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जानें:विदेशों में बसी भारतीय नारी की वास्तविक स्थिति

वामा            Feb 09, 2015


मल्हार मीडिया के लिये यूके से शन्नो अग्रवाल शादी के बाद विदेश में पति के साथ बसने का सपना ज्यादातर भारतीय लड़कियां देखती हैं और जो ऐसे सपने नहीं भी देखती हैं तो उन्हें भी कई बार तकदीर विदेश की हवा और वहाँ के अन्न-पानी में ले आती है । 1960-1970 या उससे पहले शादी शुदा स्त्रियाँ ही भारत से अपने पति के साथ विदेश जा पाती थीं। उन दिनों हर स्त्री उच्च शिक्षित नहीं होती थी। पतियों की रोक-टोक से उनका आत्मविश्वास भी इतना विकसित नहीं हो पाता था । भारतीय स्त्रियों को काम मिलने में बहुत मुश्किल होती थी । इस देश में आकर तमाम स्त्रियाँ गृहणी बन कर रहती थीं और उनमे से कुछ किसी तरह के छोटे-मोटे काम भी करने लगती थीं । नये देश में आकर आर्थिक संघर्षों से जूझते हुये परिवारों में भारतीय स्त्रियों को भी अपनी योग्यता के हिसाब से काम करना पड़ ही जाता था । तमाम भारतीय यहाँ आकर हमेशा के लिये यहीं बसने की सोचने लगे और उनमे से काफी लोग कुछ बरसों के बाद यहाँ की ब्रिटिश नागरिकता भी लेने लगे । बाद के दशकों में आने वाली तमाम स्त्रियाँ शिक्षा आदि में अपने पति के जैसी योग्यता रखती थीं और इनमे अधिक आत्मविश्वास था । आते ही कुछ ट्रेनिंग आदि के बाद उन्हें भी कहीं न कहीं क्लर्की, टाइपिस्ट या टीचिंग आदि के जाब मिल जाते थे । यू के में आज भी भारत की डिग्री का अधिक महत्व नहीं । बहुत लोगों को आज भी यहाँ आकर दोबारा ट्रेनिंग या डिप्लोमा आदि के लिये स्टडी करनी पड़ती है । वैसे इस देश में किसी भी काम को नीची नजरों से नहीं देखा जाता द्य भारत में किस वर्ग का कोई है उसी तरह से काम के बारे में लोग सोचते हैं वरना कोई ऐसा-वैसा छोटा काम करने पर उनकी नाक कटने का डर रहता है , लेकिन यहाँ आकर बहुतेरी स्त्रियाँ तो सफाई आदि के काम भी करने लगती थीं । आज भी एअरपोर्ट आदि पर कम शिक्षित स्त्रियाँ, जिनमें से अधिकतर पंजाबी, गुजराती या साउथ इंडियन हैं, सफाई आदि के काम करती हैं । लोगों को दूर के ढोल सुहावने लगते हैं । भारत में स्त्रियों को यहाँ यू के की लाइफ के बारे में ऐसा ही लगा करता है । पर यहाँ आकर भ्रम टूट जाता है । यहाँ आकर संघर्षों से जब वास्ता पड़ता है तो आँखों का रंगीन चश्मा उतर जाता है । इस देश में स्त्रियों की जिंदगी बहुत ही व्यस्त व संघर्षपूर्ण है । यहाँ उनके बातचीत करने का तरीका भी बहुत विन्रम हो जाता है व जीवन में बहुत सहनशीलता रखनी पड़ती है । हर भारतीय स्त्री को अनजाने वातावरण और अनजाने लोगों के बीच आकर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । लाड़-प्यार में पली जो बेटी भारत में रहने पर सब सुख सुविधाओं के बीच रही होती है, उसे यहाँ अनजाने देश में आकर सारे काम अपने आप करने पड़ते हैं । उसे अजनबी लोगों के बीच अजीब लगता है । पहले जहाँ कुछ भारतीय बसे होते थे वहीं जाकर अन्य भारतीय भी बसने लगते थे । भारतीय संस्कारों से युक्त स्त्रियाँ अपना ही पहनावा पहनती थीं । अंग्रेजी भाषा ढंग से ना बोल पाने व सभ्यता और संस्कृति में फर्क होने से अंग्रेज औरतों से बोलचाल और मेलजोल कम ही हो पाता था । स्त्रियाँ दबी-दबी रहती थीं और अंग्रेजों से जातीय भेद भाव सहती थीं । वह अपने ही संप्रदाय की स्त्रियों से मेलजोल रखती थीं । अब स्थिति बहुत बदल चुकी है । तब अंग्रेज लोग भारतीयों को नीची नजरों से देखते थे पर आजकल बहुत कुछ बदल चुका है । अंग्रेज लोगों को भारतीय खाना बहुत पसंद है द्य धीरे-धीरे कभी खाने को लेकर या उसके बारे में बातचीत करने पर अंग्रेज स्त्रियों से भी मेलजोल होने लगता है । कुछ सामाजिक अवसरों पर भी एक दूसरे के घर आना-जाना होता है द्य अंग्रेज पड़ोसियों से भी अच्छी-खासी बोलचाल रहती है । इंग्लैंड में घरेलू कामों के लिये नौकर आदि नहीं मिलते । जगहें काफी दूर-दूर होती हैं और एक जगह से दूसरी जगह आने जाने के लिये रिक्शे या आटो रिक्शा आदि जैसी चीज नहीं जिसे भारत में हर कदम की दूरी पर स्त्रियाँ इस्तेमाल करती हुई पाई जाती हैं । रोजमर्रा के जीवन में टैक्सी लेकर कहीं जाना बहुत महंगा पड़ता है । इसलिये पैदल, बस, ट्रेन या कार से ही स्त्रियाँ शापिंग करने जाती हैं । यहाँ पर मंदिर आदि घरों से बहुत अधिक दूरी पर होने से हर किसी का नियमित रूप से वहाँ पहुँचना मुश्किल हो जाता है । पर भारतीय त्यौहारों व उत्सवों को स्त्रियाँ अपने घरों में अपने तरीके से मनाती हैं । आज की मोबाइल और फेसबुक की दुनिया में परिवार में सब इतने व्यस्त रहते हैं कि हर उम्र की भारतीय स्त्री भी तमाम बातों के लिये स्वयं पर निर्भर रहती हैं । और अधेड़ उम्र या वृद्धावस्था आने पर भी यहाँ अंग्रेज स्त्रियों की तरह ही एक्टिव रहती है, बुढ़ापे में भी शापिंग आदि कितनी ही स्त्रियाँ छड़ी का सहारा लेकर या मोबाइल चेयर का इस्तेमाल करके खुद किया करती हैं । ऐसी असहाय अवस्था में किसी का साथ ना होने पर भी भारतीय स्त्रियाँ भी अकेले घूमते-फिरते नजर आती हैं द्य और जो स्त्रियाँ शरीर से फिट हैं वह जरूरत पडऩे पर समय-असमय अपने बच्चों के काम आना भी अपना कर्तव्य समझती हैं द्य भले ही उनके बच्चों के पास उनके लिये समय ना हो । दादी-नानी बन जाने पर उनके बच्चों की भी देखभाल करती हैं द्य अक्सर ही नैनी की तरह उन्हें घुमाती-फिराती दिखती हैं द्य विदेश में रहते हुये आज की भारतीय वृद्ध स्त्री स्वाबलंबी है और भारत की सास की तरह बिस्तर पर बैठ कर बहू से सेवा करवाने की नहीं सोचती द्य और ना ही यहाँ बहुएं सास की सेवा करना चाहती हैं । कहते हैं कि शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है और बेटा अपना ही रहता है द्य किन्तु आज की सास बहू से अधिक अपेक्षाएं नहीं रखती । और बहुएं अपने पति के संग अलग नीड़ बसाकर पूरी स्वतंत्रता से रहती हैं । क्या भारत और क्या विदेश हर जगह सामाजिक और पारिवारिक ढांचा बदल रहा है द्य किन्तु इस देश में आकर लाड़-प्यार में पली किसी अच्छे घराने से आने वाली औरत को भी घर-बाहर के सारे काम स्वयं करने पड़ते हैं ।आर्थिक रूप से परिवार की सहायता करने के लिये बाहर जाकर काम करना होता है द्य घर की सफाई, खाना बनाना, शापिंग, बच्चों को स्कूल ले जाना व वापस लाना आदि या तो पैदल या फिर बस में करना पड़ता है । यहाँ बच्चों के लिये नैनी रखना बहुत महंगा है । सिर्फ कुछ अमीर लोग ही अपने बच्चों के लिये नैनी रख पाते हैं । पिछले कुछ दशकों से भारत से कुछ कुंवारी लड़कियाँ भी पढ़ाई के सिलसिले में अकेले आने लगीं हैं । ऐसी लड़कियाँ या तो अमीर घरानों की होती हैं या फिर विदेश में जाकर उच्च शिक्षा के लिये स्कालरशिप प्राप्त किये होती हैं । इस किस्म की लड़कियाँ यहाँ आकर अपनी पूरी स्वतंत्रता का फायदा उठाती हैं । क्योंकि यहाँ इन पर इनके परिवार वालों का कोई बंधन नहीं होता । इनमें यू के में पली लड़की की तरह ही आत्म विश्वास कूट-कूट कर भरा होता है और विदेशी रंग में जल्द ही रंग जाती हैं द्य यहाँ आते ही वह बॉयफ्रेंड स्मोकिंग और क्लबिंग आदि के चक्कर में पड़ जाती हैं । यू के में आई एक भारतीय नारी का ये भी रूप है । जब वह किसी कंपनी में काम करने लगती हैं तो भारत वापस जाना नहीं चाहतीं और शादी करके यहीं रहना पसंद करती हैं । और वह लड़कियां जो यू के में यहीं के मिट्टी पानी में पलकर बड़ी हुईं हैं उन्हें ब्रिटिश एशियन कहा जाता है और उनका लाइफ स्टाइल भारतीय और ब्रिटिश सभ्यता के बीच डगमगाता है । अपने माता-पिता के साथ रहकर उनके संस्कारों पर पूरी तरह से अमल करना इस पीढ़ी के लिये बहुत कष्टदायक है । कुछ दशक पहले की भारतीय स्त्री जिस तरह से अपने जीवन के बारे में सोचती थी उन मूल्यों को आज की पीढ़ी की स्त्री अधिक महत्व नहीं देती ेसमय के साथ स्त्रियों व उनकी सोच बदल चुकी है और बराबर बदल रही है।े जिस तरह पहले की भारतीय स्त्री घर का काम-काज करती थी उसे करना भी आज की स्त्री को भार लगता है। आज की स्त्री पुरुषों के दबाब में नहीं रहना चाहती। जो भी सांस्कारिक बातें उसकी माँ को सही लगती थीं आज उसकी बेटी को नहीं। यहाँ कुछ अभागी स्त्रियों के जीवन भी हैं जिन्हें यहाँ रहने वाले भारतीय ब्याह कर तो लाते हैं भारत से किन्तु फिर न जाने क्यों उनके यहाँ आते ही अपनी बीबियों में उनको खामियाँ नजर आने लगती हैें बाद में पति उनसे अपना पीछा छुड़ाने के तरीके सोचने लगते हैं। शायद उनकी उस लड़की से उम्मीदें बहुत बढऩे लगती हैं े ये धोखा भी कई भारतीय स्त्रियों के साथ होता ह। और जब उनका पति किसी दूसरी औरत के संग रहने लगता है तो पत्नी के दिल पर क्या गुजरती होगी इसे वही जान सकती है। शादी जैसी बात को लेकर भारतीय लड़कों की इमेज इतनी खराब हो चुकी है कि एक ब्रिटिश एशियन लड़की या तो यहाँ के ब्रिटिश एशियन से लव मैरिज या किसी अंग्रेज से लव मैरिज करना पसंद करती है। आजकल तमाम भारतीय औरतें अंग्रेजों के साथ घूमते-फिरते देखी जाती हैं। आज की भारतीय स्त्री स्वतंत्र है चाहे वह किसी भारतीय से शादी करे या किसी विदेशी से। लव मैरिज में पति के काम को लेकर भी यहाँ कोई चिंता नहीं करती।े पति-पत्नी में काम को लेकर कोई समस्या नहीं होती। यदि कोई सड़क की सफाई करने वाला है तो उसकी बीबी सेक्रेटरी भी हो सकती है । और अगर कोई बड़ा आफिसर है तो उसकी बीबी किसी स्कूल में डिनर लेडी या साधारण सी क्लर्क भी हो सकती है। इससे उनके प्रेम में कोई फर्क नहीं आता े इस देश की एक खासियत यह भी है कि बाहर चलते फिरते कोई भी यहाँ किसी के बारे में भांप नहीं पाता कि कौन किस वर्ग का है, कितना शिक्षित है या क्या काम करता है े सबके बातचीत और रहन सहन का तरीका शालीन है े स्त्री के जीवन को देखते हुये कुछ और भी भयानक पहलू हैं। मजबूरी की मारी कुछ ऐसी भी भारतीय स्त्रियाँ हैं जिनके बच्चे छोटे होते हैं तो या तो पति की मौत हो जाती है या फिर डिवोर्स हो जाता है े पति की मौत हो या नारकीय जिंदगी से डिवोर्स इन हालातों का सामना करते हुये स्त्री को अपने व बच्चों के लिये जो संघर्ष उठाने पड़ते हैं उसे वही जानती है।े काम करने के बाद भी कई बार ऐसी स्त्रियाँ आर्थिक तंगी झेलती हैं और किसी तरह गुजारा करती हैं। कुछ लोग ऐसी स्त्रियों की आलोचना करते हैं, कुछ संवेदना दिखाते हैं पर उनकी आर्थिक मजबूरियों में न कोई रिश्तेदार और न ही कोई मित्र काम आता है। जब विदेश में रहने का फैसला करो तो जीवन में बहुत कुछ बदलना पड़ता है। या कहो कि जगह व परिस्थितियाँ इंसान को बदल देती हैं। एक अंग्रेज लड़की जब अपने बॉयफ्रेंड के साथ लिव इन में रहती है तो उसके परिवार व सम्प्रदाय के लोगों को जरा भी आपत्ति नहीं होती, लेकिन आज भी जब एक स्वतंत्र बिचारों वाली भारतीय लड़की घर से दूर कहीं किसी बोयफ्ऱेंड के साथ रहने लगती हैं तो इसपर उसके रिश्तेदार व जाने-पहचाने लोग ताने मारते हैं और माता-पिता को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। इन बेटियों के बातचीत करने का लहजा व विचार आदि सभी अंग्रेज लड़कियों की तरह ही होते हैं। और शादी करने में भी जाति-पांति के बंधन नहीं सहना चाहतीं। इनके लिये पारिवारिक रिश्तों और अपनी स्वतंत्रता के बीच सामंजस्य रखना बड़ा मुश्किल होता है े इसलिये आज के हर माता-पिता के बिचार भी बदल रहे हैं। अपनी बेटी की खुशी के आगे झुकना सीख रहे हैं। भारतीय बेटियाँ पूरी स्वतंत्रता से शादी व अपने भविष्य के निर्णय स्वयं लेने लगी हैं े इनमे से अधिकतर अपने कैरियर को महत्व देने लगी हैं और देर में शादी करती हैं। आज हर क्षेत्र में भारतीय स्त्रियाँ काम करती दिखती हैं-बैंक, आफिस, टीचिंग, बिजिनेस, मीडिया, एक्टिंग, टेलीविजन आदि हर जगह े और जब शादी करना चाहती हैं तो अपना जीवन साथी भी स्वयं ढूँढ लेती हैं। बेटों की तरह ही बेटियों को भी हर बात की आजादी है इस देश में। बेटियों की शादी करने में कई बार माता-पिता के निर्णय भी गलत हो जाते हैं जो बेटी की जिंदगी तबाह कर देते हैं। भारत में ही देखते-देखते कितनी ही स्त्रियाँ अपने जीवन में आजादी का इस्तेमाल करने लगी हैं। तो यू के में जन्मी भारतीय बेटियों के लिये पुराने बिचारों को अपनाना कितना मुश्किल होता होगा ये सबके लिये समझने वाली बात है। आर्थिक स्वतंत्रता और आसपास के वातावरण ने आज की स्त्री के जीवन व उसकी सामाजिक स्थिति को बदल दिया है ।


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