 लक्ष्मण की कलात्मकता बेजोड़ थी. विषय के साथ चीर फाड़ करने की समझ, पृष्ठभूमि का ज्ञान और कूची की कलात्मकता ने उनकी कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ला खड़ा किया.
लक्ष्मण कभी भी किसी शैली से जुड़े नहीं रहे. उनका काम हकीक़त के धरातल पर था और उसमें किसी तरह का भटकाव नहीं था.
वे कुछ कुछ डेविड लॉ से प्रभावित थे. पर लॉ कम लाइनों का इस्तेमाल करते थे और उनके कार्टून में विस्तृत जानकारी कम होती थी. ग़ैर ज़रूरी चीजों को मेहनत कर के कार्टून से बाहर निकालने की वजह से लॉ के कार्टून ज़्यादा प्रभावशाली थे.
लक्ष्मण की कलात्मकता बेजोड़ थी. विषय के साथ चीर फाड़ करने की समझ, पृष्ठभूमि का ज्ञान और कूची की कलात्मकता ने उनकी कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ला खड़ा किया.
लक्ष्मण कभी भी किसी शैली से जुड़े नहीं रहे. उनका काम हकीक़त के धरातल पर था और उसमें किसी तरह का भटकाव नहीं था.
वे कुछ कुछ डेविड लॉ से प्रभावित थे. पर लॉ कम लाइनों का इस्तेमाल करते थे और उनके कार्टून में विस्तृत जानकारी कम होती थी. ग़ैर ज़रूरी चीजों को मेहनत कर के कार्टून से बाहर निकालने की वजह से लॉ के कार्टून ज़्यादा प्रभावशाली थे.
 पॉकेट कार्टून ने लक्ष्मण के ‘कॉमन मैन’ को पूरे देश का प्रतीक बना दिया. एक समय था जब प्रशासन की वजह से खड़ी की गई रोज़मर्रा की तमाम दिक्क़तों को लक्ष्मण अपने कार्टून में आम आदमी की तक़लीफ़ के रूप में उकेर देते थे.
मुंबई के लोगों के दिन की शुरुआत ही चाय और ‘कॉमन मैन’ की दिक्कतों पर कटाक्षभरी हंसी के साथ होती थी. ‘कॉमन मैन’ पहले लोगों की आदत में शुमार हुआ और बाद में वह उनकी लत बन गया.
कार्टून जो बना आदत
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने लक्ष्मण की लोकप्रियता को खूब भुनाया. इससे अख़बार और कार्टूनिस्ट, दोनों को आगे बढ़ने में काफी सहूलियत हुई.
लक्ष्मण का ‘कॉमन मैन’ लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब होने वाला पहला पॉकेट कार्टून नहीं था. इसके पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने ही अपने दिल्ली संस्करण में ‘बाबूजी’ नाम से कार्टून शुरू किया था. सैम्युअल इसे बनाते थे. यह भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ था.
बाद में मुंबई से लक्ष्मण का कॉमन मैन शुरू किया गया. बाक़ी तो इतिहास ही है.
पॉकेट कार्टून ने लक्ष्मण के ‘कॉमन मैन’ को पूरे देश का प्रतीक बना दिया. एक समय था जब प्रशासन की वजह से खड़ी की गई रोज़मर्रा की तमाम दिक्क़तों को लक्ष्मण अपने कार्टून में आम आदमी की तक़लीफ़ के रूप में उकेर देते थे.
मुंबई के लोगों के दिन की शुरुआत ही चाय और ‘कॉमन मैन’ की दिक्कतों पर कटाक्षभरी हंसी के साथ होती थी. ‘कॉमन मैन’ पहले लोगों की आदत में शुमार हुआ और बाद में वह उनकी लत बन गया.
कार्टून जो बना आदत
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने लक्ष्मण की लोकप्रियता को खूब भुनाया. इससे अख़बार और कार्टूनिस्ट, दोनों को आगे बढ़ने में काफी सहूलियत हुई.
लक्ष्मण का ‘कॉमन मैन’ लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब होने वाला पहला पॉकेट कार्टून नहीं था. इसके पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने ही अपने दिल्ली संस्करण में ‘बाबूजी’ नाम से कार्टून शुरू किया था. सैम्युअल इसे बनाते थे. यह भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ था.
बाद में मुंबई से लक्ष्मण का कॉमन मैन शुरू किया गया. बाक़ी तो इतिहास ही है.
 
                   
                   
	               
	               
	               
	               
	              
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