफे बाजी का सामना भी करना पड़ा लेकिन विचलित हुए बिना उन्होंने इन्हें निराधार साबित किया।
इस दौरान प्रदेश में सत्ता व संगठन का समन्वय भी और मजबूत हुआ। इस तरह प्रदेश के लिए समर्पित शिवराज अपनी चौथी पारी में और मजबूत बनकर उभरे।
दमोह उप चुनाव से लिया सबक
प्रदेश के सियासी घटनाक्रमों में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दमोह विधानसभा के लिए संपन्न उप चुनाव प्रदेश भाजपा के लिए सबक साबित हुआ।
इसकी भरपाई उसने गत अक्टूबर में एक लोकसभा व तीन विधानसभा सीटों के लिए संपन्न उप चुनाव में तीन सीटें जीतकर की। साल के सबसे चर्चित व गहमा-गहमी वाले ये चुनाव प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को झटका देने वाले साबित हुए।
वह न सिर्फ जोबट व पृथ्वीपुर की अपनी परंपरागत सीट गंवा बैठी बल्कि ऐन चुनाव के मौके पर उसके एक और विधायक बड़वाह के सचिन बिरला ने उससे नाता तोड़ भाजपा का दामन थाम लिया।
आदिवासी महापुरुषों का लौटाया गौरव
वर्ष 2021 को प्रदेश में जाति आधारित सियासत के लिए भी जाना जाएगा। शुरुआत राज्य विधानसभा के पिछले पावस सत्र से कांग्रेस ने की। उसने अनुसूचित जनजाति वर्ग की उपेक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। जवाब में भाजपा विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ऐसा सियासी दांव खेला कि विपक्ष हतप्रभ रह गया। अपने इस प्रयास में चौहान को उस वक्त बड़ी सफलता मिली जब भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को गौरव दिवस के रूप में मनाने की उनकी घोषणा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया । इसके बाद कुछ अन्य महापुरुषों व क्रांतिकारियों की याद में भी आयोजन हुए। इस तरह अजजा समुदाय के महापुरुषों के इतिहास को न केवल पुनर्स्थापित करने बल्कि उनका गौरव लौटाने का श्रेय भी राज्य सरकार के खाते में रहा । चौहान के इस सियासी दांव का तोड़ कांग्रेस अब तक नहीं तलाश सकी ।
वर्जना को दी श्रद्धांजलि
कहते हैं,अतीत को भुलाकर वक्त के साथ चलने वाले ही आगे बढते हैं। वर्षांत में ऐसा ही एक सियासी घटनाक्रम पिछले हफ्ते ग्वालियर में हुआ। जब केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर शीश झुकाकर उन्हें नमन किया। कहने को यह बहुत साधारण बात है लेकिन अंचल की राजनीति करने वालों के लिए बहुत अहम। उनकी इस अभूतपूर्व व अनूठी पहल ने उन आलोचकों के मुंह बंद कर दिए जो अब तक इस मुद्दे को लेकर सिंधिया परिवार पर निशाना साधा करते थे। कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने तो इसे सिंधिया का साहसिक कदम बताया। फिलहाल तो ग्वालियर की राजनीति में सिंधिया के हर बढ़ते कदम ने स्थानीय सियासतदारों की धड़कन बढ़ा रखी हैं ।
कांग्रेस ने अपनाया चरैवेति-चरैवेति का मंत्र
उपनिषद कहते हैं,चरैवेति-चरैवेति अर्थात चलते रहो। कभी भाजपा इस ध्येय वाक्य को अपनाए हुए थी,वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इस मंत्र पर अमल कर रहे हैं। अपनों से ही मिले धोखे के कारण सत्ता गंवा बैठे नाथ ने बीते चार सालों में संगठन की कार्यशैली में आमूल-चूल बदलाव किया। अंदरखाने गुटबाजी भले ही पूरी तरह खत्म न हुई हो लेकिन अनुशासन की बयार अब कांग्रेस में भी देखी जा सकती है। दिग्विजय सिंह को अपवाद मान लिया जाए तो आमतौर पर विवादित बयानबाजी पर भी संगठन में अंकुश लगा है। सदी के पहले डेढ़ दशक में आई निष्क्रियता का दौर अब बीत गया। पार्टी के अधिकांश नेता अपने स्तर पर ही सही,लेकिन सक्रिय हैं ।
और इनकी स्मृति शेष
बीत रहा साल बहुत कुछ दर्द देकर भी जा रहा है। विशेषकर साल की दूसरी तिमाही अर्थात कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में हमने बहुत से अपनों को खोया। सरकारी रिकॉर्ड को ही आधार माना जाए जो दस हजार से अधिक लोग इस महामारी की चपेट में आकर असमय ही बिछड़ गए। मौत तो सभी की दुखद होती है लेकिन कुछ हर दिल अजीज शख्सियतों का यूं असमय चले जाना गहरा दर्द दे जाता है। सियासी हस्तियों में नंदकुमार चौहान,लक्ष्मीकांत शर्मा ,बृजेंद्र सिंह राठौर,कलावती भूरिया,जुगल किशोर बागरी,विजेश लुनावत,दुर्गेश शर्मा,भाप्रसे अधिकारी मसूद अख्तर,पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया,राजकुमार केसवानी व मेरे अग्रज राजकुमार अवस्थी सहित सभी दिवंगतों को पुनः विनम्र श्रद्धांजलि।
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