
सुगन्ध हो जाने का मन आज नहीं है गाने का मन सारे सम्बोधन से कट कर व्यक्ति मात्र हो जाने का मन आज नहीं है गाने का मन। इतना गाया ,कितना गाऊँ कब तक खुद को और रिझाऊँ लय में डूब नहाने का मन। तुमने जो रिश्ते बाँधे थे, उनकी गाँठे खोल रहा हूँ कल तक जो गाने में चुप था आज मौन में बोल रहा हूँ मुखर मौन हो जाने का मन। तुम सुन्दर हो मैं आँखें हूँ बस इतना रिश्ता क्या कम है इससे आगे नहीं सोचना तुमको मेरी प्राण कसम है यह कह कर सो जाने का मन। फूलों का आकार गन्ध है जिसकी नहीं परिधी-सीमाएँ धूपदान के अगरु-धूप-सी अपने जीवन की रेखाएँ बस सुगन्ध हो जाने का मन। आज नहीं है गाने का मन।
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