एकता शर्मा।
जब किसी लड़की के साथ दुराचार होता है, उसके बाद वो जिस पीड़ा से गुजरती है, उसे उससे बेहतर कोई नहीं जान सकता। लेकिन, इसके बाद कानून, पूछताछ और कार्रवाई का जो खेल शुरू होता है, वो उस दुराचार से भी ज्यादा तकलीफदेह और घिनौना होता है, जो उसने भोगा है। पहले दर्दनाक क़ानूनी कार्रवाई, फिर डॉक्टरी जांच, मेडिकल टीम के सवाल और पुलिस की पूछताछ के बाद अदालत में बेवजह के सवालों की झड़ी।
ये सब उस लड़की को अंदर से तोड़कर रख देते हैं। दुराचार के बाद एक लड़की जीवनभर जिस अंतहीन पीड़ा से गुजरती है, ये कोई और जान भी नहीं सकता।
फिलहाल इस दर्दनाक पीड़ा भोपाल की वो अनाम लड़की गुजर रही है, जिसके सपनों को दरिंदों तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब उसने जिस दर्द को झेला है उसे कानूनी कार्रवाई के लिए बयां करना है, ताकि उसके जिस्म को नोचने वाले सजा पा सकें।
जबकि, सच्चाई ये है कि ये सब भोगने वाली लड़की जिसे भूलाना चाहती है, उसे कानून, व्यवस्था और समाज भूलने नहीं देता। क्योंकि, दुराचार के बाद लड़की किस तरह चूर-चूर होती है, इस बात का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। जिस बदतर जिंदगी से लड़की को गुजरना होता है, उसका अंदाजा सिर्फ वो लड़की ही जानती है, जिसने उसे भोगा है।
जिस्म के भूखे भेड़ियों ने उसे किस तरह दबोचा होगा, इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है। उन दरिंदों ने तो उसकी जिंदगी को तबाह ही कर दिया। वो चिल्लाती रही, रहम की भीख मांगती रही। उन्हें उसे सज़ा का डर दिखाती रही, लेकिन हवस के भेड़ियों को कुछ भी सुनाई नहीं दिया। उन पर तो जिस्मानी सुख का भूत सवार था।अपनी भूख मिटाकर वे भेडिये उसे वहीं छोड़कर भाग गए। फिर उसने अपने आपको समेटा और कानून के सामने पहुंची।
पर उसे यहाँ भी इंसाफ नहीं मिला। शायद उसे अब कभी इंसाफ मिलेगा भी नहीं। क्योंकि, उसने खोया है उसकी पूर्ति न तो कानून कर सकता है न समाज और न परिवार। इसलिए कि ये ऐसा दुःख है जिसका अनुभव उसे हर सांस के साथ होगा।
अब जो होगा वो भी किसी जबरदस्ती से कम नहीं होगा। उससे पूछे जाने वाले सवाल भी किसी दूसरे दुराचार से कम नहीं होंगे। ऐसी घटनाओं के बाद पीड़िता का एसटीआई, एचआईवी और प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाता है।
अभी तो मामला अदालत नहीं पहुँचा है, फिर वहाँ होता है तीसरा दुराचार। पुलिस और अदालती सवाल किसी भी पीड़िता को चिड़चिड़ा बनाने के लिए काफी होते हैं। क्योंकि, डॉक्टरों को उसे हर बार अपने साथ हुई ज्यादती की कहानी विस्तार से सुनाना पड़ती है। बेतुके सवाल किये जाते हैं, जिनका जवाब उसे मजबूर होकर देना ही पड़ता है। क्योंकि, यदि उन भेड़ियों को अपने गुनाह की सजा दिलाना है तो ये करना ही होगा।
न चाहते हुए भी उसे यह सब तो करना ही होगा। यानी उसके साथ जो घटा, वो उसे चाहकर भी भुला नहीं सकेगी। क्योंकि, कार्रवाई, पूछताछ और फिर अँधा कानून तो आँख खोलकर उस दर्द को महसूस करने से तो रहा।
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