गाय पर चर्चा

वीथिका            Oct 16, 2015


snajay-joshi संजय जोशी सजग बांकेलाल जी बहुत दिनों बाद मिले तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट नजर आ रही थी मैंने उनसे पूछा की इतने परेशान क्यों है आप , वे कहने लगे बचपन से हम गाय को हमारी माता मानते हैं और इस पर निबंध लिखते आ रहे हैं जिनको कुछ नही आता वे लिखते है गाय हमारी माता है हमें कुछ नहीं आता है उस भोली-भाली प्राणी पर इतनी राजनीति हो रही बयान वीर अनाप-शनाप बयान देकर गौ माता का अपमान कर रहे हैं जिससे बेचैनी होना स्वाभाविक है। बांकेलाल जी कहने लगे कि आदमी को सीधा सदा बताने के लिए अक्सर कहा जाता है कि अल्लाह की गाय है वर्तमान के संदर्भ में यह मान लिया जाये कि सीधा आदमी हमेशा कटने को तैयार रहे। आगे बताने लगे कि बच्चों को गाय पर निबंध लिखाओ तो न्यूज़ पर चल रहे गाय पर विवाद से बच्चे हैरान होकर पूछते हैं कि जिसको हम पूजते है माता मानते हैं उसका ऐसा हश्र क्यों हो रहा है ?क्या जवाब दें बच्चों को ? वे कहने लगे कि चाय पर चर्चा के बाद अब गाय पर चर्चा होने लगी है और बयान देने की होड़ सी है गाय के बीफ के पक्ष में प्राचीन ग्रंथो को संदर्भ बनाकर उलूल -जुलूल बयान देकर गाय को माता मानने वालों की भावनाओं पर कुठाराघात कर जले पर नमक छिड़कने का काम किया जा रहा है और मिडिया अपनी टी आर पी बढ़ाने में लगा हुआ है । वे कहने लगे चाय पर चर्चा तो बहुत हुई और चुनाव जीत लिए पर गाय पर सकारत्मक चर्चा करने को कोई तैयार नही हैं गाय हमारी माता है , माता की दुर्दशा पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले तो बहुत है ,लेकिन गाय के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले भी अपनी श्रद्धा बदल दें और राजनीति शुरू हो जाये तो एक लोकोक्ति कभी चरितार्थ तो होगी "विनाश काले विपरीत बुद्धि । गाय एक घरेलू ,पालतू पवित्र पशु की श्रेणी में मानी जाती है पर आजकल उसका उपयोग राजनीति की रोटी सेंकने के लिए किया जा रहा है । कई देशों में गाय के कत्लेआम पर प्रतिबंध लगा दिया गया है पर हमारे देश में अभी भी जद्दोजहद जारी है और जब तक राजनीतिक रोटियां सिंकती रहेगी ,तब तक कुछ ठोस होना संदिग्ध लगता है ,समाजवाद ,धर्मनिरपेक्षता ,कटटरता का बिगुल बजाने वाले सब दल अपने-अपने स्वार्थ खोज रहे है और गाय पर चर्चा सिर्फ और सिर्फ लाइम लाइट में रहने की हैं और इससे लाभ कमाने के लिए अपनी आतुरता दिखा रहे है । गाय जैसे निरीह प्राणी पर दांव पर दांव लग रहे है सामान्य जन हतप्रभ है, नेताओं के आरोप -प्रत्यारोप का दौर जारी है । बच्चे मन के सच्चे गाय पर निबंध लिखने को मजबूर है उनकी भी भावना आहत होती है पर लिखना तो पड़ता है पास होने के लिए । मैंने बाँकेलाल जी को कहा कि गाय पर लिखना बचपन में थोड़ा कठिन लगता था और आजकल तो लिखना और कठिन हो गया है मनुष्यों के हितों पर राजनीति करने वाले अब निरीह गाय जैसे पवित्र पशु पर भी करने लगे जो संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है । गाय पर चर्चा हो जरूर पर कत्ले आम रुकने के लिए । बांकेलाल जी अभी भी विचलित दिख रहे थे मेरी भी आत्मा कचोट रही थी पर मै ऊपर से उन्हें समझाने की नाकाम कोशिश करता रहा । मैंने कहा सब कुछ बदल रहा है इसलिए गाय पर निबंध भी बदल रहा है , क्या करें ?


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