अगर फिरदौस बर रूए ज़मीनस्त, हमींनस्त-ओ, हमींनस्त-ओ, हमींनस्त’’
(यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है)
श्रीनगर का नाम लेते ही डल झील की तस्वीर आंखों के सामने उभरती है। डल झील श्रीनगर ही नहीं कश्मीर का एक प्रतीक हैं। इसे भारत की सबसे सुंदर झीलों में माना जा सकता है। करीब 20 वर्ग किलोमीटर की यह झील अपने आप में किसी शहर से कम नहीं। यहां करीब 1200 हाउस बोट है, जिनके हजारों कमरों में सैलानी रुकते हैं। ये हाउस बोट एक तरह से चलती-फिरती होटल या रिसोर्ट कहीं जा सकती है। पर्यटकों की सुविधा की सभी जरूरी चीजें यहां उपलब्ध रहती है। किसी अच्छे होटल के कमरे की तरह इन हाउस बोट के कमरे भी सुरूचिपूर्ण तरीके से सजाये जाते हैं। डल झील में सैलानियों के लिए कयाकिंग, केनोइन, वाटर सर्फिंग और फिशिंग जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध है। पर्यटन के अलावा डल झील में मछलियोंं का उत्पादन भी बड़ी मात्रा में होता है। ठंड के दिनों में जब श्रीनगर का तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है, तब श्रीनगर की डल झील जम जाती है, तब बच्चे वहां क्रिकेट खेलते नजर आते हैं। शिकारों पर उन दिनों आमतौर पर विदेशी सैलानी ही ज्यादा होते हैं। झील के जमे होने के कारण यात्रियों को लाने ले जाने वाली छोटी नावें बंद कर दी जाती है। लोग चलकर सीधे शिकारे तक पहुंचते हैं। शिकारों में पर्यटकों को गर्म पानी, टीवी, रेस्टोरेंट, हीटर जैसी सुविधाएं तो मिलती ही है। शॉपिंग के लिए फेरी वाले भी शिकारों पर आते रहते हैं। इन फेरी वालों के पास कश्मीर के हस्तशिल्प से बनी चीजें, आर्टिफिशियल ज्वेलरी, केसर, शिलाजीत, पश्मीना, कश्मीर के कपड़े और अन्य वस्तुएं उपलब्ध होती हैं। आप इन शिकारों पर रहते हुए भी शॉपिंग कर सकते हैं। डल झील झील से बढ़कर एक शहर है। डल झील पर सैलानियों के रुकने के लिए हाउस बोट तो है ही, रोजमर्रा की जरूरत की चीजों के बाजार भी लगे होते हैं। कश्मीर के कई परिवार इन शिकारों में भी रहते हैं। उनके बच्चे नाव से स्कूल जाते हैं। नाव पर ही सब्जी, किराने का सामान, दवा की दुकानें और यहां तक कि पोस्ट ऑफिस भी उपलब्ध है। यह देश का एक मात्र नाव पर चलता-फिरता पोस्ट ऑफिस है। डल झील में ही तैरते हुए खेत भी है। इन खेतों में सब्जियां और फूल उगाए जाते हैं। वैसे तो श्रीनगर में अपराध नहीं के बराबर है, लेकिन कभी-कभी शरारती तत्व दूसरों के खेत अपनी नाव के पीछे बांधकर चुुरा ले जाते हैं। डल झील तीन तरफ से पहाड़ों से घिरी हैं। इन पहाड़ों पर चिनार के बड़े-बड़े पेड़ है। अधिकांश समय यह पहाड़ बर्फ से ढके होते हैं और बादलों की टुकड़ियां इन पहाड़ों पर अटखेलियां करती हुई नजर आती हैं। इससे यह नजारा और भी सुंदर बन जाता है। डल झील में अपने पानी के स्त्रोत तो है ही, कई दूसरी झीलों का पानी भी आकर इस झील में मिल जाता हैं। गगरी बल, लोकुट डल, बोड डल और नागिन झील का पानी डल झील में आता रहता है। डल झील की तरह ही नागिन झील में भी शिकारे पर्यटकों के लिए उपलब्ध है, लेकिन यह झील छोटी है, इसलिए यहां भीड़-भाड़ कम होती है और इसीलिए कुछ पर्यटक इसे चुनते है, ताकि यहां शोरगुल और भी कम हो। डल झील के शिकारों में रहते हुए आप छोटी नावों से आसपास के इलाकों में घूमने के लिए जा सकते है। नेहरू पार्क, चार चिनारी और कानुटूरखाना जैसे छोटे-छोटे द्वीप भी यहां है। हजरत बल दरगाह जाने के लिए भी नाव का सहारा लिया जा सकता है। पूरी डल झील में कमर के फूलों की खेती बड़े पैमाने पर होती है, इसलिए यहां कमल के पूâल बहुतायत में देखने को मिलते हैं। कमल के पौधों की जड़ों को सब्जी बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। पूरी डल झील में वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध है। श्रीनगर की एक और खूबी वहां के शानदार बगीचे हैं। शालिमार बाग, शाही बाग, निशात बाग, ट्यूलिन गॉर्डन जैसे कई बगीचे वहां देखने को मिलते हैं। चश्मे शाही नामक एक झरना भी है, जिसके आसपास बगीचा बनाया गया है। कहां जाता है कि इस चश्मे का पानी पीने से पेट के रोग दूर हो जाते हैं। बर्फ का पिघला पानी होने के कारण यह बेहद ठंडा होता है और इसमें हाथ डाल देना भी ठिठुरने के लिए काफी है। इस पानी में कुछ न कुछ औषधीय तत्व होता होगा, तभी अनेक सैलानी वहां से पानी की बोतलें भरकर ले जा रहे थे। हमारे एक सह यात्री ने बताया कि पिछली बार जब वह श्रीनगर की यात्रा पर थे और उनका पेट खराब हो गया था, तब यहां का पानी पीने से उनकी तबीयत ठीक हो गई थी। हमें यह भी बताया गया कि जवाहर लाल नेहरू जब कभी श्रीनगर आते थे, तब उनके पीने का पानी चश्मे शाही से ही ले जाया जाता था। चश्मे शाही के पास ही एक सड़क पर निशान लगा था परी महल और उस दिशा में देखने पर दूर एक सफेद महल दिखाई दिया, जो पहाड़ की तलहटी पर बना था। शाहजहां के पुत्र और औरंगजेब के भाई दारा शिकोह ने उसे सूफी संतों के रहने के लिए बनवाया था, पहले उसका नाम तीन महल था, बाद में अपभ्रंश होकर यह नाम परि महल बन गया। लोग कहते हैं कि परियां उन्हीं जगह पर जाती है, जो पवित्र होती हैं, इसलिए परी महल नाम ज्यादा उपयुक्त लगता है। इस समय तो परी महल पर भारतीय सेना का कब्जा है। श्रीनगर मुस्लिम शासकों का प्रिय स्थल रहा है। औरंगजेब और उनके भाई दाराशिको ने यहां कई निर्माण करवाए थे। अमीर खुस्रो (अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो) ने इस जगह की तुलना स्वर्ग से करते हुए कहा था-- ‘‘अगर फिरदौस बर रूए ज़मीनस्त, हमींनस्त-ओ, हमींनस्त-ओ, हमींनस्त’’ (यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है)। डल झील का क्षेत्रफल 40 साल पहले करीब 40 वर्ग किलोमीटर का था, धीरे-धीरे यह क्षेत्रफल घटता गया। लोगों ने झील के इलाके को पाटकर मकान बना लिए। कई होटल भी ऐसी जगहों पर खुल गए है। यहां जितने शिकारे उपलब्ध है, उनमें से बड़ी संख्या में शिकारे बिना अनुमति के संचालित हो रहे हैं। हमें बताया गया कि शिकारो के मालिकों के बच्चे बड़े होते गए और उन्होंने अपने-अपने शिकारे डल झील में उतार दिए। बिना अनुमति लिए ही उन्होंने वहां से कारोबार शुरू कर दिया। उनके नाम से भी लगता है कि ये शिकारे दूसरे शिकारा मालिकों के परिवार के ही है। उनके नाम मिलते-जुलते नजर आते हैं। शिकारों के नाम बड़े ही दिलचस्प लगे। ज्यादातर शिकारों के नाम बड़े शहरों के नाम पर है। वाशिंगटन, शिकागो, टोकियो, अलास्का, लंदन के अलावा हॉलीवुड, बॉलीवुड, न्यू हॉलीवुड, न्यू बॉलीवुड, मुगल महल, कश्मीर डिलाइट, डर्बी शायर, पियानो, हैवन सन, सीको, किंगफिशर, पेंटल, मांडले, एक्सपोर्ट, मोनालिसा, क्वीन, लोटस, जाज़, एथेना, न्यू एथेना, मॉर्निंग स्टार, सी पैलेस, मुर्तज़ापैलेस, मोगल पैलेस, लद्दाख हाउस, परी महल जैसे आकर्षक नाम देखने को मिले। हम जिस शिकारे पर रुके थे, उसका नाम मुर्तजा महल था। मुर्तज़ा महल के मालिक श्री अफरोज ने स्वयं हमारे हालचाल और सुविधाओं के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया कि उनके तीन शिकारे डल झील में है और यहीं उनकी आय का प्रमुख साधन है। शिकारे पर रहना अपने आप में दिलचस्प अनुभव है। किसी भी स्टार होटल के कमरे जैसे ये शिकारे हैं। पानी में रहने के बावजूद यहां मच्छर नहीं मिले, लेकिन शिकारे के बिस्तर और कालीन पर सीलन का एहसास जरूर हुुआ। पूछने पर पता चला कि धूप नहीं निकलने के कारण यह स्थिति हुई है। अगर आप श्रीनगर जाए और वहां शिकारे पर जाकर न रुके, यह अन्याय ही होगा। यह एक अलग तरह का अनुभव है, जिसे अधिकांश प़र्यटक महसूस करना चाहते हैं।
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